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पत्रकारिता और साहित्य में सामंजस्य कायम करना है तो कुलदीप तलवार के 90 साल के जीवन में झांकना होगा : डॉ चेतन आनंद

Nandani Shukla
7 Dec 2024 4:13 PM IST
पत्रकारिता और साहित्य में सामंजस्य कायम करना है तो कुलदीप तलवार के 90 साल के जीवन में झांकना होगा : डॉ चेतन आनंद
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कुलदीप तलवार का जाना

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गाजियाबाद। गाजियाबाद जैसे महानगर में रहकर देश-दुनिया के हालात पर निगाह रखने वाले पत्रकार अब विरले ही बचे हैं। बिना संसाधनों के भी धारदार और तर्कसंगत एवं बेबाक विचार देने वाले पत्रकारों की गिनती करें तो हाथों की उंगलियों पर दो या तीन नाम ही आ पाएंगे। उस पर ऐसे पत्रकार जो साहित्यकार भी हैं, उनके नामों पर विचार करें तो बहुत कम नाम ध्यान में आते हैं। आज प्रतिस्पर्धा के युग में केवल समाचार बांचने का काम भर रह गया है अश्खबार नवीसों के पास। विचार बांचने की स्वतंत्रता और ख्याल जैसे हवा होते जा रहे हैं। पहले सुदर्शन कुमार चेतन, सेरा यात्री, विनय संकोची, कमल सेखरी, शिव कुमार गोयल, तेलूराम काम्बोज, कृष्ण मित्र, कृष्ण चंद मधुर, जितेन्द्र भारद्वाज, आचार्य मुनीश त्यागी, रवि अरोड़ा, विनय संकोची जैसे पत्रकार होते थे, जिनके लेखों को पढ़कर हम बड़े हुए हैं। इन्हीं के बीच एक सम्मानित नाम है कुलदीप तलवार जी का। कुलदीप तलवार भारत-पाक बंटवारे की त्रासदी झेलने के बाद जीवित बचकर गाजियाबाद आ बसे थे।

बजरिया में रहकर भारतीय खाद्य निगम में महाप्रबंधक की नौकरी की, लेकिन मन से साहित्यकार कुलदीप जी ने लेखनी का साथ कभी नहीं छोड़ा। उनके शौक ने पाकिस्तान के अनुभवों के अलावा अन्य देशों पर भी लेख लिखने के लिए उन्हें प्रेरित किया। उन्होंने अनेक लेख बड़े अखबारों के लिए लिखे। भीतर से साहित्यकार कुलदीप तलवार जी को शेरो शायरी से भी बड़ा लगाव रहा। कादम्बिनी जैसी पत्रिका में उनका एक नियमित कॉलम प्रकाशित होता था। उसमें वे अनेक शायरों के अशआर दिया करते थे। हजारों अशआर उनकी जुबान पर रहते थे। उनकी याददाश्त बहुत मजबूत थी।

वह एक बार जिस कवि या शायर को सुन लेते थे उसकी कविता और अशआर या नज्म को कभी नहीं भूलते थे। मुझे याद है कि उन्होंने गाजियाबाद के एक साहित्यिक कार्यक्रम में मेरी चर्चित कविता ‘तुम्हारी याद’ सुनी थी। उसे सुनने के बाद उनकी आंखों में आंसू थे। कार्यक्रम समाप्त होने पर वह छड़ी के सहारे चलकर मेरे पास आये और मुझे भरपूर आशीर्वाद दिया। कविता की बहुत प्रशंसा की। इसके बाद मैं तो उन्हें इतना याद नहीं रख सका लेकिन उन्होंने मुझको समय-समय पर अक्सर फोन किये। फोन करके कहते थे ‘चेतन जी कुलदीप तलवार बोल रहा हूं। आपकी वो मां वाली कविता ‘तुम्हारी याद’ सुनने का बड़ा मन है। एक बार फिर रोना चाहता हूं। इस कविता से ही उनके भीतर मैं अपना स्थान बना सका था।

