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उत्तर प्रदेश

पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 113 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी: कवि दंपती ने काव्य पाठ की अभूतपूर्व युगलबंदी की

Tripada Dwivedi
30 July 2024 12:03 PM GMT
पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 113 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी: कवि दंपती ने काव्य पाठ की अभूतपूर्व युगलबंदी की
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खास मुखड़े –

कजरारे दो नैना कह देंगे सब कुछ जो हैं इनको कहना

सावन तो बहाना है मिलना सखियों से बाबुल घर जाना है....

डुबो दो खुशी में, लिखो न उदासी।

तुम्हें फिर है लिखना कोई गीत साथी......

मुझे लग रहा है ऐसा, मुझे प्यार हो रहा है

कोमल सी आत्मा का श्रंगार हो रहा है....

सपने सभी के पूरे नहीं हो सके यहां,

जीते सभी हैं जिंदगी कुछ कुछ कमी के साथ...

खोला है अस्पताल नया आइये कभी,

वो छूट दे रहे हैं कई सर्जरी के साथ...

तेरे न रहने का दुख है इस दिल में,

आंखे नम कर जाता है बारिश का पानी ।

तुम आयें तो साथ लाएं खुशबू के डेरे ,

चम्पा सा महकाता है बारिश का पानी।

खुद को खुद के पास बुला ले,

तनिक प्यार से पास बिठा ले,

अरे कहीं अवरोध नहीं है,

खुद सारी गुत्थी सुलझा ले।

गाजियाबाद। पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 113 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी में इस बार कवि दंपति द्वारा काव्य पाठ की विशिष्ट अभूतपूर्व युगल बंदी हुई । पति पत्नी के द्वारा घर समाज के साथ साहित्य की निरंतर सेवा साहित्य जगत में हमेशा सम्मान के साथ देखा जाने वाला सृजन के प्रति समर्पण रहा है । इस दृष्टिकोण से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक पहल के अंतर्गत "पेड़ों की छांव तले संस्था" द्वारा जानकारी जुटा कर आज सिर्फ कवि दंपति को जोड़े के साथ काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया ।

'कविता – दोहे - गीत गजल' विधा को समर्पित इस गोष्ठी में रिमझिम सावन से जुड़े सरोकार , प्रेम तथा पर्यावरण से जुड़ी रचनाएं पढ़ी गईं । ख्यात साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ कवि – लेखक अवधेश सिंह के मंच संचालन में क्रमश: कवि दंपति राकेश नमित एवं नमिता राकेश, मनोज अबोध एवं रूबी मोहंती तथा संजय सागर एवं रश्मि लहर मंच को काव्य गरिमा प्रदान की । इस विशिष्ट गोष्ठी का स्वरूप अन्य गोष्ठियों से अलग दिखा । प्रबुध श्रोताओं और ख्यात साहित्यकार दम्पतियों ने हर बार की तरह गोष्ठी को नई बुलंदियों तक पहुंचाया ।

"सावन की रिमझिम फुहार" विषय पर समर्पित राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी के प्रारम्भ में लखनऊ से शामिल होने वाले कवि दंपति संजय सागर और रश्मि 'लहर' ने अपना काव्य पाठ किया । पत्नी रश्मि 'लहर' ने सरस्वती वंदना के साथ कुछ दोहे और गीत पढे- "डुबो दो खुशी में, लिखो न उदासी। तुम्हें फिर है लिखना कोई गीत साथी।। भरो भावनाएं अलंकृत करो नेह, पुकारो कलम से कोई मीत साथी"। इसी का साथ देते हुए और विषय पर केन्द्रित होते हुए कवि पति संजय 'सागर' ने गीत पढ़ा – "मुझे लग रहा है ऐसा, मुझे प्यार हो रहा है | कोमल सी आत्मा का श्रंगार हो रहा है"। प्रेम समर्पण में रची बसी रचनाओं ने श्रोताओं से वाह वही लूटी ।

