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उत्तर प्रदेश

शवों के आते ही चीखों और चीत्कार से गूंजा गांव, मंजर देख हर किसी के निकले आंसू, तस्वीरें

SaumyaV
25 Feb 2024 7:14 AM GMT
शवों के आते ही चीखों और चीत्कार से गूंजा गांव, मंजर देख हर किसी के निकले आंसू, तस्वीरें
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कासगंज में हुए ट्रैक्टर-ट्रॉली हादसे के बाद एटा के गांव नगला कसा में शनिवार की देर शाम शव पहुंचना शुरू हुए तो गांव का माहौल गमगीन हो गया। शव वाहन पहुंचने पर गांव के लोग वाहन की ओर दाैड़ जा रहे थे, उत्सुकता थी कि किसका शव आया। गांव की महिलाएं हो या बच्चे, युवा हों या बुजुर्ग, सभी की आंखें नम थी। बस एक ही बात लोगों के मुंह से निकल रही थी कि किस मनहूस घड़ी में गंगा स्नान को गए थे।

शाम के समय शव पहुंचने पर कोई बेटे के लिए रो रहा था तो कोई पिता के लिए। किसी ने पत्नी को खोया तो किसी ने पति को। आलम ऐसा था कि मौके पर पहुंचे प्रशासनिक अधिकारियों की भी आंखें नम हो गईं। प्रशासन ने शवों के अंतिम संस्कार की तैयारी की। लेकिन गांव के लोगों ने रात का हवाला देकर अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। लोगों ने रिश्तेदारों के आने का हवाला दिया।

लाइट की कराई व्यवस्था

गांव में अंधेरा होने पर और शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया गया। इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने गांव में लाइट की व्यवस्था कराई। इसके अलावा सर्दी से बचाव के इंतजाम करने की बात कही।

बच्चों की मौत से थम गईं घर आंगन की किलकारियां

ट्रैक्टर-ट्रॉली के हादसे में आठ बच्चों की मौत हो गई। घर के आंगन में जिनकी किलकारियां गूंजती थी उनकी मौत के बाद इन घरों के आंगन वीरान हो गए। ये बच्चे न तो बचपन ही जी पाए और न ही जवानी देख पाए। बच्चों की मौत से परिवार के लोग चीत्कार कर रहे हैं वहीं बच्चों के शव देखकर न जाने कितने लोगों की आंखों में आंसू आ गए।

जिसका होना था मुंडन उसकी भी मौत

इस हादसे में जिसका मुंडन संस्कार होना था उस बच्चे सिद्दू (एक वर्ष) की मौत हो गई। जबकि इस हादसे में देवांशी (5 वर्ष), कुलदीप (12 वर्ष), संध्या (3 वर्ष), कार्तिक (3 वर्ष), पायल (दो माह), लड्डू उर्फ सनी (2वर्ष), सुनैना (10 वर्ष) प्रियांशु उर्फ रॉयल (6वर्ष) की किलकारियां सदैव के लिए थम गईं। इन बच्चों की खेलकूद, मौज मस्ती और किलकारियों के सहारे इनके माता पिता का बच्चों के चेहरे की मुस्कान देखकर जीवन कट रहा था। यह बच्चे न तो अपना बचपन ही जी पाए थे और न ही परिवार के लोगों को लंबी खुशियां दे सके।

बच्चों के शव देख हुए भावुक

जवानी की दहलीज तो इन बच्चों से दूर थे। यदि जवानी की दहलीज पर पहुंचते तो अपने माता पिता व परिवार करा सहारा बनते। बच्चों की मौत से हर कोई द्रवित था। अस्पताल में और पोस्टमार्टम गृह पर घटना की सूचना पर पहुंचने वाले लोग इन बच्चों के शव देखकर भावुक हो रहे थे।

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