Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य समाचार

मूर्तियां गढ़ शिल्पियों के सपने हो रहे साकार...कठिन आचार-व्यवहार, संयम का पालन कर तैयार की प्रतिमा

Sanjiv Kumar
16 Jan 2024 6:55 AM GMT
मूर्तियां गढ़ शिल्पियों के सपने हो रहे साकार...कठिन आचार-व्यवहार, संयम का पालन कर तैयार की प्रतिमा
x

अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर तैयारियां जोरों पर है। 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। वहीं, मूर्तियां गढ़ शिल्पियों के सपने साकार हो रहे हैं। मूर्तिकार सत्यनारायण ने भी प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रतिमा बनाई है। ओडिशा के बालासोर जिले के बांकीपोडा गांव के रहने वाले मूर्तिकार पूर्णचंद्र महाराणा ने भी मंदिर के अन्य हिस्सों में लगी मूर्तियां बनाई हैं।

रामलला के भव्य मंदिर का भूतल तैयार है। मंदिर को दिव्य, भव्य और सुंदर बनाने में गिलहरी समान योगदान देने वाले शिल्पी अपने भाग्य पर इतरा रहे हैं। सबके अपने सपने थे और ये कैसे साकार हुए, इनकी बड़ी ही दिलचस्प कहानियां हैं।

आइए जानते हैं, रामलला की मूर्ति गढ़ने वाले तीन मूर्तिकारों में से एक सत्यनारायण पांडे और मंदिर के अन्य हिस्सों में लगी मूर्तियों को बनाने वाले पूर्णचंद्र महाराणा की कहानियां। महेंद्र तिवारी से खास बात में इन मूर्तिकारों ने कहा...हमने जो सपने देखे वे साकार हो रहे।

स्वप्न में आए हनुमान और रामलला की मूर्ति को गढ़ने में जुट गए सत्यनारायण

राजस्थान के सत्यनारायण पांडेय ने रामलला के बाल स्वरूप की तीन में से एक मूर्ति तैयार की है। इन्होंने मंदिर के लिए गरुण व हनुमानजी सहित अन्य मूर्तियां भी बनाई हैं, जिन्हें स्थापित कर दिया गया है। इनका दावा है कि रामलला की मूर्ति बनाने से पहले इन्हें हनुमानजी ने स्वप्न में दर्शन दिए। इतना ही नहीं मूर्ति जब तैयार हो गई तो वेदपाठ सुनाने वाले युवा ब्राह्मण को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देते हुए और अपने लिए पानी की मांग की।

करोड़ों पत्थरों में एक निकलता है, जिससे बनी है मूर्ति

सत्यनारायण बताते हैं, मैं 2022 में दीपावली के समय अयोध्या आया था। कारसेवकपुरम में विहिप के एक नेता से मिला। मैं रामलला की दो छोटी मूर्तियां सीएम योगी आदित्यनाथ को भेंट करने के लिए लाया था। वहां दोनों मूर्तियां भेंट की। उनसे रामलला की मूर्ति बनाने पर बात हुई। वह जयपुर आए तो पिताजी के समय के पुराने पत्थर दिखाए। 10 फुट लंबा, चार फुट चौड़ा व तीन फुट मोटा अत्यंत सुंदर पत्थर था। ऐसा करोड़ों पत्थरों में एक निकलता है। वह उस पत्थर का एक टुकड़ा लेकर चले गए। चंपत राय व अन्य ने उसे पंसद किया। संदेश मिलते ही पत्थर भेज दिया। फिर मुझे बुलाया। निर्देश हुआ कि कनक भवन में भगवान के दर्शन कर आएं। वहां देखा कि श्रीराम सरकार की मूर्ति जिस पत्थर से बनी है, मेरा पत्थर भी उसी खान का है। राजस्थान के मकराना में पाड़कुआं बेल्ट का यह पत्थर है। कनक भवन में भगवान की 15 वर्ष उम्र वाली मूर्ति है। राम-सीता की शादी 14-15 वर्ष की उम्र में हुई थी। उसी मूर्ति का 5 वर्ष का बाल स्वरूप अवतरित करना था।

