Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

अतीत का अलीगढ़ 7: जातिगत जनगणना करते थे अंग्रेज, दलितों थे सबसे ज्यादा, हिंदुओं को ऐसे होती थी गिनती

Abhay updhyay
21 Nov 2023 4:45 PM IST
अतीत का अलीगढ़ 7: जातिगत जनगणना करते थे अंग्रेज, दलितों थे सबसे ज्यादा, हिंदुओं को ऐसे होती थी गिनती
x

राज्य सरकार ने एक शासनादेश के जरिए प्रदेश के सभी जिलों के लिए नया जिला गजेटियर तैयार करने का आदेश दिया है। उसके लिए कमेटियों का गठन किया जा रहा है। अलीगढ़ का अंतिम गजेटियर 1909 में तैयार किया गया था। लगभग 400 पेजों की इस पुस्तक में लगभग 114 साल पुराने अलीगढ़ के भूगोल, नदियों, प्रशासनिक व्यवस्था, सिंचाई व ड्रेनेज सिस्टम, पुलिस व्यवस्था आदि के बारे में विस्तार से वर्णन है। इस संबंध में अतीत का अलीगढ़ नाम से एक समाचार श्रृंखला शुरू की जा रही है। उम्मीद है कि पुराने अलीगढ़ के बारे में जानकारी पाठकों को रुचिकर लगेगी। कृपया अपनी राय से हमें अवगत कराएं।

वर्तमान में जातिगत जनगणना विवाद का मुद्दा बनी है। अंग्रेजी शासनकाल में जनगणना में जातियां भी गिनी जाती थीं। यही नहीं, व्यक्ति किस मत का पालन करता है, इसकी भी गणना की जाती थी। अंग्रेज गोत्र तक गिनते थे। 1901 की जनगणना के मुताबिक दलितों की संख्या जिले में सबसे ज्यादा थी। इन्हें हिंदू में ही गिना जाता था। उनकी संख्या 222852 थी, जो जिले में हिंदुओं की कुल जनसंख्या का 21.56 फीसदी थी, जो सभी जिलों में सबसे ज्यादा थी। सिर्फ खैर और इगलास अपवाद थे जहां जाटों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी। दलितों में बहुसंख्यक लोग मजदूरी के पेशे से जुड़े थे। जनसंख्या कागजात में दलितों को मूल रूप से चमार लिखा गया था। इनकी कई उपजातियां थीं। जाटव लोगों की संख्या सबसे ज्यादा थी। मेरठ और आगरा संभाग में भी इनकी संख्या काफी ज्यादा थी।


संख्यात्मक रूप से ब्राह्मण दूसरी बड़ी जाति थी, साहूकारी के व्यवसाय से जुड़ी थी यह जाति

जिले में दलितों के बाद संख्यात्मक रूप से दूसरी बड़ी जाति ब्राह्मण थी। इनकी संख्या 130902 थी जो कुल जनसंख्या का 12.66 फीसदी थी। पूरे जिले में ब्राह्मणों की संख्या ठीकठाक थी। अतरौली और सिकंदराराऊ इसके अपवाद थे। ब्राह्मणों के पास संपत्ति और जमीनें ज्यादा थीं। बड़ी संख्या में ब्राह्मण जमींदार थे। ब्राह्मण लोग मुख्यतः खेती, साहूकारी और धन के लेन-देन के व्यवसाय से जुड़े थे। शुरुआती दौर के बैंकिंग व्यवसाय से भी ब्राह्मण लोग जुड़े थे। अलीगढ़ के ब्राह्मणों में मुख्यतः सनाढ्य और गौड़ ब्राह्मण थे। अधिकतर लोगों का गोत्र सारस्वत और गौतम था। रोचक बात यह है कि चूंकि अंग्रजों को गोत्र की समझ नहीं थी। लिहाजा इन्हें सारस्वत और गौतम ट्राइब ( कबीले) से जुड़ा हुआ दिखाया जाता था।

