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बाबा पर निशाना साध अपने वोट बैंक की वापसी की राजनीति कर रही हैं मायावती

Neeraj Jha
11 July 2024 6:23 AM GMT
बाबा पर निशाना साध अपने वोट बैंक की वापसी की राजनीति कर रही हैं मायावती
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नई दिल्ली। जहां हाथरस में हुई 121 मौतों पर राजनीतिक दलों के आंखों का पानी सूख चुका है। और जहां हादसे का गुनहगार सूरज पाल उर्फ भोले बाबा पर कार्रवाई के सवाल पर अखिलेश तो अखिलेश राहुल गांधी भी मुंह मोड़ ले रहे हैं। वहीं मायावती ने बाबा पर कार्रवाई की मांग करके सियासत में भूचाल ला दिया है। हालांकि इस भूचाल के पीछे मायावती का मकसद अपने खोए हुए दलित वोट को वापसी करने की राजनीति भर है इसलिए उन्होंने भोले बाबा पर निशाना साध दिया है। कुल मिलाकर यह हालात उस असभ्य राजनीति को दर्शा रहा है जहां इंसान की जान की कोई कीमत नहीं, जो है सो सियासत ही है।

मायावती ने एसआईटी की रिपोर्ट को राजनीति से प्रेरित बताया है। इस रिपोर्ट में बाबा के खिलाफ कुछ भी नहीं है, एक तरह से क्लीन चिट कहिए। सूबे की पुलिस ने बाबा के खिलाफ कोई एफआईआर भी नहीं दर्ज किया है। यहां तक कि सूबे के मुखिया ने भी बाबा की कार्रवाई को लेकर कोई स्पष्ट वक्तव्य नहीं दिया है। ऐसे में मायावती का यह कहना कि एसआईटी की रिपोर्ट राजनीति से प्रेरित है, कोई गलत नहीं है। लेकिन यह जो जनता है वह सब जानती है, वाली बात है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बाबा पर कार्रवाई की बात कह कर मायावती ने राजनीति में वह चाल चल दी है जिससे उन्हें अपना खोया हुआ दलित वोट मिल जाए।

बता दें कि भोले बाबा की दलितों पर पकड़ अच्छी खासी बताई जाती है। खासकर यूपी के 16 जिलों में दलित बाबा के भक्त हैं। वैसे तो यूपी में दलित का वोट बैंक 21% है जिसमें से 11 प्रतिशत जाटव है। इन 16 जिलों में जो खास कर जाटव वोट बैंक है, जिसने पिछले चुनाव में बाबा के पसंदीदा पार्टी को वोट दिया था। राजनीतिक सूत्रों की माने तो बीते लोकसभा चुनाव में जाटव का वोट बैंक इंडिया गठबंधन की ओर झुका रहा। वहीं कुछ हिस्से ने भाजपा को भी समर्थन दिया। यह वोट बैंक कभी मायावती का हुआ करता था जो उनसे खिसक गया है। इस वोट बैंक की वापसी अब मायावती को तब सूझी है जब उन्होंने देखा कि इस घटना में मारे गए कई दलितों में बाबा के खिलाफ आक्रोश है। इसी आक्रोश को मायावती भुना लेने की राजनीति शुरू कर दी है। उन्हें लगता है कि अभी यह मौका है कि इन दलितों के घाव पर मरहम लगाकर उनके वोट बैंक को अपनी झोली में डाल लें। कुल मिलाकर मानवता के नाम पर ऐसी राजनीति लोकतंत्र को शर्मिंदा कर रही है। हाथरस हादसा चीख रहा है कि कुछ तो निर्दोषों की मौत पर शर्म कर लो न्याय नहीं कर सकते हो तो अन्याय भी मत करो।

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