- Home
- /
- मुख्य समाचार
- /
- हेमंत सोरेन नहीं कर...
हेमंत सोरेन नहीं कर पाएंगे चुनाव प्रचार, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की अंतरिम जमानत याचिका, जानें कोर्ट से कपिल सिब्बल ने क्यों मांगी माफी?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन की अंतरिम जमानत की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है।
बता दें, हेमंत सोरेन ने चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी। कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को दूसरी बार खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन की जमानत याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत में एक साथ दो मांगें की गई हैं। पहली मांग अंतरिम जमानत की है तो दूसरी मांग में गिरफ्तारी को चुनौती दी गई है। इस दौरान ईडी ने अदालत में अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि अगर चुनाव प्रचार के लिए हेमंत सोरेन को जमानत मिली तो फिर जेल में बंद सभी नेता जमानत की मांग करने लगेंगे।
हेमंत सोरेन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जाहिर किया कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने सारे तथ्य नहीं रखे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था तब कोर्ट को इस बात की जानकारी क्यों नहीं दी गई कि जमानत की अर्जी स्पेशल कोर्ट के सामने पेंडिंग है और निचली अदालत पहले ही चार्जशीट पर संज्ञान ले चुकी है।
कोर्ट से कपिल सिब्बल ने क्यों मांगी माफी?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मेरी व्यक्तिगत गलती है, मेरे मुवक्किल की नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल जेल में है और हम वकील हैं जो उसके लिए काम कर रहे हैं। हमारा इरादा कोर्ट को गुमराह करना नहीं है और हमने ऐसा कभी नहीं किया है। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से असल में माफी इसलिए मांगी क्योंकि जज ने कहा था आप राहत के लिए एक साथ दो अदालत पहुंचे। एक में जमानत मांगी और दूसरी में अंतरिम जमानत मांगी। कोर्ट ने आगे कहा कि आप समानांतर उपाय अपनाते रहे। आपने हमें कभी नहीं बताया कि आपने निचली अदालत में जमानत याचिका दाखिल की है। आपने यह तथ्य छिपाया है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच जब सोरेन की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी तो ईडी ने हलफनामा दाखिल किया। ईडी ने इसमें कहा कि चुनाव के लिए प्रचार करने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है, न ही संवैधानिक अधिकार और न ही कानूनी अधिकार है। वहीं पहले दिन की सुनवाई के दौरान सोरेन के वकील सिब्बल ने कहा कि जिस जमीन की बात कही जा रही है उसपर सोरेन का कभी कब्जा ही नहीं रहा है।