Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 112 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी सम्पन्न

Neeraj Jha
24 Jun 2024 12:45 PM GMT
पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 112 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी सम्पन्न
x

खास मुखड़े -

बंद अरसे से पड़ीं वह खिड़कियाँ खोलो / तोड़कर चुप्पी चलो कुछ तो हँसो बोलो ।

जब अपनो ने दे दिये, ऐसे ऐसे घाव। मनोचिकत्सक क्या करें, कैसे समझें भाव ॥

टपके हरदम झोपड़ी,जब भी हो बरसात। पक्की-छत को सोचते,गुजरे रहे दिन रात॥

गाजियाबाद। पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ की 112 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी अपनी निरंतरता के साथ सम्पन्न हुई । प्रबुध श्रोताओं और ख्यात साहित्यकारो ने हर बार की तरह गोष्ठी को नई बुलंदियों तक पहुंचाया । यह अद्भुत काव्य गोष्ठी जून माह के चौथे रविवार को देर शाम कवियों और श्रोताओं को जोड़े रही । ‘कविता – दोहे - गीत गजल’ विधा को समर्पित इस गोष्ठी में वर्षा ऋतु के आगमन से लेकर सामाजिक सरोकार , प्रेम तथा पर्यावरण से जुड़ी रचनाएँ पढ़ी गईं । ख्यात नवगीत कार जगदीश पंकज की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ कवि – लेखक अवधेश सिंह के मंच संचालन में नवगीतकार साहित्यभूषण शिवानंद सहयोगी मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन रहे । अन्य विशिष्ट अतिथियों में ख्यातिप्राप्त गजलकारा तूलिका सेठ एवं नवगीत की सशक्त हस्ताक्षर अनामिका सिंह ‘अना’ के साथ कवि क्रमशः डॉ शंकर सिंह, मनोज कामदेव एवं शशि किरण ने सरस काव्य पाठ किया ।

अध्यक्षता निभा रहे नवगीत कार जगदीश पंकज ने नवगीतों से समय को आईना दिखाते गीतों को पढ़ा- “कुछ पुरानी याद कुछ अनुभव नये / हम तुम्हारे पास लेकर आ गये । पंख खोले, फडफडाकर डाल से / एक गौरैया उछलती फिर रही चीं-चिंयाती, शरद के संताप से / आ मुँडेरी की सतह पर गिर रही, कहीं अपनापन मिले इस आस में / खुरदरे अहसास मन पर छा गये ।”। और गजल पढ़ी – “हवा कैसी यहाँ पर आ रही है, सदा को आग सा सुलगा रही है । करीने से सजे सब खत – किताबत, सियासत जिनसे ईंधन पा रही है” ।

साहित्यभूषण शिवानंद सिंह सहयोगी ने शहरी जीवन की विषमताओं को अपने गीतों में उकेरा- “यदि कबीर तुम,अब तक होते । रोज़ जुटाते लौना-लकड़ी, नहीं उठा पाते तुम छकड़ी, छोड़ गए होते वृंदावन, बेटा-बेटी पोती-पोते” । पुनः वर्तमान राजनीति पर कहा “दिल्ली' में फूलों की वर्षा, 'गया' धूप अनबूझ, मौसम बड़ा अबूझ । टीस रहे सामान्य ज्ञान के, राजनीति के घाव, सड़क-सड़क पर मौत बेचते, बाज़ारों के भाव, त्राहिमाम सन्नाटा के घर, तड़प रही है सूझ, मौसम हुआ अबूझ”।नवगीत लेखन की सशक्त हस्ताक्षर अनामिका सिंह ‘अना’ ने सरोकारी गीत पढे - बंद अरसे से पड़ीं वह खिड़कियाँ खोलो / तोड़कर चुप्पी चलो कुछ तो हँसो बोलो /शामियाने फट गए अपनत्व के सारे / स्वार्थ में कसदन चले संवाद के आरे / हर अदावत भूलकर लगकर गले रो लो ! / खेत में खलिहान में मेले-मदारो में / साथ थे कल , रेत अब मन के कछारों में / सींच लो बंजर,नमी की धार तो खोलो”

ख्यात गजलकारा तूलिका सेठ ने दोहों के साथ गीत और गज़लों से आज की संध्या की नयी उचाइयाँ प्रदान की । तुलिका सेठ ने दोहों से अपनी बात शुरू करते हुए बात प्रारम्भ की – “मौन समर्पण कर दिया था इतना विश्वास , आंखे साँसे दिल सभी, थे उनके ही पास ॥ जब अपनो ने दे दिये ऐसे ऐसे घाव , मनोचिकत्सक क्या करें कैसे समझें भाव” ॥ गजल की शुरुआत करते हुए कहा “प्यार मोहब्बत उलफत पर हैरान हुई, मै अपनी ही किस्मत पर हैरान हुई । कहने पर चाहा तो तुमने क्या चाहा, मै तो ऐसी चाहत पर हैरान हुई” ॥

नवोदित कवि डॉ शंकर सिंह ने पढ़ा – “जिंदगी रंग है, कभी उड़ती पतंग है / कभी गिरती पतंग है, जिंदगी रंग है । कभी रंगारंग है, कभी बदरंग है / कभी तंग है, दुनिया दंग है । अपनों का संग है, मन का हुड़दंग है / स्वप्न होता भंग है, जिंदगी रंग है”।

कवयित्री शशि किरण ने कान्हा में रचे बसे दोहे पढे – “प्रेम उगाऊँ प्रेम सौं,प्रेम की डालूँ खाद / प्रेम कटाऊँ प्रेम सौं, प्रेम पाऊँ परसाद ।।, प्रेम जलाऊँ प्रेम सौं,दीपक प्रेम सामान / प्रेम बले घृत प्रेम सौं,बाती प्रेम सामान” । कवि मनोज कामदेव ने दोहे पढे- “सूरज बागी हो गया , आग उगलती छाँव । पंछी छत पर बैठ कर रोज जलाते पाँव ॥ रात जरा आधी थमी , खोला रोशन दान । गमलों ने मुझसे कहा खो बैठे पहचान ” ।

मंच संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ने वर्षा ऋतु पर गरीब और वंचितों के हालत पर दोहे पढे .... “टपके हरदम झोपड़ी, जब भी हो बरसात। पक्की छत को सोचते, गुजरे रहे दिन रात ॥ चुआ पसीना साल भर, छप्पर हर बरसात। बूंद टपकती कह रही, मुझ गरीब की बात॥ रिसता पूरा घर जहां , चौमासे बरसात । हाकिम देख वहां तलक , मौसम के हालात”॥ और आज के समय पर गीत पढ़ा . “क्यों प्रदूषण बढ़ रहा है, सोच के संसार में.।

Next Story