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उत्तर प्रदेश

काव्य संध्या में कवियों ने अपनी रचनाओं से मोहा सबका मन

Neelu Keshari
3 Sep 2024 6:45 AM GMT
काव्य संध्या में कवियों ने अपनी रचनाओं से मोहा सबका मन
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गाजियाबाद। शकुंतला शर्मा और रविदत्त शर्मा की स्मृतियों को समर्पित संस्था अखिल भारतीय अनुबन्ध फाउंडेशन, मुम्बई की ओर से आयोजित काव्य संध्या में शामिल हुए कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से सबका मन मोह लिया। काव्य संध्या की अध्यक्षता प्रख्यात वरिष्ठ कवयित्री डॉ. रमा सिंह ने की।

गजलकार ओमप्रकाश यती ‘मुख्य अतिथि’ और सुप्रसिद्ध कवयित्री पूनम माटिया ‘विशिष्ट अतिथि’ के रूप में शामिल हुए। काव्य संध्या मशहूर गजलकार, फिल्म गीतकार और लेखक डॉ. प्रमोद कुश ’तन्हा’ के संयोजन और संचालन में राजनगर एक्सटेंशन की प्लैटिनम 321 सोसायटी में आयोजित हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं मां सरस्वती को पुष्पांजलि अर्पण से हुआ। डॉ. रमा सिंह ने मधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। काव्य संध्या में अनमोल शुक्ल अनमोल, सुरेन्द्र शर्मा, अनिमेष शर्मा, चेतन आनंद, मनोज अबोध, रूबी मोहंती, डॉ. सुधीर त्यागी, डॉ. अल्पना सुहासिनी, मंजु ’मन’ आदि ने अपनी रचनाओं से कार्यक्रम को नयी ऊंचाइयां प्रदान की। अनमोल शुक्ल ‘अनमोल’ की पंक्तियां- मन से यादें कभी तेरी विस्मृत न हों, पंथ तेरे कभी कंटकावृत न हों, उस विषय पर कभी अपनी सम्मति न दें, जिस विषय के लिए आप अधिकृत न हों’ ने बहुत दाद बटोरी। गजलकार सुरेन्द्र शर्मा का खूबसूरत शेर ‘बिन आंधी रुपयों को हमने उड़ते देखा है, सड़कों पर जब रेत, डस्ट को बिखरे देखा है’ ने खूब ध्यान आकर्षित किया।

डॉ. सुधीर त्यागी के शेर को ख़ूब दाद मिली- सोच रहा हूं सच की खातिर दुनिया के हालात लिखूं, जागे एक मसीहा मुझ में अपनी भी औकात लिखूं। कवि एवं गजलकार अनिमेष शर्मा की ब्रजभाषा की हजलों ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। रूबी मोहंती की रचना “ग्रे शेड” को भी खूब वाहवाही मिली। डॉ. अल्पना सुहासिनी की छोटी बह्र की गजल भी खूब पसंद की गई। प्रख्यात कवि चेतन आनंद ने अपने गीतों और गजलों से खूब तालियां बटोरीं- दर्द की दास्तां कहते-कहते, रुक गयी फिर जुबां कहते-कहते, रह गयी बात फिर से अधूरी, चल दिये तुम कहाँ कहते-कहते’ खूब पसंद की गई। पूनम माटिया की रचनाएं भी बहुत सराहीं गईं- ज़िन्दगी के इस सफर में बचपना जो खो दिया, तो अजब बीमारियों का सिलसिला हो जाएगा, आज दिल में और घरों में कुछ जगह छोड़ी नहीं, इक जमाना था कि जब हर घर में रोशनदान थे। डॉ. प्रमोद कुश ’तन्हा’ के मुक्तक और सस्वर गजलों को भी कवियों और श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला- इन्हीं ख़ामोशियों में तो हमारी दास्तां गुम है, लबों की बर्फ़ पिघलेगी तो कुछ पैग़ाम देखेंगे, कहेंगे सच को सच तो साथ छोड़ेंगे सभी अपने, रहेंगे चुप तो पलकों के तले कुहराम देखेंगे।’

मुख्य अतिथि ओम प्रकाश यती की संवेदनशील गजलों से काव्य संध्या पूरी तरह गजलमय हो गई- निर्भया, श्रद्धा, शिवानी, अंकिता बन जाएगी। क्या पता कब कौन लड़की पीड़िता बन जाएगी। डॉ. रमा सिंह के गीतों और गजलों से सभी कवि और श्रोता झूम उठे- तुम्हे कैसे पता होगा, मैं कैसे दौर से गुज़रा, मेरी तनहाइयां चुप थीं, मगर मैं शोर से गुजरा, मेरे इस मन के मौसम ने, भी देखे हैं कई मौसम, कभी आंधी, कभी तूफां, घटा घनघोर से गुजरा। सभी रचनाकारों की रचनाओं को साथी कवियों और श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला और श्रोताओं ने भरपूर तालियों की गूंज के साथ प्रत्येक रचना का आनंद उठाया। एक आत्मीय काव्य संध्या को अपनी सहभागिता से सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए अखिल भारतीय अनुबन्ध फाउंडेशन के संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार कुश ’तन्हा’ द्वारा सभी कवियों, कवयित्रियों और शायरों के प्रति आभार व्यक्त किया गया।

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