दूसरे कवि दंपति मनोज अबोध एवं रूबी मोहंती रहे । वर्षा ऋतु में सावन का विशेष महत्व है और इस मौसम में रूमानियत का बढ़ना तय है इन विचारों के साथ प्रसिद्ध महिला पत्रिका "वनिता" की डेस्क संपादक कवि पत्नी रूबी मोहंती ने प्रारम्भ में कुछ कविताओं के साथ माहिया पढे – "कजरारे दो नैना कह देंगे सब कुछ जो हैं इनको कहना । सावन तो बहाना है मिलना सखियों से बाबुल घर जाना है । झूला अमराई में झूलेगें हम तुम मिल कर तनहाई में । काटें कैसे रतियां चमके जब बिजुरी धड़के मोरी छतियां" । सुना कर गोष्ठी का दिल जीता ।

इसी क्रम में कवि-पति मनोज अबोध ने सुर के साथ दोहे –गीत –गजल का पाठ किया – "जीवन के इम्तिहान में हम फेल ही रहे / कितने सवाल हल किए कंपलसरी के साथ । सपने सभी के पूरे नहीं हो सके यहाँ / जीते सभी हैं ज़िंदगी कुछ कुछ कमी के साथ" । तथा प्रबुद्ध मंच की वाह – वाही के पात्र बने ।

तीसरे कवि दंपति के रूप में राकेश नमित तथा नमिता राकेश ने मंच को गरिमा प्रदान की । कवि-पति राकेश नमित ने भीगे मौसम में रूमानी गज़लें पढ़ीं – "मौसम बदल रहे हैं खयालात की तरह, जीवन भी लग रहा है हवालात की तरह। तुझमें वो बात पहले सी आती नहीं नज़र, मिलता नहीं है अब तू शुरूआत की तरह"। वहीं कवि पत्नी नमिता राकेश ने इश्क को शिद्दत के साथ शब्दों में समेत कर गीत पढ़ा – "मोहब्बत में इतना जो तड़पाओगे तुम तो अपने किए की सजा पाओगे तुम । रक़ीबों से जब तुमको जिल्लत मिलेगी तो नमिता के चौखट पर खुद आओगे तुम"और वाह वाही प्राप्त की ।

मंच संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ने सावन की फुहार विषय पर ही अपनी पत्नी पर समर्पित कविता "वेनिटी बैग" के साथ अतीत को याद करते सजल का पाठ किया – "तेरे न रहने का दुख है इस दिल में, आंखे नम कर जाता है बारिश का पानी । तुम आयें तो साथ लाएं खुशबू के डेरे, चम्पा सा महकाता है बारिश का पानी। रिम झिम बरखा और फुहारें शीत भरी, दिल में आग लगाता है बारिश का पानी"। तथा मंच का समर्थन प्राप्त किया ।

अंत में देर शाम तक चली इस शानदार गोष्ठी की अध्यक्षता निभा रहे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर डॉ महेश दिवाकर ने अपने उद्बोधन में सभी कवि दम्पतियों को आशीर्वाद देते हुए उन्हे समाज उपयोगी सृजन के लिए शुभकामनाए प्रदान की तथा शिल्प और भाषा में भारतीयता बनी रहे इसके लिए आगाह किया । साथ ही कुछ मुक्तक और दोहे पढे- "खुद ही खुद से दूर हुआ है, इसीलिए मजबूर हुआ है, कितनी पीड़ा भोग रहा है, जब से खुद से दूर हुआ है।" खुद को खुद के पास बुला ले, तनिक प्यार से पास बिठा ले, अरे कहीं अवरोध नहीं है, खुद सारी गुत्थी सुलझा ले"।

फेसबुक आभासी पटल पर आयोजित और लाइव प्रसारित राष्ट्रीय गोष्ठी को दूर दूर से श्रोताओं और दर्शकों ने देखा और आनंद लिया ।

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