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राजनीति के नए मौसम वैज्ञानिक ओम प्रकाश राजभर, 14 साल में कई बार बदली पार्टियां

vaishali malewar
17 July 2023 6:26 AM GMT
राजनीति के नए मौसम वैज्ञानिक ओम प्रकाश राजभर, 14 साल में कई बार बदली पार्टियां
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राजनीति में कुछ भी परमानेंट नही होता न कोई दोस्त होता है न कोई दुश्मन ये तो अपने सुना ही होगा। आज हम आपको एक ऐसे नेता के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपने राजनीतिक करियर ने इतनी पलटी मारी की अब इनपर मिसाल बन सकती है। हम बात कर रहे है एसबीएसपी (SBSP) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) की। दरअसल लाख बुरा भला कहने के बाद राजभर फिरसे एनडीए (NDA) का हिस्सा बन गए है। पर यह पहली बार नहीं जब मौके को देख कर चौका मारा गया है। नही राजभर (Rajbhar) पहले नेता है। ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने अपनी चुनावी पारी 1996 को बसपा (BSP) से की थी ।

90 के दशक में वे BSP के संस्थापक कांशीराम (Kashiram) के करीबी माने जाते थे।1996 में राजभर ने पहली बार वाराणसी के कोलअसला से विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन हार गए। काशीराम के जाने के बाद जब बसपा में मायावती (Mayawati) की ताकत बढ़ने लगी तो राजभर ने पार्टी से दूरी बना ली और 2001 में उन्होंने बसपा छोड़ दी। बसपा (BSP) छोड़ने के बाद राजभर 'अपना दल ' (Apna Dal) में शामिल हो गए पर यह भी उनका मन ज्यादा दिनों तक नही लगा 2002 में फिर से विधानसभा चुनाव होने थे और राजभर (Rajbhar) उसके लिए जी जान से तयारी भी कर रहे थे । वे वाराणसी की कोलअसला से चुनाव लड़ना चाहते थे। पर हुआ कुछ और ही। इस सीट पर अपना दल के अध्यक्ष सोनेलाल पटेल ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।जिसके बाद राजभर यहा से भी बाहर निकल गए।इसके कुछ महीनो बाद ही राजभर ने अपनी खुद की पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। जिसके बाद अस्तित्व में आई भारतीय समाज पार्टी। 2007 में राजभर पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए चुनाव आयोग पहुंचे तब आयोग के पास यह नाम खाली नहीं था। इसलिए उन्होंने पार्टी के नाम के आगे अपना नाम सुहेलदेव जोड़ दिया ।और पार्टी का नाम हो गया सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी। पार्टी बनने के बाद 2007 में पार्टी ने अपना पहला चुनाव लड़ा सीटें थी 97 पर इनमे से एसबीसीपी (SBSP ) एक भी सीट नहीं जीत पाई।यहां से एसबीएसपी (SBSP )के समर्थन और बगावत की कहानी शुरू हुई। 2008 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए। जहा समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह (Mulayam Singh)ने राजभर से समर्थन मांगा।साथ ही वादा किया की वे 2009के लोक सभा चुनाव में गटबंधन करेंगे। राजभर ने समर्थन दिया पर सपा जीत नहीं पाई फिर आया 2009 राजभर को मुलायम सिंह ने पार्टी के विलय का ऑफर दिया जो राजभर ने ठुकरा दिया और अपना दल से गठबंधन कर चुनाव लड़ा। पर यहां भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में राजभर ने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल से हाथ मिलाया । कौमी एकता दो सीटों पर जीती पर राजभर और उनके सारे 52 उम्मीदवार चुनाव हार गए। इतनी हर के बावजूद राजभर ने हार नहीं मानी 2014 में उनकी पार्टी 13 लोकसभा सीटों पर लड़ी और फिर से हारी। पार्टी बनकर 15 साल हो चुके थे पर उनकी पार्टी एक भी चुनाव नही जीत नहीं थी। फिर आया 2017 का यूपी का विधानसभा चुनाव।राजभर ने पहली बार बीजेपी के साथ हाथ मिलाया उन्हे बीजेपी (BJP) ने 8 सीटे दी जिसमे से राजभर की पार्टी 4 सीटे जीती । राजभर खुद भी जहूराबाद से जीते है पहली बार विधायक बने। योगी कैबिनेट (Yogi Govt.) में उन्हे पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया।राजभर मंत्री तो बन गए पर जल्द ही बीजेपी से उनके विवाद शुरू हो गए। राजभर अपने समाज के लिए आरक्षण की मांग कर रहे है। यूपी में राजभर ओबीसी में आते हैं पर उनका कहना था की राजभर सामाजिक और आर्थिक स्तर पर बहुत पिछड़े है। इसलिए उन्हें एससी में शामिल किया जाए। इसके अलावा पूर्वांचल के कुछ मुद्दों पर भी योगी सरकार से उनकी तनातनी हो गई। जिस कारण मई 2019 में उन्हे योगी कैबिनेट से निकला गया।2022 में वे फिर समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लडे । जहा उन्हे 6 सीटों पर जीत मिली। विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद से ही चर्चा थी कि राजभर एनडीए का हिस्से बनने वाले है जिसे 16 जुलाई के अमित शाह (Amit Shah)के ट्वीट ने सच साबित कर दिया। ऐसे नेताओं के लिए मौसम वैज्ञानिक शब्द का प्रयोग होता है। पहले यह शब्द रामविलास पासवान के लिए होता था अब राजभर के लिए किया जा सकता है।

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