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अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसी नौबत में फंसे बिहार के यह तीन दिग्गज; खोया बहुत, पाया शून्य
यह जल्दबाजी होगी, लेकिन अब सब्र वाली स्थिति भी नहीं क्योंकि सवाल राजनीतिक गलियारे में गूंज रहा है
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों का बंटवार 18 मार्च को किया था। उसके पहले, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस को समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई कि परिवार मत छोड़िए, जिद छोड़िए। उसी तरह विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को अभी से लेकर बिहार विधानसभा चुनाव तक की तस्वीर दिखाकर एनडीए ने ऑफर दिया। पशुपति कुमार पारस जिद पर अड़े रहे और 18 मार्च को सीट बंटवारे से अपना नाम गायब देख अगले दिन केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ एनडीए से बाहर निकल आए। आए तो पटना कि राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू यादव इज्जत बख्शेंगे। लेकिन, न तो पारस को कुछ नसीब हुआ और न सहनी ही कोई डील कर सके। एक डील जन अधिकार पार्टी के सर्वेसर्वा राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने दिल्ली जाकर कांग्रेस से की तो उसका हश्र भी आज महागठबंधन की पार्टियों में सीट बंटवारे के साथ दिख गया। अब इनका क्या होगा? देखिए, क्या हुआ और अब क्या होगा?
खोने वालों में नंबर 1 : पशुपति कुमार पारस
करीब छह महीने पहले से 'अमर उजाला' ने कई बार यह एंगल सामने लाया कि भारतीय जनता पार्टी अंतिम तौर पर चिराग पासवान को ही तवज्जो देगी। पशुपति कुमार पारस इस भ्रम में रहे कि जब दिवंगत रामविलास पासवान की पार्टी के दो टुकड़े हुए तो भाजपा ने उन्हें तवज्जो दी। वह यह नहीं समझ सके कि तवज्जो नहीं, वह मजबूरी थी। तब चिराग पासवान और बिहार में भाजपा की मदद से सीएम बने नीतीश कुमार दुश्मन थे। चिराग को पिछले कुछ महीनों से मिल रही तवज्जो से पारस को सबक लेनी चाहिए थी, नहीं ली। चिराग के लिए भाजपा की ओर से हाजीपुर सीट पर हरी झंडी से पारस को समझना चाहिए था, नहीं समझे। नतीजा यह हुआ कि सीट बंटवारे में लोक जनशक्ति पार्टी के नाम की घोषणा के बाद भी पारस नहीं समझे कि वह चाहें तो भतीजे चिराग पासवान के साथ बैठकर बात कर सकते हैं। नतीजा यह हुआ कि लोजपा के नाम पर घोषित पांचों सीटें लोजपा (रामविलास) के खाते में गईं और लोजपा (राष्ट्रीय) का नाम लेकर पशुपति कुमार पारस किनारे हो गए। किनारे होने के बाद भी वह केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देकर भाजपा के साथ बने रहते तो कुल्हाड़ी पैरों पर रहकर भी काटती नहीं। लेकिन, उन्होंने खुद ही कुल्हाड़ी मार ली।
अब क्या कर सकते हैं-
विकल्प 1. चिराग पासवान ने अबतक पांच में से दो ही सीटों पर प्रत्याशी का एलान किया है, पशुपति कुमार पारस सीधे भाभी रीना पासवान के पास पहुंचकर भतीजे चिराग पासवान से अपने लिए सीट मांगकर एनडीए में बने रह सकते हैं। 2. कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक से कोई एक सीट बची तो वह उससे मांग सकते हैं। कांग्रेस उन्हें समस्तीपुर से मौका दे सकती है। 2. राजद ने अभी खगड़िया में प्रत्याशी नहीं दिया है, वह अपने गृह जिले के लिए राजद के पास जा सकते हैं। 4. राजनीतिक अस्तित्व के लिए अपनी पार्टी के और प्रत्याशी जुटाकर खुद हाजीपुर में चिराग पासवान से लड़ने के लिए उतर सकते हैं।
