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उत्तर प्रदेश

भाजपा ने उपचुनाव में संजीव शर्मा को बनाया गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट पर प्रत्याशी

Neelu Keshari
24 Oct 2024 12:52 PM IST
भाजपा ने उपचुनाव में संजीव शर्मा को बनाया गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट पर प्रत्याशी
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- गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट का परिसीमन होने के बाद कांग्रेस, सपा को नहीं मिली जीत

- 2007 में गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट के अंतर्गत आता था साहिबाबाद का भी क्षेत्र

- 2012 में परिसीमन के बाद साहिबाबाद बना अलग विधानसभा क्षेत्र

नीरज झा

गाजियाबाद। गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर बृहस्पतिवार को भाजपा ने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर दी है। इस सीट पर भाजपा ने 17 साल बाद ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाते हुए भाजपा महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। जल्द ही इस सीट पर सपा भी अपने प्रत्याशी का नाम घोषित करेगी। बसपा से पीएन गर्ग ने यहां पर नामांकन के लिए नामांकन पत्र खरीदा है, वह भी जल्द ही नामांकन करेंगे।

वर्ष 2007 तक हुए विधानसभा चुनाव में गाजियाबाद जिले में पांच विधानसभा सीट आती थीं। इनमें गाजियाबाद, मोदीनगर, मुरादनगर, हापुड़ और गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा की सीट शामिल है। गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट को वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव तक 372 - गाजियाबाद के नाम से जाना जाता था। उस वक्त साहिबाबाद का क्षेत्र में भी इसी विधानसभा क्षेत्र में आता था। वर्ष 2012 में परिसीमन के बाद इसे 56 - गाजियाबाद के नाम से जाना जाता है। 2012 में परिसीमन के बाद साहिबाबाद विधानसभा क्षेत्र अलग हो गया।

गाजियाबाद से हापुड़ और गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीट को भी बाहर कर दिया गया है। जिले में वर्ष 2012 से गाजियाबाद, मोदीनगर, मुरादनगर के साथ ही लोनी और साहिबाबाद समेत कुल पांच विधानसभा क्षेत्र आते है। 2007 के विधानसभा चुनाव में गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट का क्षेत्र बड़ा था, यहां पर मतदाताओं की संख्या उस वक्त 8,85,807 थी। चुनाव में भाजपा से सुनील कुमार शर्मा को 88,489, बसपा से सुरेश बंसल को 62,834, कांग्रेस से सुरेंद्र कुमार मुन्नी को 48,785 और सपा से जितेंद्र यादव को 27,708 वोट मिले थे।

मतदाताओं की संख्या

गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 4,61,360 है। इनमें अनुसूचित जाति के 80-85 हजार, ब्राह्मण समाज के 75-80 हजार, वैश्य समाज के 60-65 हजार, मुस्लिम समाज के 70-75 हजार मतदाता हैं। जो कि निर्णायक स्थिति में हैं, इसी वजह से जातीय समीकरण को साधना पार्टियों के लिए चुनौती है।

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