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क्या है मरीन कमांडो फोर्स मार्कोज, जिसे अरब सागर में हाईजैक शिप को छुड़ाने भेजा गया; कितनी खतरनाक?
नौसेना ने पूरे शिप को कब्जे से छुड़ाने के लिए अपनी इलीट मार्कोज टीम को भी उतारा। इस टीम को शिप में मौजूद हाईजैकर्स को मार गिराने के साथ सभी क्रू मेंबर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। ऐसे में यह जानना अहम है कि मार्कोज कमांडो आखिर हैं कौन?
अरब सागर में हाईजैक हुए कार्गो शिप एमवी लीला नोर्फोक को भारत ने एक विशेष अभियान के तहत 24 घंटे के अंदर छुड़ा लिया। शिप में सवार 15 भारतीयों समेत सभी 21 क्रू सदस्यों के भी सुरक्षित होने की पुष्टि की गई है। इस जहाज में नौसेना की मार्कोज टीम ने सैनिटाइजेशन ऑपरेशन चलाया। हालांकि, शिप में सोमालियाई आतंकियों की मौजूदगी नहीं मिली। माना जा रहा है कि भारतीय नौसेना की ओर से चेतावनी जारी होने के बाद हाईजैकर्स खतरे को भांपते हुए जान बचाकर भाग निकले।
गौरतलब है कि ब्रिटेन के मैरिटाइम ट्रैफिक ऑर्गनाइजेशन ने बताया था कि शिप पर पहले 5-6 हाईजैकर्स मौजूद हैं। हालांकि, 15 भारतीयों को बचाने के लिए भारतीय नौसेना ने एक युद्धपोत, मैरिटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर्स और पी-8आई लॉन्ग रेंज एयरक्राफ्ट के अलावा प्रीडेटर एमक्यू9बी ड्रोन भी भेजा था। इन सबके अलावा नौसेना ने पूरे शिप को कब्जे से छुड़ाने के लिए अपनी इलीट मार्कोज टीम को भी उतारा। इस टीम को शिप में मौजूद हाईजैकर्स को मार गिराने के साथ सभी क्रू मेंबर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई।
ऐसे में यह जानना अहम है कि मार्कोज कमांडो आखिर हैं कौन? इस टीम के सदस्य आम नौसैनिकों से कितने अलग हैं? इन्हें किस तरह के विशेष अभियानों में लगाया जाता है? और इनकी ट्रेनिंग किस तरह होती है?
कौन हैं मार्कोज?
भारतीय नौसेना में 1987 में इलीट कमांडो फोर्स मार्कोज का गठन हुआ था। यह सुरक्षाबल देश के अग्रिम सुरक्षाबल नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (एनएसजी), वायुसेना की गरुड़ और थलसेना की पैरा स्पेशल फोर्स की तर्ज पर गठित किए गए। मार्कोज या मरीन कमांडो फोर्स में नौसेना के उन सैनिकों से बना बल है, जिनकी ट्रेनिंग सबसे कठिन होती है। मार्कोज के काम करने का तरीका बिल्कुल अमेरिका की इलीट नेवी सील्स जैसा है, जिसने समुद्र में पाइरेसी की कई कोशिशों को नाकाम किया है।
कैसे चुने जाते हैं मार्कोज कमांडो?
