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कड़े इम्तिहान से गुजर रही सपा की प्रयोगशाला, कांग्रेस ही सहारा; अखिलेश के कौशल की परीक्षा
सपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के कई साथियों को तोड़कर और दूसरे दलों के कई दिग्गज नेताओं को शामिल कर बड़ी हलचल पैदा की थी। पर, सत्ता परिवर्तन का उसका सपना अधूरा ही रहा।
प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा कड़े इम्तिहान के दौर से गुजर रही है। सपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के कई साथियों को तोड़कर और दूसरे दलों के कई दिग्गज नेताओं को शामिल कर बड़ी हलचल पैदा की थी। पर, सत्ता परिवर्तन का उसका सपना अधूरा ही रहा। अलबत्ता कुछ सीटें जरूर बढ़ीं। वोट शेयर भी बढ़ा। पर, सरकार भाजपा की बनी। करीब एक साल पहले जब सियासी पार्टियां लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर रही थीं, सपा के सहयोगियों-साथियों का साथ छोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया। यह सिलसिला लोकसभा चुनाव के एलान के बाद भी जारी है।
सपा का साथ पहले सुभासपा और फिर रालोद ने छोड़ा। अब सपा के पीडीए फाॅर्मूले की सबसे मजबूत पैरोकार अपना दल (कमेरावादी) ने अलग चुनाव लड़ने का एलान कर पार्टी की चुनौतियां और बढ़ा दी हैं। खास बात है कि सपा के जिन सहयोगियों ने अब तक साथ छोड़ा है, उनका असर पूरब से पश्चिम तक महसूस होने वाला है। किसी का असर पूरब में ठीकठाक है, तो किसी का पश्चिम में आधार माना जाता है।
लोकसभा चुनाव में फिलहाल सपा के साथ सिर्फ कांग्रेस ही खड़ी नजर आ रही है। सपा-कांग्रेस का 2017 में भी गठबंधन हुआ था, लेकिन उसका खास फायदा नहीं मिला। 2024 में सिर्फ कांग्रेस के सहारे अखिलेश यादव कैसे सफलता की पटकथा लिखेंगे, उनके इस कौशल पर सबकी निगाहें जरूर रहेंगी।
सत्ता से बाहर प्रयोग का विस्तार
2014 : जब अकेले लड़े, परिवार के पांच सदस्य जीते
वर्ष 2012 के बाद से ही समाजवादी पार्टी उम्मीद के हिसाब से सियासी सफलता हासिल नहीं कर पा रही है। वर्ष 2014 में सपा ने सभी सीटों (दो कांग्रेस के लिए छोड़ी थीं) पर अकेले लोकसभा चुनाव लड़ा। पांच सीटें जीतीं। सभी परिवार के सदस्य थे। आजमगढ़ में मुलायम सिंह यादव, फिरोजाबाद में अक्षय यादव, बदायूं में धर्मेंद्र यादव, कन्नौज में डिंपल यादव, मैनपुरी में भी मुलायम सिंह यादव जीते। बाद में उपचुनाव में मैनपुरी से तेजप्रताप यादव जीते। पार्टी को 22.20 प्रतिशत वोट मिले।
2019: बसपा-रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़े, सीटें पांच ही मिलीं, वोट भी घट गया
वर्ष 2019 में बसपा और रालोद के साथ गठबंधन कर सपा चुनाव लड़ी। गठबंधन को 15 सीटें मिलीं। सपा के हिस्से फिर पांच सीटें ही आईं। मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव जीते। परिवार के अन्य सदस्य चुनाव हार गए। तीन अन्य सदस्यों में रामपुर से आजम खां, मुरादाबाद से एसटी हसन और संभल से शफीकुर्रहमान बर्क जीते। वोट शेयर घटकर 18.11 फीसदी पर पहुंच गया। सारी मलाई बसपा के हिस्से आई। 2014 में एक भी सीट नहीं जीत सकी बसपा ने 10 सीटों पर कब्जा कर लिया। कुल मिलाकर सपा का प्रयोग उलटा पड़ा।
2022 : नए सहयोगी बनाए तो सीटें भी बढ़ीं, वोट शेयर भी बढ़ा
