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आतंकियों से मुठभेड़ में बलिदान हुए पैरा कमांडो शुभम ने कहा था- मां तुम परेशान मत हो, डेट फिक्स है सबकी |
मां तुम परेशान मत हुआ करो, डेट फिक्स है सबकी। जो आज होना है वह कल होना है, इसलिए मां तुम चिंता मत किया करो। मुझे जो करना है, वह करने दो। आप ही बोलो पापा, हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा। ये आर्मी मैने इसीलिए चुनी कि देश की सेवा कर सकूं, उसके काम आ सकूं। कैप्टन शुभम गुप्ता पिता बसंत गुप्ता और मां पुष्पा गुप्ता से फोन पर जब भी बात करते तो यही कहते। बेटे के शब्द माता-पिता को सीख के साथ हौसला देते।
जिला शासकीय अधिवक्ता बसंत गुप्ता की बेटे से जब भी फोन पर बात होती, वह उन्हें अपना ध्यान रखने की कहते।कैप्टन शुभम का छूटते ही यही जवाब होता पापा हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा। तुम एक-एक सप्ताह के लिए चले जाते हो बात नहीं होती है, पिता के इस सवाल पर कैप्टन उनसे कहते घबराया मत करो पापा, सबकी डेट फिक्स है। मां पुष्पा गुप्ता कैप्टन बेटे की लंबी आयु के लिए पूजा करतीं और व्रत रखती थीं। शुभम से भी अपना ध्यान रखने और पूजा करने को कहतीं।
शुभम मां से कहते कि वह कतई चिंता न करें, जो आज होना है, वह कल होगा। परेशान मत हुआ करो। बेटे के बलिदान पर गर्व है जिला शासकीय अधिवक्ता औेर कैप्टन शुभम के पिता बसंत गुप्ता काे सांत्वना देने वालों को तांता लगा रहा। विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन और कालोनी समेत आसपास के लोग लोग प्रतीक एन्क्लेव स्थित उनके घर सांत्वना देने पहुंचे। पिता बसंत ने सांत्वना देने वालों से कहा कि बेटे के बलिदान पर उन्हें गर्व है। पिता के देशभक्ति के जज्बे को वहां मौजूद लोग भी नमन कर रहे थे।
बच्चों के साथ बच्चे बन जाते कैप्टन शुभम, खेलते आंख मिचौली
गर्मियों की छुट्टी में घर आए कैप्टन शुभम कालोनी के पार्क में बच्चों के आंखों पर पट्टी बांध आंख मिचौली खेल रहे थे। कालोनी की रहने वाली प्रियंका रात में रोज की तरह टहलने निकलीं, शुभम को खेलते देख मुस्कुराकर बोलीं शुभम अब तुम बड़े हो गए हो। आंटी बचपना तो बाकी है, कैप्टन यह कहकर दोबारा बच्चों के साथ खेलने लगे। बुधवार रात कैप्टन के बलिदान की जानकारी मिली तो प्रियंका रोने लगीं।
प्रियंका बतताी हैं कालोनी की इन्हीं सड़कों पर खेलने वाले कैप्टन शुभम, आंखों के सामने बड़े हुए और सेना की वर्दी पहन बचपन का सपना पूरा किया। कैप्टन बनने के बाद भी शुभम कालोनी में आते तो उनका बचपना भी लौट आता, सब कुछ भूल बच्चों के साथ बच्चे बन जाते। आंख पर पट्टी बांध बच्चों संग आंख मिचौली तो कभी टंगड़ी मार खेलते। कोठी बराबर में रहने वाले मजदूर कृपाल सिंह के बच्चो बबली, अनिल और राधा के लिए शुभम बड़े भाई और मार्गदर्शक रहे।
अनिल का स्कूल में प्रवेश उन्होंने खुद अपने साथ ले जाकर कराया था। यह सभी बच्चे अब शुभम के साथ बिताए पल याद करके गुमसुम थे। कृपाल सिंह उनकी पत्नी ने कैप्टन के शुभम गुप्ता के मकान में मजदूरी की थी। कैप्टन और उनके स्वजन कृपाल सिंह को हमेशा अपने परिवार का हिस्सा मानते रहे। कैप्टन से प्रेरित होकर अर्पित ने पास की थी एनडीए परीक्षा कालोनी के रहने वाले अर्पित ने कैप्टन शुभम से गुप्ता से प्रेरित होकर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एनडीए की परीक्षा में सफल हुए थे।
अर्पित की मां प्रियंका ने बताया कि शुभम और उनका बेटा दोनों सेंट जार्जेज के छात्र रहे हैं। अर्पित चौथी और शुभम आठवीं के छात्र थे। शुभम से प्रेरित होकर अर्पित ने भी बारहवीं के बाद एनडीए की परीक्षा दी, इसमें उनका चयन हो गया। परिवार वाले चाहते थे कि वह इंजीनियर बनें, इस पर अर्पित जेईई की परीक्षा दी। इसमें चयनित होने पर वह भोपाल से बीटेक कर रहे हैं।
कालोनी के बेजुबां भी हुए शांत
कैप्टन शुभम की कोठी के बराबर झोपड़ी में रहने वाले कृपाल सिंह ने बताया कि कालोनी के गेट में किसी अजनबी के घुसते ही कुत्ते उसे भौंक कर बाहर खदेड़ देते थे। गुरुवार को बेजुबान बिल्कुल शांत रहे। वह एक कोने में जाकर बैठ गए। वहां आने वाले लोगों पर भौंकना तो दूर किसी को ओर देखा तक नहीं।