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अंग्रेजों का राज आते ही शुरू हो गई थी मुकदमेबाजी, 1884 में आया बाहरी दरवाजा खुला रखने का आदेश
पांच नवंबर, 1860 को मीर राजिब ने डिप्टी कमिश्नर के यहां आवेदन देकर राम चबूतरे को तोड़ने की मांग की। चबूतरा व मंदिर वहीं था, जहां अकबर ने पहले इजाजत दी थी।
रामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष को लगभग 350 साल हो चुके थे। अंग्रेजों का राज आ चुका था। पर, श्रीरामजन्मभूमि अब भी विवादों में थी। मुकदमेबाजी शुरू हो चुकी थी। जन्मभूमि स्थल पर डटे निहंग सिख रोजाना स्थानीय प्रशासन और मस्जिद के पक्षकारों का प्रतिकार करते थे।
पांच नवंबर, 1860 को मीर राजिब ने डिप्टी कमिश्नर के यहां आवेदन देकर राम चबूतरे को तोड़ने की मांग की। चबूतरा व मंदिर वहीं था, जहां अकबर ने पहले इजाजत दी थी। कुछ माह बाद 12 मार्च, 1861 को राजिब के साथ असगर और अफजल ने एक और प्रार्थना पत्र देकर चबूतरे के साथ बैरागी साधुओं की कोठरी को अवैध बताते हुए हटाने की मांग की। असगर ने कुछ दिन बाद चरण पादुकाओं को हटाने की मांग कर दी। फिर, 1873 में वहां रह रहे महंत बलदेव दास को बेदखल करने की मांग की।
दावा किया कि चहारदीवारी के भीतर की एक-एक इंच मस्जिद की है और मूर्तियां हटाकर पूरा परिसर उन्हें सौंपा जाए। निहंग सिखों के खिलाफ 1858 के केस में नमाज पढ़ने का कोई उल्लेख नहीं था। प्रशासन ने इस आधार पर मूर्ति हटाने या बलदेवदास को बेदखल करने के बजाय ढांचे की उत्तर दीवार में नया दरवाजा बनवा दिया।
असगर ने 1877 में कमिश्नर के यहां इसे बंद करने की दरख्वास्त दी। कमिश्नर के निर्देश पर डिप्टी कमिश्नर ने रिपोर्ट में लिखा, असगर की याचिकाएं हिंदुओं को नाराज कर शांति व्यवस्था भंग करने की कोशिश है। मस्जिद पक्ष चाहता है कि जन्मस्थान आने वाली भीड़ प्रबंधन के लिए प्रशासन उन पर निर्भर हो जाए।
बाहरी दरवाजा खुला रखने का आदेश
साल 1881-82 असगर ने मस्जिद के सामने आंगन व चबूतरे पर अधिकार बताते हुए तत्कालीन महंत रघुबर दास से किराया दिलाने की मांग की। फैजाबाद के उपन्यायाधीश हरि किशन ने दावे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, असगर ने चबूतरा व मस्जिद के सामने तख्त पर रघुबर दास का अधिकार खुद माना है, इसलिए किरायादारी साबित नहीं होती। कोर्ट ने रामनवमी, कार्तिक पूर्णिमा सहित अन्य अवसरों पर यहां दुकानें लगाने की इजाजत दे दी। तब असगर ने असिस्टेंट कमिश्नर से अपील की कि रघुबर दास का अधिकार सिर्फ सीता रसोई व चबूतरे तक है, पर वे मस्जिद की दीवार की पुताई से रोक रहे हैं। कमिश्नर ने 1884 में दास को मरम्मत कराने से रोक दिया, लेकिन असगर को ढांचे के बाहरी दरवाजे पर ताला न लगाने की हिदायत दी।