Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

पंचतत्व में विलीन हुईं संकटमोचन मंदिर के महंत की मां सेवा देवी, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

SaumyaV
21 Jan 2024 5:53 AM GMT
पंचतत्व में विलीन हुईं संकटमोचन मंदिर के महंत की मां सेवा देवी, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
x

महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र की मां सेवा देवी लंबे समय से बीमार चल रही थीं। शनिवार की सुबह निधन की सूचना अस्सी, भदैनी और शिवाला के लोगों को मिली तो लोग तुलसी घाट पहुंचे। परिजनों को ढांढ़स बंधाया और शोक जताया।

संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र की मां सेवा देवी का शुक्रवार की देर रात निधन हो गया। वह 80 वर्ष की थीं। वह लंबे समय से बीमार चल रही थीं। तुलसी घाट स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट पर हुआ। मुखाग्नि उनके छोटे पुत्र बीएचयू के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. विजय नाथ मिश्र ने दी। उनको श्रद्धांजलि देने के लिए शहर के विशिष्टजन पहुंचे थे।

परिजनों के अनुसार, शुक्रवार की रात उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी। चिकित्सकों को बुलाया गया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। देर रात उनका देहांत हो गया। शनिवार की सुबह उनके निधन की सूचना अस्सी, भदैनी और शिवाला के लोगों को मिली तो लोग तुलसी घाट पहुंचे। परिजनों को ढांढ़स बंधाया और शोक जताया। दोपहर के समय उनकी शवयात्रा निकली तो मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हेमंत शर्मा ने सेवा देवी के निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहा कि सेवा देवी एक धर्मपरायण और सरल हृदय की महिला थीं। राज्य मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालु ने कहा कि वह धार्मिक एवं सत्यनिष्ठ महिला थीं। हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहती थीं। अंतिम यात्रा में विधायक दीपक कुमार मिश्रा, विजय शंकर पांडेय डॉ. विवेक शर्मा, डॉ. आरएन चौरसिया आदि शामिल रहे। इससे पहले वर्ष 2013 में सेवा देवी के जीवनसाथी और संकटमोचन मंदिर के पूर्व महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र का निधन हुआ था।

अंतिम समय में भी रामनाम बना रहा सहारा

प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने बताया कि माताजी परिवार के वट वृक्ष के समान थीं। तमाम झंझावातों के बीच उन्होंने सबका पालन-पोषण किया। अंतिम समय में जब बीमारी से ग्रसित हो गईं तो उनका एकमात्र सहारा रामनाम था। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाइयों का हमेशा पाठ करती थीं। रामनाम का भजन बराबर उनके मन में चलता रहता था। कितना भी दर्द हो, वह सीता-राम नाम जप को ही वो सबसे बड़ा दवा मानती थीं।

काशी में ही प्राण छोड़ने की थी इच्छा

डॉ. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि माताजी ने बड़े भइया से काशी में ही प्राण छोड़ने की इच्छा व्यक्त की थी। कहती थीं कि कोशिश करना कि काशी से बाहर कहीं और प्राण न निकले। वह रात में अपने पूरे परिवार के बीच नश्वर शरीर त्याग कर धरती से विदा ले लीं।

Next Story