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अध्यादेश के बहाने क्या केजरीवाल विपक्ष को साथ ला रहे है

अध्यादेश के बहाने क्या केजरीवाल विपक्ष को साथ ला रहे है
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उत्तर प्रदेश के आलावा अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) कई राज्यों के मुखियों से भी मिल चुके है। 2014 के बाद से सभी विपक्षी पार्टियों को इकठ्ठा लेन के लिए सभी बड़े नेताओं ने कोशिश कर ली पर सबसे बड़ी मजबूरी यह है

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) होने में अभी तक़रीबन एक साल का समय बचा हुआ है। पर उसकी तैयारियां हर स्तर पर शुरू हो गई है। जहा बीजेपी (BJP) खुद को मजबूत करने में लगी है वहीँ बाकी विपक्षी पार्टियां बीजेपी को कैसे रोका जाए इसकी तैयारियों में लगा है। कही नीतीश कुमार (Nitish Kumar) विपक्ष एकता की बात कर रहे है। वही कुछ नेता स्थानिक स्तर पर गठबंधन की तैयारियों में लगी हुई है। ऐसे में कल यानी बुधवार को जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने बचे हुए मंत्रियों और पंजाब के मुख़्यमंत्री के साथ समाजवादी पार्टी (SP) के मुखिया से मिले।

तो गठबंधन की सुगबुगाहट होने लगी। मीटिंग का कारन तो केंद्र सरकार के अधिदेश के लिए समर्थन मांगा था। पर इतनी सी बात के लिए केजरीवाल का यू दर-दर भटकना कुछ और ही संदेश दे रहा है। दरअसल दिल्ली पंजाब और गुजरात में विधानसभा सीटें लाने के बाद आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल चुका है। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) कोशिश कर रहे है की बाकि राज्यों में भी उनका प्रवेश हो। पिछले विधानसभा चुनाव में भी संजय सिंह (Sanjay Singh) ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से गठबंधन की कोशिश की थी बार बात नहीं बनी।

परिणाम यह हुआ की राज्य में समाजवादी पार्टी को मुहकी खानी पड़ी। इन दोनों नेताओं ने 1 घंटे बातचीत की जिसके बाद अखिलेश यादव ने अध्यादेश पर केजरीवाल के समर्थन की बात की। देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा के हालत बेहतर तो बिलकुल नहीं है। बीजेपी के बढ़ते कदम रोकने में ये दोनों पार्टिया हर बार फेल हुई है। इनके अलावा कांग्रेस खुद के अस्तित्व के लिए ही लड़ रही है। हालत यह है की वे अपनी पारंपरिक सीटे तक नहीं बचा पा रही है। इन हालातों में आम आदमी पार्टी एक अच्छा विकल्प हो सकती है।

इन सभी कारणों से यह अंदाजा लगाया जा रहा है, की कही अध्यादेश के बहाने गठबंधन की तैयारी तो नहीं हो रही है। उत्तर प्रदेश के आलावा अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) कई राज्यों के मुखियों से भी मिल चुके है। 2014 के बाद से सभी विपक्षी पार्टियों को इकठ्ठा लेन के लिए सभी बड़े नेताओं ने कोशिश कर ली पर सबसे बड़ी मजबूरी यह है की आखिर चुनाव किसके नेतृत्व में लढा जाए। विपक्ष में बीजेपी को हारने से ज्यादा प्रधानमंत्री की सीट के लिए होड़ लगी है। इनमे अरविन्द केजरीवाल ही ऐसे नेता है जिन्होंने खुलकर कहा था की सबका मकसद सिर्फ बीजेपी को हराना होना चाहिए और रही बात नेता चुनने की तो वो गठबंधन जितने के बाद भी तय किया जा सकता है। अब ऐसे हालातों में ये कहना गलत ना होगा की इन अनुभवी नेताओं के बीच केजरीवाल एक ब्रिज बनाने का काम कर सकते है।

वार्ता 24 संवाददाता

वार्ता 24 संवाददाता

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