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हाथरस हादसे में आई एसडीएम की रिपोर्ट! बाबा के चरणों की धूल लेने के लिए मची थी भगदड़, फरार बाबा ने 18 साल पुलिस में की थी नौकरी
हाथरस, उत्तर प्रदेश। हाथरस हादसे में एसडीएम की रिपोर्ट आ गई है। रिपोर्ट में बताया है कि सत्संग के समापन के बाद बाबा के चरणों की धूल लेने के लिए भगदड़ मची थी। जिला प्रशासन ने सत्संग में 80000 लोगों के आने की इजाजत दी थी लेकिन ढाई लाख लोग आ गए थे। बता दें कि बाबा पर अब तक कोई प्राथमिक की दर्ज नहीं हुई है जबकि आयोजक देव प्रकाश के खिलाफ प्राथमिक दर्ज की गई है।
कौन हैं साकार हरि बाबा, जिनके सत्संग में हुआ यह हादसा
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में मंगलवार को आयोजित एक सत्संग में मची भगदड़ से बड़ा हादसा हो गया। इस हादसे में अब तक 121 लोगों की मौत हो गई है और 28 लोगों की घायल होने की खबर है। क्या आपको पता है कि जिसके सत्संग में इतनी ज्यादा तादाद में अनुयायी पहुंचे हुए थे, आखिर वो बाबा है कौन? यह सत्संग नारायण साकार हरि बाबा के कथावाचक का था। वह भोले बाबा और विश्व हरि के नाम से भी जाने जाते हैं। साकार हरि बाबा का असली नाम नाम सूरज पाल सिंह है। वह कासगंज के पटयाली के रहने वाले हैं। करीब 18 साल पहले पुलिस वह कांस्टेबल की नौकरी छोड़कर सत्संग करने लगे। नौकरी छोड़ने के बाद सूरज पाल नाम बदलकर साकार हरि बन गए। अनुयायी उन्हें भोले बाबा भी कहते हैं। कहा जाता है कि गरीब और वंचित तबके के लोगों के बीच में इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और कुछ समय में लाखों की संख्या में अनुयायियों बन गए। उनके अनुयायी उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी हैं। बाबा के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि ये यूपी पुलिस में दरोगा हुआ करते थे। कुछ इन्हें आईबी से जुड़ा भी बताते हैं।
बाबा का पहनावा
साकार हरि बाबा आम साधु-संतों की तरह गेरुआ वस्त्र नहीं पहनते हैं। वह महंगे रंगीन चश्मे और सफेद पैंटशर्ट पहनते हैं। बाबा अपने प्रवचनों में पाखंड का विरोध भी करते हैं। चूंकि बाबा के शिष्यों में बड़ी संख्या में समाज के हाशिए वाले, गरीब, दलित आदि शामिल हैं। उन्हें बाबा का पहनावा और यह रूप बड़ा लुभाता है।
यहां है बाबा का आश्रम
साकार हरि बाबा का आश्रम कासगंज जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र के बहादुरनगर गांव में मौजूद है। यही उनका पैतृक गांव भी है। भोलेबाबा का बहादुर नगर में बड़ा आश्रम बना है। इस आश्रम में पहले सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार को सत्संग होता था, जो कुछ सालों से बंद है।