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उत्तर प्रदेश

दंपती ने मासूम के कलेजे की पूजा की फिर उसे खाया, हैवानों तक ऐसे पहुंची पुलिस; जानें मामला

SaumyaV
17 Dec 2023 2:00 PM IST
दंपती ने मासूम के कलेजे की पूजा की फिर उसे खाया, हैवानों तक ऐसे पहुंची पुलिस; जानें मामला
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कानपुर देहात के घाटमपुर में संतान की चाहत में मासूम की हत्या कर कलेजा खाने वाले दंपती समेत चार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। 14 नवंबर 2020 को दीपावली की रात वारदात को अंजाम दिया गया था। दिवाली की रात पटाखों के शोर में बच्ची की चीखें दब गईं थीं।

कानपुर देहात के घाटमपुर के एक गांव में 14 नवंबर 2020 को दीपावली की रात सात साल की मासूम बच्ची की हत्या कर उसका कलेजा खाने के मामले में चार दोषियों को सजा सुनाई गई है। तीन साल तक चली सुनवाई के बाद शनिवार को अपर जिला जज 13 पॉक्सो एक्ट की अदालत ने आरोपी दंपती परशुराम व सुनैना को आजीवन कारावास और 20-20 हजार अर्थदंड की सजा सुनाई है।

वहीं दंपती के भतीजे अंकुल और उसके साथी वीरेन को पूरे जीवनकाल का कारावास और 45-45 हजार अर्थदंड का लगाया है। दंपती को आजीवन कारावास या उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। सहायक शासकीय अधिवक्ता राम रक्षित शर्मा, प्रदीप पांडेय प्रथम व अजय कुमार त्रिपाठी ने बताया कि एक गांव निवासी एक व्यक्ति ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

इसमें बताया था कि उसकी सात वर्षीय पुत्री 14 नवंबर 2020 को घर के बाहर खेलते समय गायब हो गई थी। अगले दिन उसका क्षत-विक्षत शव गांव के बाहर खेत में मिला था। पुलिस ने पिता की तहरीर पर गांव के अंकुल, वंशलाल, कमलराम, बाबूराम और सुरेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू की थी।

विवेचना के दौरान पुलिस को पता चला था कि संतान की चाहत में एक तांत्रिक के कहने पर दंपती परशुराम व सुनैना ने बच्ची का कलेजा खाया था। बच्ची की हत्या कर कलेजा निकालकर लाने वाले अंकुल और वीरेन थे। इसी आधार पर पुलिस ने दुष्कर्म व हत्या के अपराध में आरोप पत्र अदालत में पेश किए थे।

एफआईआर में शामिल आरोपियों वंशलाल, कमलराम, बाबूराम व सुरेश के खिलाफ कोई साक्ष्य न मिलने पर उनके नाम विवेचना से हटा दिए गए थे। मामले की सुनवाई अपर जिला जज 13 पॉक्सो एक्ट बाकर शमीम रिजवी की अदालत में चल रही थी। अदालत ने बुधवार को चारों आरोपियों को दोषी ठहराया था। शनिवार को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद दोषियों की सजा सुनाई।

ऐसे पहुंची थी पुलिस हैवानों तक

बच्ची के शव के पास से डॉग स्क्वायड टीम का कुत्ता गांव का चक्कर लगाते हुए हत्यारे अंकुल के घर पहुंच गया था। इसके बाद ही पुलिस ने दंपती परशुराम व सुनैना के भतीजे अंकुल को गिरफ्तार किया था। सख्ती से पूछताछ के बाद अंकुल ने पूरी कहानी उगल दी थी।

तांत्रिक के कहने पर भतीजे से मंगाया था कलेजा

सहायक शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय प्रथम ने बताया कि मामले की विवेचना के दौरान पुलिस को घटनास्थल पर पड़े शव से अंग गायब मिले थे। साक्ष्यों और गवाहों के बयानों से जानकारी हुई कि मामले में तंत्र विद्या के चलते मासूम की हत्या कर उसके अंग निकाले गए हैं। आगे की जांच में पता चला कि दंपती सुनैना और परशुराम के विवाह के 19 साल बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई थी।

एक तांत्रिक ने उनसे किसी बच्ची का कलेजा निकालकर खाने से संतान पैदा होने की बात कही थी। इस पर दंपती ने अपने भतीजे अंकुल को रुपये देकर कलेजे का इंतजाम करने को कहा था। इस पर अंकुल ने अपने दोस्त वीरेन के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था।

10 गवाह और 21 साक्ष्य बने सजा का आधार

विशेष लोक अभियोजक राम रक्षित शर्मा ने बताया कि मामले में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत में 10 गवाहों को पेश किया गया। इन्होंने घटना से संबंधित 21 प्रलेखीय साक्ष्यों को अदालत में साबित किया, जो सजा का मुख्य आधार बने।

मासूम बच्ची की सहेली की गवाही रही अहम

राम रक्षित शर्मा ने बताया कि अभियोजन की ओर से कराई गई बाल साक्षी की गवाही बेहद अहम रही। बाल साक्षी ने अदालत में अपने बयानों में बताया था कि घटना वाले दिन वह अपनी सहेली (जिस बच्ची की हत्या हुई) के साथ खेल रही थी, उसी दौरान अंकुल बच्ची को अपने साथ ले गया था।वहीं मामले में एक अन्य गवाह ने भी अदालत में अपने दिए बयानों में मृतक मासूम को घटना वाली रात अंकुल और वीरेन के साथ देखने की बात कही थी।

अभियोजन ने मांगी थी फांसी

विशेष लोक अभियोजक राम रक्षित शर्मा, प्रदीप पांडे व अजय कुमार त्रिपाठी ने सजा पर बहस के दौरान चारों को फांसी की सजा देने की मांग की थी। तर्क रखा था कि अंकुल व वीरन सात साल की बच्ची को साथ ले गए, सामूहिक दुष्कर्म किया, हत्या कर शव को खेत में फेंक दिया, जबकि परशुराम व सुनैना ने मृतका के कलेजे की पूजा कर उसे खाया। समाज विरोधी इस अपराध को विरल से विरलतम श्रेणी में रखकर अभियुक्तों को फांसी दी जानी चाहिए।

उम्रकैद व जीवलकाल तक कारावास में अंतर

आजीवन कारावास में दोषी द्वारा 20 साल की सजा काटने के बाद उसकी वृद्धावस्था व अच्छे चाल-चलन के आधार पर सरकार की अनुशंसा पर राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति पर रिहाई दी जा सकती है। अगर कोर्ट ने जीवनकाल के कारावास की सजा सुनाई है तो दोषी को शासन से यह लाभ नहीं मिल सकता। उसे आखिरी सांस तक जेल में ही रहना होगा। - राजेश्वर तिवारी, पूर्व सहायक शासकीय अधिवक्ता

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