पहला चरण
इस इलीट कमांडो फोर्स में चयन इतना आसान नहीं है। इसमें भारतीय नौसेना में काम कर रहे उन युवाओं को लिया जाता है, जो बेहद मुश्किल हालात में खुद को साबित कर चुके हों। बताया जाता है कि चयन के दौरान जवानों की पहचान के लिए जो टेस्ट होते हैं, 80 फीसदी से ज्यादा उसी दौरान बाहर हो जाते हैं।
दूसरा चरण
इसके बाद सेकंड राउंड में 10 हफ्तों का टेस्ट होता है, जिसे इनिशियल क्वालिफिकेशन ट्रेनिंग कहते हैं। इसमें ट्रेनी को रात जागने, बगैर खाए-पिए कई दिनों तक अभियान में जुटे रहने लायक ताकत हासिल करने का प्रशिक्षण मिलता है। सैनिकों को लगातार कई दिनों तक महज दो-तीन घंटों की नींद लेते हुए काम करना पड़ता है। पहली स्क्रीनिंग को पार करने वाले 20 फीसदी लोगों में से अधिकतर इस इन टेस्ट में ही थककर बाहर हो जाते हैं। मजेदार बात यह है कि जो बचते हैं, उनकी आगे और खतरनाक ट्रेनिंग होती है।
तीसरा चरण
इसके बाद समय आता है एडवांस ट्रेनिंग का। पहली दो स्टेज के बाद बचे-खुचे कुछ नौसैनिकों को ही इस चरण में मौका मिलता है। यह ट्रेनिंग तीन साल तक चलती है। इस दौरान जवानों को हथियारों-खाने पीने के बोझ के साथ पहाड़ चढ़ने की ट्रेनिंग, आसमान-जमीन और पानी में दुश्मनों का सफाया करने का प्रशिक्षण और दलदल जैसी जगहों पर भी भागने की ट्रेनिंग दी जाती है।
चौथा चरण
ट्रेनिंग के दौरान जवानों को अत्याधुनिक हथियारों को चलाना सिखाया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें तलवारबाजी और धनुष-बाण जैसे पारंपरिक हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। मार्कोज के लिए कमांडो को विषम से विषम परिस्थिति में केंद्रित रहना सिखाया जाता है। इन जवानों को टॉर्चर झेलने से लेकर साथी नौसैनिकों की मौत के दौरान मिशन की कामयाबी सुनिश्चित करने के लिए मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाता है।
इस दौरान जवानों को जो सबसे कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है, उसका नाम है हालो और हाहो ट्रेनिंग। हालो कद के तहत कमांडो को करीब 11 किलोमीटर की ऊंचाई से कूदना होता है। वहीं, हाहो में जवान आठ किलोमीटर की ऊंचाई से कूदते हैं। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को कूद से सिर्फ आठ सेकंड बाद ही पैराशूट खोलना होता है।
किस तरह के मिशन को देते हैं अंजाम?
नौसेना की इस स्पेशल टुकड़ी का मकसद कांउटर टेररिज्म, किसी जगह का खास निरीक्षण, अनकंवेंशनल वॉरफेयर जैसे केमिकल-बायोलॉजिकल अटैक, बंधकों को छुड़ाना, जवानों को बचाना और इस तरह के खास ऑपरेशनों को पूरा करना है। समुद्र में डकैती, समुद्री घुसपैठ और हवाई जहाज की हाईजैकिंग तक के लिए मार्कोज के जवान ट्रेन किए जाते हैं। इस फोर्स की सबसे खतरनाक बात होती है इनकी खुफिया पहचान। यानी नौसेना के आम ऑपरेशन के अलावा ये जवान गुपचुप तरीके से विशेष अभियानों का हिस्सा बनते हैं।
मार्कोज का नारा है- द फ्यू, द फियरलेस है। इस इलीट फोर्स के नाम ऑपरेशन कैक्टस, लीच, पवन और चक्रवात के खतरों से निपटने के कई उपलब्धियां हैं। ऑपरेशन कैक्टस के तहत मार्कोज ने मालदीव में रातोंरात तख्तापलट की कोशिशों को रोक दिया था। इस दौरान इस फोर्स ने आम लोगों के साथ बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाया था। भारत में मुख्यधारा में इस फोर्स की चर्चा 26/11 मुंबई हमलों के बाद शुरू हुई, जब इस फोर्स ने ताज होटल से आतंकियों के सफाए में मदद के लिए ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेटो शुरू किया था। इतना ही नहीं इस इलीट फोर्स ने 1980 के दौर में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान ऑपरेशन पवन चलाया था, जिसके जरिए लिट्टे के कब्जे वाले कई क्षेत्रों को छुड़ाने में मदद मिली थी।