खोने वालों में नंबर 2 : मुकेश सहनी
विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को 2020 में बनी बिहार सरकार में मंत्री बनाया गया था। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने प्रत्याशी भी इनके सिंबल पर उतारे थे, जाे जाहिर तौर पर कभी भी एकमुश्त वापस हो सकते थे। वही हुआ भी। तब सहनी विधान परिषद् के रास्ते आए थे। सहनी आराम से रहते तो शायद टिक जाते, लेकिन कुछ-न-कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि वह निकल गए। फिर उन्होंने भाजपा से दूरी बना ली। लोकसभा चुनाव के पहले जब महागठबंधन और एनडीए में से कोई उन्हें तवज्जो नहीं दे रहा था, तब भी सहनी आगे बढ़कर नहीं गए। उन्हें यह समझ में नहीं आया कि जातीय आधार पर हरी सहनी को जब भाजपा इतना आगे बढ़ाते हुए मंत्री की कुर्सी तक पहुंचा चुकी है और जदयू भी मदन सहनी को मंत्री का पद दे ही रहा है तो वह जातीय जनगणना में 2.60 प्रतिशत आबादी के नाम पर अपने लिए बहुत बड़ी डील करने की स्थिति में नहीं हैं। वह इस आधार पर डील चाहते थे और यह भी नहीं दिखाना चाह रहे थे कि उनकी ऐसी कोई खास चाहत है। इस चक्कर में एनडीए ने किनारे छोड़ दिया। अब 2019 में इन्हें साथ रखने वाले महागठबंधन में भी इनके लिए जगह नहीं बनाई गई।
अब क्या कर सकते हैं-
विकल्प 1. मुकेश सहनी की पार्टी ने पिछली बार मधुबनी, खगड़िया और मुजफ्फरपुर में प्रत्याशी दिए थे। सहनी खुद खगड़िया से उतरे थे। मुजफ्फरपुर सीट इस बार कांग्रेस, खगड़िया सीपीएम और मधुबनी राजद के पास है। राजद से ही अपने लिए कुछ मांग सकते हैं। 2. एनडीए में भाजपा या जदयू से बात कर अपने लिए एक सीट मांग लें। 3. राजनीतिक कॅरियर बचाने के लिए कुछ सीटों पर अपना प्रत्याशी अलग से उतारें।
खोने वालों में नंबर 3 : पप्पू यादव
बिहार में जन-सरोकारों को लेकर आंदोलन के लिए पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की बनाई जन अधिकार पार्टी चर्चित रहती थी। इस चर्चित पार्टी का पप्पू यादव ने कांग्रेस में जाकर विलय करा दिया। इस विलय से पहले वह राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से मिलने गए थे। उसके बाद पार्टी का विलय करते समय पप्पू यादव ने मान लिया था कि उन्हें कांग्रेस पूर्णिया से प्रत्याशी बनाएगी। लेकिन, कांग्रेस की एक नहीं चली। राजद ने जदयू सरकार की पूर्व मंत्री बीमा भारती को पूर्णिया की सीट देने के नाम पर अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाई और फिर सिंबल भी दे दिया। अब शुक्रवार को पूर्णिया सीट की औपचारिक घोषणा भी हो गई कि राजद के खाते में है। हालांकि, पप्पू यादव अब भी यहां कांग्रेस का झंडा बुलंद किए जाने की बात कह रहे हैं।
अब क्या कर सकते हैं-
विकल्प- 1. कांग्रेस समझौते के तहत पूर्णिया से पप्पू यादव को सिंबल नहीं देगी तो वह निर्दलीय खड़ा हो सकते हैं। 2. कांग्रेस सिंबल दे दे तो एनडीए-राजद के साथ पप्पू भी नामांकन दाखिल कर सकते हैं। 3. अपनी पार्टी को वापस जिंदा करने की औपचारिक घोषणा कर सकते हैं।