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पेड़ों की छांव में हुई 117वीं राष्ट्रीय गोष्ठी, भाईचारे की बात
पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 117 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी संपन्न
मार मुझको न तू ही मर भाई, भाईचारे की बात कर भाई ।
लड़ने-भिडने की सोच से पहले, इसके अंजाम से भी डर भाई
पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 117 वीं मासिक साहित्यिक गोष्ठी अपनी विशिष्ट प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हुई । अक्टूबर 2014 से अनवरत संचालित गोष्ठी का यह 117 वां पड़ाव था । समकालीन कविता पाठ पर समर्पित, श्रेष्ठ रचनाकारों द्वारा गीत गजल और कविताओं का सरस पाठ किया गया ।
काव्य पाठ हेतु वरिष्ठ साहित्यकार बी.के वर्मा शैदी, गजलकार ख़ुमार देहल्वी, अनिमेष शर्मा आतिश, पंडित प्रेम बरेलवी सहित कवयित्री सत्यवती मौर्य , पल्लवी मिश्र, शशि किरण की सहभागिता रही । वरिष्ठ नवगीतकार जगदीश पंकज की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गोष्ठी का संचालन संयोजन अवधेश सिंह बंधुवर ने सफलता पूर्वक किया।
गोष्ठी का आरंभ ख्यात शायर पंडित प्रेम बरेलवी ने वर्तमान समय की मुश्किलों और चलन पर चुनिंदा शेर के साथ मुकम्मल गजल पढ़ी- जिन्दगी से ही उजाला ले गया , आंख मेरी आंख वाला ले गया । हम उसे बस चाहते ही रह गए, और उसने दिल निकाला ले गया । वह जिसे हमने मसीहा कर दिया, छीन कर मुंह से निवाला ले गया । लूट कर हिंदोस्तान को दोस्तों, पहले गोरा अबके काला ले गया
प्रख्यात शायर बी.के वर्मा शैदी ने स्मृतियों को ही अपने शब्दों से संवारते हुए कहा–यादों की बस्ती में जाना अच्छा लगता है, कुछ बातें फिर-फिर दोहराना अच्छा लगता है। जिसमें रखी हुई हैं तुमसे वाबस्ता चीजें, वो लोहे का बक्स पुराना, अच्छा लगता है।
देश में भाईचारा और अमन की अपील करते ख्यातिप्राप्त गजलकार ख़ुमार देहल्वी ने पढ़ा–मार मुझको न तू ही मर भाई, भाईचारे की बात कर भाई । लड़ने-भिडने की सोच से पहले, इसके अंजाम से भी डर भाई ।
गीतकार-शायर अनिमेष शर्मा आतिश ने संजीदा वक्त को कुछ अलग लहजे में कहा–टूटता हो स्वप्न प्यारा या विफल होता प्रयास / कुल जगत में कौन ऐसा जो न होता हो उदास / फिर चुने नव पथ सतत उद्धम करें आगे बढ़ें / भोर आए प्रेयसी बन दें सफलता का उजास।
नवगीतकार जगदीश पंकज ने 'फिर मंथन चल रहा' शीर्षक से गीत पढ़ा–फिर मंथन चल रहा किस तरह जन की रहे तन्त्र से दूरी। जन बस उलझा रहे कि कैसे रहे सुरक्षित दाना-पानी राजनीति की पगडंडी पर चलती रहे रोज़ मनमानी / शोषण की किस तरह व्यवस्था रहे यथावत और जरूरी । साधनहीन बजायें ताली बैठें, पंडालों में आकर जय-जयकार करें राजा का मांगें भी कुछ, तो सकुचाकर भूखे पेट भजन में रत हों देकर शासन को मंजूरी ।
गोष्ठी का संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ने “भेड़िया” शीर्षक से समाज के बीच छदम रूप में निवास कर रहे अमन चैन विरोधी वर्ग को उजागर किया वहीं “युद्ध क्षेत्र में बच्चे” शीर्षक से गाजा पर अमानवीय ढंग से हो रही भीषण बमबारी से असमय मौत को प्राप्त हो रहे बहुसंख्यक नवजात शिशुओं पर एक भावपूर्ण भावुक मार्मिक कविता सुनाई ।
मुंबई से गोष्ठी में शामिल कवयित्री सत्यवती मौर्य ने पढ़ा- “बहुत भीड़ है और तन्हा बशर है, जिसे जी रहे ज़िंदगी बेअसर है”। शायरा पल्लवी मिश्र ने मानवीय रिश्तों की ताजगी को लम्हों में बयां करते कहा – “बिना बच्चे की किलकारी के घर अच्छा नहीं लगता, बिना पंछी के कलरव के शजर अच्छा नहीं लगता । मशक्कत से शिखर पर वह पहुँच तो है गया लेकिन, उसे अपनों को नीचे छोड़कर अच्छा नहीं लगता।
इसी क्रम में कवयित्री शशि किरण ने उम्र की ढालान पर उभरने वाले वैवाहिक जीवन में आई नीरसता को शब्दों से बयां करते हुए कविताएं पढ़ीं । देर शाम तक चली राष्ट्रीय गोष्ठी में लगातार टिप्पणियों और हौसला आफजाई का क्रम बना रहा । आभासी पटल पर सम्पन्न गोष्ठी को 300 से ज्यादा कविता प्रेमियों ने सुना – देखा और वाह वाही हुई ।
रिपोर्ट -
अवधेश सिंह संचालन
(संपर्क वार्ता - 9450213555)