छह माह में तैयार कर निशुल्क दी

सत्यनारायण बताते हैं, जहां हम मूर्ति बनाते हैं, उसी के नजदीक विवेक-सृष्टि में पढ़ाई करने वाले कुछ लड़के रहते हैं। उनमें एक त्रिपुरारी शरण त्रिपाठी हैं। वह मूर्ति की पूजा करने आता-जाता था। रामलला सुबह चार बजे उसके सपने में आए और बोले कि मेरी मूर्ति के आगे आज पानी नहीं रखा। उसने सुबह आकर यह बात बताई और कहा कि आपके रामलला को मैंने सपने में देखा है। वास्तव में प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्राकट्य की यही स्थिति होती है। छह महीने में मूर्ति बनाई। दो सहयोगी साथ थे। 12 से 18 घंटे काम किया। मैंने यह मूर्ति निशुल्क दी है।

रामलला में दिव्यता के लिए की शिव की मनोदशा की कल्पना

सत्यनारायण बताते हैं कि तुलसीदासजी ने श्रीराम के जिस स्वरूप का वर्णन किया, उसका ध्यान किया। ऐसा स्वरूप जिसे देखकर भक्त अपलक निहारता रहे। सुध-बुध खो दे। भगवान शिव जिस तरह मां पार्वती को लंका से लौटने पर हनुमान के अपने प्रभु श्रीराम से मिलन की कथा सुनाते हुए सुध-बुध खो बैठे थे, उसी मनोदशा को ध्यान में रखकर रामलला की मूर्ति तैयार की। मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व वाली दिव्यता लाने में सफल रहा। त्रिपुरारी कहते हैं, तीन मूर्तिकार जहां मूर्तियां बना रहे थे, वहां नौ वेदपाठियों की पूजा के लिए ड्यूटी थी। हम तीन-तीन लोगों के समूह में सुबह-शाम जाते थे और बनाई जा रही मूर्तियों की पूजा के बाद वेद मंत्र सुनाते थे। 15-15 मिनट पूजा का तय था।

कठिन आचार-व्यवहार, संयम का पालन कर तैयार की प्रतिमा

सत्यनारायण बताते हैं कि मूर्ति के लिए आए अयोध्या तो सुबह 5 बजे पहुंचे। करीब छह बजे सो गए। सोने के बीच हनुमानजी सपने में आ गए। देखा कि छत पर एक साधु हैं। हवन कर रहे हैं। उम्र 100 वर्ष होगी। उनके बाल-दाढ़ी कुछ नहीं है। मुंह जैसे सफेद से कलर किया गया हो। देखता हूं कि बगल में एक बंदर था। उसने साधु का बायां हाथ पकड़ा और अंगुली खा गया। फिर उसने बायां हाथ सरकाया तो अंगुली बिल्कुल ठीक। फिर बाजू खा गया। फिर सरका दिया। बाजू बिल्कुल ठीक। फिर गाल खा गया। अचानक नींद खुल गई। मैंने स्नान किया। कपड़े सुखा रहा था, तो देखा कि जो मंदिर सपने में दिखा था, वह पड़ोस में नजर आ रहा सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर है। मंदिर में गया तो वहां एक बुजुर्ग साधु मिले।

मैं जहां भोजन करता था, वहां लहसुन-प्याज लगता था। मूर्ति में प्राण अवतरित करने के लिए कुछ आचार-व्यवहार की जरूरत थी। इसके लिए ऐसा भोजन संभव नहीं था। मैंने साधु से मंदिर में ही भोजन देने का आग्रह किया। साधु स्वयं बनाते हैं और हनुमानजी को भोग लगाकर पाते हैं। उन्होंने हां कह दिया। साधु ने कहा कि हनुमानजी की प्रार्थना कर काम कीजिए। काम के समय जितनी बार शौच आदि के लिए गए, उतनी बार ठंड में भी स्नान किया। संयम का पालन कर मूर्ति तैयार कर ट्रस्ट को सौंप दी।

24-24 इंच के लक्ष्मण, हनुमान

सत्यनारायण ने पांच फुट के रामलला को बनाया। पीछे बैकग्राउंड में 7.5 फुट ऊंचा फ्रेम बनाया है। फ्रेम में दस अवतार बनाए। नौ इंच आगे रामलला बने हैं। उनके नीचे 24-24 इंच के लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान बनाए। इस तरह की 14 मूर्तियां हैं। रामलला के चरणों में कमल बना है। उसी पर खड़े हैं। ऊपर फ्रेम में ही रामलला के ऊपर सूर्य भगवान बनाए हैं। इसके अलावा शंख, चक्र, गदा और पद्म चारों फ्रेम में ही बनाए हैं।