अखबारों में कवि सम्मेलनों या गोष्ठियों के समाचार पढ़ते तो मुझे फोन करके मुबारकबाद जरूर देते थे। मेरे बारे में कुछ भी पढ़ते तो उनका फोन जरूर आता था। लेकिन अब उनके फोन नहीं आएंगे। क्रूर काल ने उन्हें हमसे अनायास ही छीन लिया। इस बात का दुख मुझे हमेशा रहेगा। कवि गोष्ठियों और साहित्यिक आयोजनों में उनकी सक्रियता देखते ही बनती थी। हर कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति उन्हें बड़ा बनाती थी। नये रचनाकारों की हौसला अफजाई करने का तरीका भी उनका सबसे अलग होता था। एक पिता, एक भाई, एक मित्र और एक संरक्षक की तरह उनका स्नेह, प्यार और दुलार भुलाये नहीं भूलता। जैसे-जैसे उनके बारे में लिख रहा हूं उनका मुस्कुराता चेहरा और उनकी कही हुई बातें रह-रहकर याद आ रही हैं। मन द्रवित हो रहा है।

एक और किस्सा याद आया। मेरे गुरुदेव महाकवि डॉ. कुंअर बेचैन जी ने एक दिन मुझसे कहा कि चेतन शहर में जो साहित्यकार बीमार हैं उनका हाल पूछने जाना चाहिए। इसी क्रम में हम पहले कृष्ण मित्र और फिर कुलदीप तलवार जी से मिले। कुलदीप तलवार के घर गये तो हमें देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हमें अशोक नगर स्थित अपने आवास के अंदर के कमरे में ले गये। वहां बैठकर घंटों बातें हुईं हुमारी। चाय-नाश्ता भी बीच-बीच में चलता रहा। मेरी ‘तुम्हारी याद’ कविता भी उन्होंने एक बार फिर सुनी। किताबों का आदान-प्रदान भी हुआ। मैं अपने देवप्रभा प्रकाशन से प्रकाशित दो पुस्तकें भी साथ ले गया था।

उन्हें मैने जब अपनी पुस्तकें भेंट कीं तो बोले मेरी भी एक किताब छाप देना। मैने गुमनाम शायरों के अधूरे अशआरों को काफी तलाश कर पूरा किया है। एक बड़ा काम हुआ है। मैने हामी भर दी थी लेकिन एक बार उनकी पांडुलिपि आते-आते रह गई। मुझे उनका ईमेल तो मिला लेकिन उसमें किताब का मैटर अटैच नहीं था। फिर उन्होंने इसी साल तकरीबन तीन महीने पहले मेरे पत्रकार मित्र सुदामा पाल के माध्यम से फोन पर बात की और कहा कि मेरी किताब तुम्हें ही प्रकाशित करनी है। मैं सुदामा के मार्फत आपको प्रकाशन सामग्री भिजवा दूंगा। लेकिन अब उनके जाने के बाद लगता है कि मुझे उनका सपना अवश्य पूरा करना चाहिए। मेरी कोशिश रहेगी कि मैं उनकी किताब को सबके सामने लेकर आऊं। शायद उनकी अंतिम हार्दिक इच्छा भी यही हो।

मैं सच कह रहा हूं कि साहित्य को मन में बसाकर स्वच्छ, स्वस्थ और पारदर्शी पत्रकारिता के माध्यम से विचारों को शब्द रूप में प्रस्तुत करने वाले पत्रकार अब गाजियाबाद में बहुत कम दिखाई देते हैं। वैसे भी पत्रकार आजकल सरकारी मशीनरी के दबाव में ज्यादा हैं। रोजाना संघर्ष कर रहे हैं। किसी तरह से अपनी लेखनी के माध्यम से लोगों को जैसे-तैसे विचार बांट रहे हैं। आज चुनौतियां ज्यादा हैं। लेकिन उन्हीं चुनौतियों से जूझकर निकलने के लिए हमें कुलदीप तलवार के जीवन के आदर्शों को अपनाना होगा। उनके कृतित्व से प्रेरणा लेनी होगी। भारत-पाक बंटवारे की त्रासदी झेलकर कैसे लोगों तक अपनी बात पहुंचानी है, कैसे लोगों को जोड़ना है, कैसे उनसे जुड़ना है, कैसे पत्रकारिता और साहित्य में सामंजस्य कायम करना है, कैसे सबके दिलों में जगह बनानी है, इन सब सवालों के जवाब ढूंढने हैं तो हमें कुलदीप तलवार के 90 साल के जीवन में झांकना होगा। उनकी बातों को अपने जीवन में उतारना होगा। यही हम सबकी ओर से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कुलदीप जी को कोटि-कोटि प्रणाम।

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