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उत्तर प्रदेश

न्याय यात्रा: राहुल भावुकता से कोसो दूर खड़े दिखे , लगा नहीं कि अब वो अमेठी लौटेंगे या रायबरेली को अपनाएंगे

Kanishka Chaturvedi
21 Feb 2024 12:05 PM IST
न्याय यात्रा: राहुल भावुकता से कोसो दूर खड़े दिखे , लगा नहीं कि अब वो अमेठी लौटेंगे या रायबरेली को अपनाएंगे
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राहुल गांधी या गांधी परिवार के लिए अमेठी या रायबरेली सिर्फ एक लोकसभा क्षेत्र नहीं रहे हैं। मैंने इंदिरा, संजय और राजीव का समय तो नहीं देखा है पर मैं सोनिया और राहुल के समय का साक्षी रहा हूं। मैं चश्मदीद रहा हूं 2004 से लेकर 2019 के चुनावों तक का। इन चुनावों में गांधी परिवार के रोड शो, जनसंपर्क और रैलियों का। गांधी परिवार के सम्मोहन, जादू या कनेक्ट को मैंने देखा, परखा, तौला और महसूस किया है। सोनिया जो ठीक से हिंदी नहीं जानती थीं उनको मैंने गांवों की गलियों में उतरकर टूटे-फूटे कुछ शब्दों के साथ गांव की महिलाओं से बात करते देखा है, कंधे थपथपाते हुए देखा। गांव की उन बुर्जुग महिलाओं की पनियाई आंखों को देखा है जो प्रियंका गांधी को देखकर बरबस इंदिरा को याद कर लेती थीं। रो लेती थीं। मैंने इस बात पर लोगों को खुश होते हुए देखा है कि उन्होंने गांधी परिवार के लोगों को कितने करीब से देखा है। उनसे हाथ मिला ले जाने पर इतराते हुए देखा है। मैंने राहुल को लोगों को अपनी छाती से चिपकाकर सांत्वाना देते हुए देखा है। किसी आम आदमी की मोटर साइकिल पर बैठकर किसी जगह पहुंचते हुए देखा है।

राहुल बीते दो दिनों से अमेठी और रायबरेली में थे। मैं इस बार के मंजर का भी चश्मदीद रहा हूं। लगातार चुनाव हारने के बाद भी राष्ट्रीय राजनीति में राहुल का कद बढ़ा है। इस बार वो पूरे देश को मथकर आए थे। अनुभव की एक चमक उनके ललाट में दिख रही थी। बातों में सयानापन झलक रहा था। कुर्ते की बांहों की जगह चुस्त सफेद टीशर्ट थी। ट्रिम की हुई भूरी, काली, सफेद दाढ़ी का मिक्चर था। ओवरऑल राहुल की बॉडी लैंग्वेज पहले की तुलना में ज्यादा मेच्योर थी। पर कुछ था जो खटक रहा था। यह खटक राहुल का जनता के साथ कनेक्ट था। अमेठी और रायबरेली में भी राहुल वैसे ही दिखे जैसे वह नॉर्थ ईस्ट, बिहार, छत्तीसगढ़ या राजस्थान में थे। राहुल की बातें राजनीतिक थीं। इसमें बुराई नहीं है। राजनीतिक आदमी को राजनीतिक बातें करने का हक है। लेकिन समस्या यह थी कि राहुल रायबरेली और दूसरी जगहों का अंतर नहीं कर पाए। वह यह नहीं समझ पाए कि वह उस रायबरेली में खड़े हैं जिसकी पहचान पूरे भारत में गांधी परिवार के साथ चस्पा है।

