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- NDA vs India फिर भी...
कांग्रेस (Congress) और उसके समर्थन में आई हुई पार्टियों ने यूपीए का नाम बदलकर इंडिया (INDIA) कर दिया है। पर क्या इसका फायदा कांग्रेस (CONGRESS) और बाकी विपक्ष को हो पाएगा। यह सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि, पिछले 9 सालों में यानी 2014 से लेकर अब तक विपक्षी एकता के नाम पर कई तरह के प्रयोग हो चुके हैं। जैसे यूपी में समाजवादी पार्टी (SP) और बसपा (BSP), महाराष्ट्र में कांग्रेस (Congress) -शिवसेना ((Shivsena) -एनसीपी (NCP), पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस - वामदल और कांग्रेस इन सभी के बावजूद।
कोई भी प्रयोग इतना कामयाब नहीं हो पाया जिससे भाजपा (BJP) की चिंता बड़े। पर अब अचानक यूपीए (UPA) का फिर से नामांतरण करके कांग्रेस Congress) और बाकी दल क्या 2024 में कोई बड़ा बदलाव ला पाएगा ? विपक्षी दलों का इस तरह अपने दल का नाम इंडिया (INDIA) करने के पीछे सबसे बड़ा कारण क्या है। दरअसल विपक्ष अपने दल को इंडिया नाम के जरिए देश में इंडिया (India) वर्सेस भाजपा (BJP) ऐसी लड़ाई दिखाना चाहता है। जिससे देश में एक मैसेज जाए कि, 2024 का चुनाव इंडिया वर्सेस एंटी इंडिया है।
इससे ना सिर्फ विपक्षी दलों को नई पहचान मिलेगी बल्कि अब तक जितने आरोप उन पर हो रहे थे उन सब से बचने का रास्ता भी उन्हें मिल सकता है। यूपीए (UPA) ने 2004 से 2014 तक शासन किया वही 2014 से अब तक एनडीए (NDA) शासन में है। यानी दोनों ही पक्षों को 10-10 साल सत्ता करने का मौका मिला है। जिससे मतदाताओं को दोनों ही पक्षों के राजकारण और कामकाज में तुलना करना आसान हो जाएगा। पर इस मामले में भाजपा कहीं ना कहीं यूपीए को आसानी से मात दे सकती है। इसका साफ कारण है कि पिछले 10 सालों में बीजेपी (BJP) के पास दिखाने के लिए काफी कुछ है।
लिहाजा तुलना करने में विपक्ष बीजेपी से काफी हद तक पीछे ज्यादा नजर आ रहा है। यूपीए का शासन काल देश में घोटालों और भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका था। यहां तक कि अभी भी यही कहा जाता है कि कांग्रेस के समय में सब कुछ हो सकता था। बस थोड़ी जेब ढीली करने की देर थी। यही एक कारण है जिस वजह से विपक्ष कांग्रेस के झंडे के नीचे एकजुट होने में कतरा रही थी। कांग्रेस के झंडे के नीचे एकजुट होना मतलब टूटी हुई नाव में सवार होना।इसीलिए अब जो यह नया गठबंधन बना है। इसका नया नाम देकर आने वाले चुनाव में खुद को बचाने की कोशिश में विपक्ष लगा हुआ है। पर सवाल अभी भी वही है क्या नाम बदलने से जनता के बीच विपक्ष की छवि बदल पाएगी ? इसका जवाब तो लोकसभा चुनाव के परिणामों में ही साफ हो पाएगा।