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हरियाणा में क्या हैं नए समीकरण, गठबंधन टूटने से किसे कितना नफा-नुकसान?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने हरियाणा में चौंकाने वाला कदम उठाया है। मंगलवार को मनोहर लाल और उनके मंत्रियों ने इस्तीफे सौंप दिए। साथ ही भाजपा ने जजपा से नाता तोड़ लिया। आइए जानते हैं गठबंधन टूटने से किसे कितना नफा-नुकसान?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा में सियासी उठापटक हुई। मंगलवार को भाजपा ने जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन तोड़ दिया। इसके साथ ही अपना मुख्यमंत्री भी बदल दिया। भाजपा ने हरियाणा में चौंकाने वाला फैसला लेते हुए मनोहर लाल की जगह प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी को नया मुख्यमंत्री बनाया है।
कुरुक्षेत्र से सांसद और ओबीसी समुदाय के चेहरे सैनी को मंगलवार शाम को हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। नायब सिंह सैनी के साथ पांच मंत्रियों कंवरपाल गुर्जर, मूलचंद शर्मा, रणजीत सिंह चौटाला, जेपी दलाल और डॉ. बनवारी लाल ने भी शपथ ली। पांचों मनोहर सरकार में भी मंत्री थे। फिलहाल कोई नया चेहरा शामिल नहीं किया गया है।
केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर मंगलवार सुबह मुख्यमंत्री मनोहर लाल और 13 मंत्रियों ने इस्तीफे सौंपे। इस्तीफे के बाद दिल्ली से आए पर्यवेक्षक केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, तरुण चुघ और प्रभारी बिप्लब कुमार देब की मौजूदगी में भाजपा विधायक दल की बैठक में नायब सिंह सैनी को विधायक दल का नेता चुना गया। सैनी के नाम का प्रस्ताव मनोहर लाल ने ही रखा।
विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद नायब सिंह सैनी ने राजभवन पहुंचकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। इसी के साथ पिछले कई दिनों से जजपा के साथ गठबंधन आगे रखने की खबरों पर भी विराम लग गया। पार्टी ने जजपा के साथ चार साल से चले आ रहे गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया। कांग्रेस ने इसे नाटक बताया है और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने और दोबारा चुनाव करवाने की मांग की है।
आइए जानते हैं गठबंधन टूटने से किसे कितना नफा-नुकसान
भाजपा को नफा
गैर जाट व ओबीसी वोट पाले में आ सकते हैं।
विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर रुकेगी।
जजपा अलग होने से जाट वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है।
भाजपा को नुकासन
मनोहर लाल पंजाबी वोटों के लिए बड़ा चेहरा थे। इससे पंजाबी वोट छिटक सकते हैं।
आठ महीने बाद विधानसभा के चुनाव हैं, सरकार चलाने का सैनी के पास अनुभव नहीं है।
जजपा को नफा
फिलहाल जजपा को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है।
जजपा को नुकसान
सरकार में नहीं होने की वजह से अब कार्यकर्ताओं के काम नहीं होंगे। नाराजगी बढ़ेगी।
जजपा के पांच विधायक पार्टी के नेतृत्व के साथ संपर्क में नहीं है, वह पाला बदल सकते हैं।
गठबंधन टूटने के बारे में पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, जो लोगों को पच नहीं रहा।
लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने पर पार्टी को नतीजे मनमुताबिक नहीं मिलते हैं तो विधानसभा चुनाव में मुश्किल हो सकती है।
कांग्रेस को नफा
सरकार का चेहरा बदलने के फैसले को कांग्रेस जनता के सामने भाजपा की नाकामी के तौर पर पेश कर रही है।
गठबंधन टूटने के फैसले को कांग्रेस भाजपा-जजपा को गुप्त समझौते के तौर पर जनता के सामने रखेगी।
कांग्रेस को नुकसान
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जजपा के अलग लड़ने से कांग्रेस के ही वोट कटेंगे।
इनेलो को नफा
जनपा के कार्यकर्ता इनेलो में लौट सकते हैं। दोनों का वोट बैंक एक ही था
सहानुभूति योट मिल सकते हैं।
इनेलो को नुकसान
फिलहाल खास फर्क नहीं।