जाटों की संख्या भी 10 फीसदी से ज्यादा थी

जिले में जाटों की संख्या 107868 थी जो हिंदुओं की कुल जनसंख्या 10.43 फीसदी थी। खैर और इगलास में इनकी संख्या सबसे ज्यादा थी, लेकिन हाथरस और जिले के अन्य इलाकों में भी इस जाति के लोगों की उपस्थिति थी। अंग्रेज प्रशासन जाटों को बेहद मेहनतकश और कृषि व्यवसाय में कुशल मानता था। तत्कालीन दस्तावेज में जाटों की इस खासियत का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है। इनकी भी कई उपजातियों का उल्लेख है। गूजर और ठकुरेल को अंग्रेजों ने जाट जाति के भीतर माना। जाटों का मूल स्थान हसनगढ़ परगना माना गया। इनका पूर्वज बिक्रम ठाकुर को माना गया। इनके कब्जे में तकरीबन 1046 ईस्वी में 54 गांव थे। दूसरा नाम तेनवास का था जिन्होंने 16वीं शताब्दी में टप्पा जवार का इलाका कब्जाया। यह क्षेत्र बाद में मुरसान और हाथरस के रूप में विकसित हुआ। टप्पल के जाटों ने अपना खंडेहा नाम परगना की राजधानी से जोड़ा। पिसावा के जाट चाबुक उपसंभाग से जुड़े हुए हैं। पंवार, डागर, तोमर, माहूर और सिनसिनवार उपजातियों की संख्या भी ठीकठाक थी।


नौ फीसदी के लगभग थी राजपूतों की संख्या

1901 की जनगणना में अलीगढ़ जिले में राजपूतों की संख्या 91403 थी। यह हिंदुओं की कुल जनसंख्या का 8.84 फीसदी थी। अलीगढ़, सिकंदराराऊ और हाथरस में इनकी संख्या 20 हजार से ज्यादा थी। खैर को छोड़कर अन्य इलाकों में इनकी संख्या काफी कम थी। राजपूतों में जादोन बहुसंख्या में थी। इन्हें चंद्रवंशीय क्षत्रिय माना जाता है। इनकी संख्या 33232 थी। इनकी मौजूदगी जिले में सब स्थानों पर थी। लेकिन बड़ी संख्या अलीगढ़ में ही रहती थी। चौहानों की संख्या 18234 थी। चौहान मुख्यतः खैर, सिकंदराराऊ और अलीगढ़ में रहा करते थे। गहलोतों की संख्या 3195 और तोमर 2360 की संख्या में मौजूद थे। इन्हें भी राजपूतों की श्रेणी में ही रखा गया था।

वैश्य वर्ग में अग्रवाल और बारासैनियों की संख्या थी सबसे ज्यादा

वैश्य अथवा बनिया लोगों की भी संख्या उल्लेखनीय थी। इनका निवास जिले में सभी स्थानों पर था। 1901 में इनकी संख्या 45649 थी। यह हिंदुओं की कुल संख्या का 4.38 फीसदी थी। इनकी भी कई उपजातियां थीं। इनमें सबसे ज्यादा अग्रवाल थे जिनकी संख्या 17126 थी। सिकंदराराऊ में अग्रवालों की मौजूदगी बेहद कम थी। यहां वैश्यों में बारासैनियों की संख्या सबसे ज्यादा 9379 थी। माहेश्वरी लोगों की संख्या 2380 थी। इनमें से ज्यादातर लोग जिले के दक्षिणी हिस्से में रहते थे। अग्रवाल और बारासैनी बिरादरी के लोगों का दावा था कि वे अलीगढ़ में पंजाब के अग्रोहा जिले से पलायन करके आए थे। अग्रोहा को शहाबुद्दीन गोरी ने तहस-नहस कर दिया था।

अन्य जातियां

जिले की अन्य जातियों में सबसे ज्यादा उल्लेखनीय संख्या लोध लोगों की थी। इनकी संख्या 39660 गिनी गई थी। इनकी गिनती मेहनतकश और कुशल किसानों में की जाती थी। ये लोग मुख्यतः अतरौली, कोल और अकराबाद में रहा करते थे। कई लोगों के पास जमींदारी भी थी। इसके अलावा जिले में गड़रिया 36105, कोरी 34030, कहार 32781, अहीर 26307 की संख्या में थे। सफाई कर्म से जुड़े लोगों की संख्या 26846 थी। नाई 25259, काछी 22398 संख्या में थे। खटिकों की संख्या 20808, कुम्हारों की 19368, धोबी 13609, कायस्थ 9322, माली 8207 धुनिया 7675 की संख्या में थे।

Next Story