रायबरेली के सुपर मार्केट चौराहे पर जनता से खचाखच भरी सड़क में जब उनकी आवाज पहली बार माइक में गूंजी तो चहुंओर तालियां बज गईं। सभी को नमस्कार के बाद जब राहुल ने बोलना शुरू किया तो वह दूसरे ही मिनट में अपने मुद्दे पर आ गए। जाति जनगणना, ओबीसी-एससी के प्रतिनिधित्व के उन बातों पर आ गए जो वह बीते 6 महीने से उठा रहे थे। जनता इस बात की प्रतीक्षा में थी कि राहुल कब इस जिले से अपने रिश्ते, अपने मां के रिश्ते, अपनी दादी के रिश्ते की कुछ परते खोलेंगे। कुछ अपनेपन की बातें करेंगे। बचपन शेयर करेंगे। बुजुर्ग लोगों के लिए राहुल की निशानदेही अभी भी इंदिरा के पोते या राजीव के बेटे के रूप में ही है। जनता चाहती थी कि राहुल उन रिश्तों को ताजा करें। जनता इस भाव में थी कि राहुल अपनी मां की बीमारी की वजह से लोकसभा से दूर हो जाने की बात करें। राहुल एक शब्द भी इन बातों पर नहीं बोले। राहुल रायबरेली के लोगों से उनके बारे में नहीं बोले। राहुल अमेठी के लोगों से अमेठी के बारे में नहीं बोले। अपनी मां, दादी, पिता या चाचा के बारे में नहीं बोले। राजनीति भावनाओं का खेल है, इसे समझे बिना राहुल, मोदी, अडानी, अंबानी और जाति जनगणना के बारे में बोलते रहे।

एक उम्मीदवार की तरह नहीं दिखे राहुल

राहुल 2019 का चुनाव अमेठी से हार चुके हैं। हारने के बाद उन्होंने इस क्षेत्र से एक दूरी बनाई। बीते पांच बरसों में एक या दो मौके ही ऐसे रहे हैं जब राहुल अमेठी गए हैं। इस बार जब राहुल अमेठी आ रहे थे तो इस बात के कयास लग रहे थे कि वह एक उम्मीदवार की तरह दिखेंगे। जो एक कनेक्शन जनता के साथ टूटा उसे रिपयेर करने की कोशिश करेंगे। हो सकता है कि वह अपनी हार के बारे में भी बात करें। ऐसा कुछ नहीं हुआ। राहुल व्यवहार अमेठी में वैसा ही था जैसा देश के किसी भी दूसरे राज्य में होता है। वह जनता के बीच नहीं गए। जनता से सीधी बात करने की कोशिश नहीं की। यह भाव-भंगिमा प्लानिंग का हिस्सा थी या ऐसा संयोग से हो गया। इसे नहीं कह सकते। लेकिन राहुल यहां अपनी पुरानी जनता के साथ पुराने राहुल की तरह पेश नहीं आए। वह एक राजनेता की तरह पेश आए जिसके लिए पूरा देश एक जैसा है।

अमेठी और रायबरेली दोनों विकल्प खुले हैं

राहुल गांधी के लिए अमेठी और रायरबेली दोनों विकल्प खुले हुए हैं। अमेठी में वह लौट सकते हैं और सोनिया गांधी की छोड़ी हुई सीट को अपना सकते हैं। इस यात्रा में दोनों ही लोकसभा क्षेत्र में उनके व्यवहार को देखकर लगा नहीं कि राहुल फिर से अमेठी लौट जाएंगे या फिर रायबरेली को अपना लेंगे। रायबरेली की जनता में इस बारे में कयासों का दौर छिड़ा हुआ है कि राहुल कौन से क्षेत्र से लड़ सकते हैं। राजनीति से जुड़े लोगों का कहना है कि राहुल के लिए हारी हुई अमेठी से बेहतर सीट जीती हुई रायबरेली हो सकती है। प्रियंका गांधी बेशक अमेठी से अपनी शुरुआत कर सकती हैं। लेकिन राहुल की भाव-भंगिमाएं ऐसा कोई संकेत नहीं दे गईं।

Kanishka Chaturvedi

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