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उत्तर प्रदेश

श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर में सावन के चौथे सोमवार को शिवभक्तों की भीड़ उमड़ी, जानें चौथा सोमवार क्यों है खास

Neeraj Jha
12 Aug 2024 8:28 AM GMT
श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर में सावन के चौथे सोमवार को शिवभक्तों की भीड़ उमड़ी, जानें चौथा सोमवार क्यों है खास
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कई शुभ संयोग के चलते सावन मास का चौथा सोमवार बहुत खास रहाः श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज

गाजियाबाद। सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में सावन के चौथे सोमवार को जलाभिषेक के लिए शिवभक्तों की भीड उमडी। भगवान की पूजा.अर्चना व जलाभिषेक करने के लिए मंदिर में कई शहरों के हजारों शिवभक्त पहुंचे। भगवान दूधेश्वर का भव्य श्रृंगार नागेश्वर के रूप में किया गया, जो भक्तों के आकर्षण का केंद्र रहा। शिवभक्तों ने श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर के पीठाधीश्वर, दिल्ली सन्त महामण्डल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद भी लिया। श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि कई शुभ संयोग के चलते सावन मास का चौथा सोमवार बहुत खास रहा। सोमवार को प्रातः 7.55 तक सावन मा​ह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी ​तिथि व उसके बाद से सावन शुक्ल अष्टमी तिथि रही।

सप्तमी तिथि के अधिपति देव भगवान चित्रभानु हैं। इस तिथि में सूर्य देव की पूजा करना बहुत ही शुभ रहता है। प्रातः से शाम 4 बजकर 26 मिनट तक शुक्ल योग होने, उसके बाद से ब्रह्म योग लगने व प्रातः 8.33 तक पर स्वाति नक्षत्र रहने से सावन के चौथे सोमवार की महत्ता बढ गई। ऐसे शुभ संयोग में भगवान शिव की पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने व रूद्राभिषेक करने से भगवान शिव व माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।

साथ ही शुक्ल योग में रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव के साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है और जीवन में धन.धान्यए ऐश्वर्य व समृद्धि की कमी नहीं रहती है। मंदिर में भगवान के जलाभिषेक का सिलसिला रात्रि 12 बजे से शुरू हुआ, मगर भक्तों की कतारें रात्रि 10 बजे से ही लगने लगी थीं। मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि ने भगवान दूधेश्वर की पूजा.अर्चना व जलाभिषेक किया। उसके बाद भक्तों ने जलाभिषेक करना शुरू किया। 2 बजे से 4 बजे तक भगवान का रूद्राभिषेक किया गया व उनका नागेश्वर के रूप में भव्य श्रृगार किया गया। महंत गिरिशानंद गिरी महाराज ने भगवान की धूप व दीप आरती की। भगवान को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग भी लगाया गया। 4 बजे के बाद जलाभिषेक का सिलसिला फिर शुरू हुआ, जो निरंतर चलता रहा।

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