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया। अलबत्ता रालोद साथ बना रहा। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने 2022 में यूपी की सत्ता में वापसी के लिए ताना-बाना बुनना शुरू किया। नए प्रयोग के तौर पर योगी-01 सरकार में मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से हाथ मिलाया। वह यहीं नहीं रुके। सरकार में शामिल तीन अन्य मंत्रियों-दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी और स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल कर तहलका मचा दिया। अपना दल कमेरावादी को भी साथ जोड़ा। दूसरे दलों के तत्कालीन कई विधायक भी शामिल हुए थे।
सपा सत्ता में वापसी तो नहीं कर पाई, लेकिन इस माहौल का तगड़ा फायदा हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में जब सपा का कांग्रेस से गठबंधन था, तब उसको 47 सीटें और 21.81 फीसदी वोट मिले थे। 2022 के चुनाव में 64 सीटें बढ़ीं और विधायकों की संख्या 111 हो गई। वोट शेयर भी बढ़कर 32.06 प्रतिशत हो गया। सीधे-सीधे 10.24 फीसदी वोट शेयर बढ़ गया।
2024 में 17 वाले प्रयोग की वापसी, छिटकते जा रहे साथी
ओम प्रकाश राजभर, सुभासपा
विधानसभा चुनाव के बाद राजभर सपा का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। राजभर समाज को साधने के लिए भाजपा ने न सिर्फ सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश को योगी कैबिनेट में दोबारा मंत्री बनाया, बल्कि पंचायतीराज जैसा बड़ा महकमा भी दिया। सुभासपा का एक एमएलसी बनाया और लोकसभा की एक सीट भी दे दी।
जयंत चौधरी, रालोद
सपा की सबसे मजबूत सहयोगी रहा रालोद भी साथ छोड़ गया। पश्चिमी यूपी की ताकतवर माने जानी वाली पार्टी का छिटकना उस इलाके में सपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। रालोद भी एनडीए का हिस्सा हो गया है। न सिर्फ रालोद का एक विधायक योगी कैबिनेट में शामिल हो गया है, बल्कि गठबंधन से एक एमएलसी भी बनवा लिया। दो लोकसभा सीटें भी पार्टी को मिली हैं।
कृष्णा पटेल, अपना दल (कमेरावादी)
पार्टी की अध्यक्ष कृष्णा पटेल की बड़ी बेटी पल्लवी पटेल समझौते के तहत सपा के सिंबल से विधायक चुनी गई हैं। पीडीए फाॅर्मूले की प्रखर पैरोकार पल्लवी ने पहले राज्यसभा चुनाव में सपा के प्रत्याशी के चयन पर खुलेआम सवाल उठाया, फिर अपनी शर्तों पर वोट दिया। अब पार्टी ने फूलपुर, मिर्जापुर और कौशांबी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। सपा ने भी कोई नरमी दिखाए बगैर मिर्जापुर से प्रत्याशी उतार दिया। स्वामी प्रसाद के बाद कृष्णा पटेल का अलग होना, सपा के पीडीए फाॅर्मूले की ताकत कमजोर होने जैसा माना जा रहा है।
दारा सिंह चौहान
नोनिया समाज के नेता माने जाते हैं। सपा में महत्व नहीं पाने से बेचैन होकर उन्होंने विधायकी और पार्टी की सदस्यता छोड़ दी। चौहान भाजपा में घर वापसी कर पहले एमएलसी बने और उसके बाद योगी सरकार में फिर से मंत्री भी बन गए।
स्वामी प्रसाद मौर्य, राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी
सपा में लाने के बाद स्वामी प्रसाद को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। विधानसभा चुनाव हारे तो एमएलसी बनाया गया। समाजवादी पार्टी के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूले की तगड़ी पैरोकारी करते रहे हैं। सपा का पद और विधान परिषद की सदस्यता छोड़ कर नया राजनीतिक दल राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी बना चुके हैं।
आम चुनाव में सपा का प्रदर्शन
2014 का लोकसभा चुनाव : 05 सीटें
2019 का लोकसभा चुनाव : 05 सीटें
कुल सीटें : 80
2017 का विधानसभा चुनाव
47 सीटें
2022 का विधानसभा चुनाव
111 सीटें
कुल सीटें : 403