परिजनों ने भी बनाईं मूर्तियां

सत्यनारायण बताते हैं कि दो हाथी, दो शेर, गरुण, हनुमानजी मंदिर के सामने लगे हैं। ये मूर्तियां गुलाबी संगमरमर से बनी हैं। एक गणेश जी, एक हनुमानजी, दो द्वारपाल-जय और विजय द्वार पर लगेंगे। सभी श्वेत मकराना संगमरमर की हैं। इन्हें जयपुर स्थित हमारे पांडेय मूर्ति भंडार में परिवार के अन्य सदस्यों व कारीगरों ने ही बनाए हैं।

ओडिशा के महाराणा के पास 5700 मूर्तियों की जिम्मेदारी

दूसरे मूर्तिकार हैं ओडिशा के बालासोर जिले के बांकीपोडा गांव के रहने वाले पूर्णचंद्र महाराणा। उनके पूर्वज भी मूर्तिकारी करते थे। स्वामीनारायण मंदिर व जैन मंदिर सहित गुजरात में 50 और महाराष्ट्र में 30 से ज्यादा मंदिर बनाए। कर्नाटक में छह, चेन्नई में तीन और एमपी में दो मंदिर बना चुके हैं। दिल्ली के भी कई प्रतिष्ठित मंदिरों के लिए मूर्तियां बनाने का मौका मिला। इस समय राममंदिर में लगने वाले पत्थरों में मूर्तियां उकेरे जाने से जुड़ी अहम जिम्मेदारी इन्हीं के पास है।

महाराणा बताते हैं कि जब श्रीराममंदिर का निर्माण शुरू हुआ, तब अयोध्या से 21 किलोमीटर दूर सोहावल के एक जैन मंदिर में मूर्ति का काम कर रहा था। मन कहता था कि राममंदिर के लिए किसी तरह एक ही मूर्ति बनाने का मौका मिल जाए तो कारीगर के रूप में जीवन सफल हो जाएगा। इसी बीच राममंदिर बना रहे एलएनटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर विनोद कुमार मेहता वहां जैन मंदिर देखने आए। उन्होंने राममंदिर में काम के लिए आमंत्रित किया। मार्च 2023 में यहां आ गए। पहले मूर्तिकारी के काम का प्रदर्शन करना पड़ा। फिर चयनित हुए। आज टाटा की ओर से साइट इंजीनियर के रूप में काम कर रहा हूं।

जिस भाव में मूर्ति बननी है, उसी में बन रही

महाराणा कहते हैं कि हमारे पूर्व जन्मों का कोई पुण्य होगा, जो यहां अवसर मिला। मंदिर में लगने वाली मूर्तियों के निरीक्षण की जिम्मेदारी मिली है। मंदिर में करीब 5700 मूर्तियां उकेरी जा रही हैं। इनकी ड्राइंग से लेकर मूर्ति बनने तक की जांच करते हैं। 96 कारीगरों के काम की निगरानी करते हैं। कहते हैं, जिस भाव में मूर्ति बननी है, उसी के हिसाब से बन रही है।

मंदिर के हर भाग में भगवान के विशेष रूप की छाप

महाराणा बताते हैं कि राममंदिर पांच भाग में हैं। पहला भाग नृत्य मंडप है। इसमें भगवान शंकर के अलग-अलग रूप उकेरे गए हैं। दूसरा रंग मंडप है। इसमें श्री गणेश जी के अलग-अलग रूप हैं। तीसरा सभा (गुड) मंडप में श्री भगवान नारायण के विभिन्न अवतार और रूप हैं। चौथे प्रार्थना मंडप में माता सरस्वती के अलग-अलग रूप हैं। कीर्तन मंडप में सूर्य भगवान के रूप हैं। ग्राउंड फ्लोर में 1162 मूर्तियां लगनी हैं। 1000 बन चुकी हैं। ग्राउंड फ्लोर में 160 खंभे हैं। देवी-देवताओं की मूर्तियां खंभों, दीवारों, दरवाजों, परिक्रमा के परकोटों और छत की झूमर में उकेरी गई हैं। ये मूर्तियां 14 इंच से लेकर 10 फुट 9 इंच तक हैं।

लखनऊ में आंबेडकर पार्क में लगाने के लिए 60 हाथियों में से 12 महाराणा ने हाथी तैयार किए थे। बाकी ओडिशा के अन्य कारीगरों ने बनाए।

Sanjiv Kumar

Sanjiv Kumar

    Next Story