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जानिए, पप्पू यादव ने यह क्यों कहा था कि दुनिया छोड़ देंगे पूर्णिया नहीं और यह बात क्यों नहीं समझ पाए लालू यादव
पूर्णिया। जब पप्पू यादव ने यह कहा था कि दुनिया छोड़ दूंगा पूर्णिया नहीं। तब इस बात को लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने गंभीरता से नहीं लिया था। अगर गंभीरता से ली होती तो आज तपस्वी यादव को अप्रत्यक्ष रूप से अपनी हार की आशंका नहीं होती। दरअसल बात यह है कि तपस्वी यादव ने यहां तक कह दिया कि एनडीए प्रत्याशी संतोष कुशवाहा को वोट दे दो लेकिन पप्पू यादव को नहीं। वह पप्पू यादव से इतना तिल मिलाए हुए हैं कि कल पूर्णिया की सभा में कहा कि पप्पू यादव पीठ में खंजर भोक रहा है। आज तपस्वी यादव का इस हद तक चले जाना, इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने पप्पू और पूर्णिया के रिलेशन को नहीं समझा।
जब हीरो बाजी करते थे पप्पू
आइए आज आपको बताते हैं कि पप्पू का पूर्णिया प्रेम क्यों इतना है। बात शुरू करते हैं 80 के दशक की शुरुआत से। तब पप्पू यादव का घर पूर्णिया कोर्ट स्टेशन के पास था, जो आज भी है। 1982 के आसपास की बात है जब पप्पू यादव कॉलेज के नवोदित छात्र थे। तब उन्होंने शहर में हीरो बाजी शुरू कर दी थी। जवानी की सीढ़ी पर कदम रखते ही उन्हें हीरो बनने का शौक बुरी तरह सवार हो गया था। वह कुछ नहीं समझते थे, किसी को पीट देते थे। इसी तरह पीटपाट करते हुए बदमाश सुभाष यादव के संपर्क में आ गए। जब सुभाष जेल चले गए तो उनकी जगह उनकी गद्दी पप्पू ने संभाल ली। उन्हीं दिनों हवलदार की मूंछ उखाड़ने की तथाकथित घटना चर्चित होने पर पप्पू यादव को मीडिया में जगह मिल गई। तब तो सिर्फ अखबार का युग था और पप्पू यादव न्यूज़ बनने लगे।
उन्ही दिनों पूर्णिया से 100 किलोमीटर दूर सहरसा में आनंद मोहन इलाके के हीरो थे। आनंद मोहन को राजपूत का सपोर्ट था तो पप्पू यादव को यादवों का। यह दोनों अपनी अपनी जाति का प्रतिनिधित्व करते हुए गैगवार भी करने लगे। कई बार तो दोनों की तरफ से अलग-अलग इलाके में सैकड़ो राउंड गोलियां चली। कई जाने भी गई। 80 का दशक ऐसे ही चलता रहा। 1998 के मध्य जून में विधायक अजीत सरकार की हत्या में पप्पू यादव आरोपी बने। इस केस में पप्पू यादव की गिरफ्तारी के लिए रातों-रात राजविंदर सिंह भठ्ठी को पूर्णिया का एसपी बनाया गया। आज यही भठ्ठी बिहार के डीजीपी हैं। इसके बाद पप्पू वर्षों तिहाड़ जेल में रहे।
जेल से बाहर आकर पप्पू ने क्या किया
बाहर आने पर जन अधिकार पार्टी बनाई और अपना हेडक्वार्टर पूर्णिया को ही बना लिया। जवानी के दिनों के पूर्णिया के पुराने मित्र उन्हें फिर से मिल गए। पप्पू यादव के वह पुराने अड्डे मसलन पूर्णिया कोर्ट, भट्टा, लाइन बाजार, गिरजा चौक, बस अड्डा फिर से जागृत हो गए। जब उन्होंने घर-घर संपर्क शुरू किया तो स्थानीय लोगों ने उनकी पुरानी गलतियों को यथोचित भूलकर अपना समर्थन दिया। यह समर्थन सभी जातियां से मिलने के बाद पप्पू यादव बुलंद हो गए। पूर्णिया के प्रति उनका कॉन्फिडेंट बढ़ गया। वह पूरा विश्वास में थे कि टिकट उन्हें मिलेगा ही लेकिन लालू यादव ने सब गुड गोबर कर दिया।
काश लालू ने हकीकत जानी होती
दो बार पप्पू यादव लालू की पार्टी से सांसद रहे हैं। उनके परिवार के सदस्य की तरह रहे हैं फिर भी पप्पू को समझने में लालू मात खा गए। लालू यह जान ही नहीं सके कि पूर्णिया की जमीन पर पप्पू ने क्या झंडा गाड़ दिए हैं। रुपौली की विधायक बीमा यादव को टिकट देने से पहले एक बार लालू यादव को यह सर्वे कर लेना चाहिए था कि पूर्णिया पर पप्पू की पकड़ कितनी है। अब पूर्णिया में पप्पू लहर देखकर तेजस्वी बिलबिला गए हैं। दरअसल पूर्णिया में टक्कर पप्पू यादव और एनडीए प्रत्याशी संतोष कुशवाहा के बीच है। तपस्वी यादव चाहते हैं कि कम से कम यह मुकाबला त्रिकोणीय हो जाए लेकिन जब ऐसा नहीं महसूस करते हैं तो पप्पू के खिलाफ गुस्सा उतारने में कोई कोर का असर नहीं छोड़ते हैं।
बता दें कि पूर्णिया में वोटरों की संख्या 18 लाख है। इसमें 60% हिंदूऔर 40 परसेंट मुसलमान है। ओबीसी और दलित 5 लाख है। यह वोट तो सभी प्रमुख प्रत्याशियों में बटेगा और किसको कितना मिलेगा यह सीधे तौर पर कहना बेमानी होगी। कल पूर्णिया में इलेक्शन है और आज किसी की भी जीत सुनिश्चित होने की तस्वीर सामने नहीं आई है तो इंतजार 4 जून का करना ही पड़ेगा तब यह देखने की मजेदार बात होगी कि 1974 में छात्र आंदोलन से उपजे लालू यादव बड़े खिलाड़ी हैं या आज का पप्पू।