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ASI के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक केके मुहम्मद बोले- विवादित ढांचे से कई गुना विशाल रहा होगा मंदिर
आज से करीब 48 वर्ष पहले जब मैं 1976 में विवादित ढांचे का सर्वे करने गया, तो वहां पहली नजर में देखने पर ही पता चल गया था, यह मंदिर ही है। हालांकि कई लोगों ने इस तथ्य को झुठलाने के भरसक प्रयास किए, अन्यथा राममंदिर का मसला 2019 के बजाय वर्षों पहले ही सुलझ गया होता। यह कहना है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के उत्तर के क्षेत्रीय निदेशक रहे और विवादित ढांचे के सर्वेक्षण से जुड़े केके मुहम्मद का।
केके मुहम्मद ने कहा, खोदाई में मिले हर सबूत गवाही दे रहे थे कि मंदिर विवादित ढांचे से कई गुना विशाल रहा होगा। कहते हैं, प्राण प्रतिष्ठा के लिए मुझे भी निमंत्रण मिला है। बेहद खुश हूं। मैंने अयोध्या में काम करने के दौरान सर्दी, गर्मी, बरसात में लोगों को आते देखा है। वहां तब मंदिर नहीं था, मगर आस्था थी। यह 500 साल की लड़ाई थी, जो अब समाप्त हुई। हिंदुस्तानियों के दिल पर आघात था, अब अच्छा लग रहा है। व्यक्तिगत रूप से यही कहूंगा, इस ऐतिहासिक, विराट काम के लिए प्रभु श्रीराम ने मेरे गिलहरी योगदान के लिए मुझे चुना...उनका आभार। मुहम्मद ने अमर उजाला से बातचीत में कई मुद्दों पर खुलकर जवाब दिए...
मंदिर के सबसे अहम सबूत कब मिले?
1976 में प्रोफेसर बीबी लाल के नेतृत्व में हमारी दस लोगों की टीम अयोध्या पहुंची। यहां विवादित ढांचे के पास गए तो एक पुलिस वाले ने अंदर जाने से रोक दिया। उससे कहा कि हमलोग छात्र हैं और शोध के लिए आए हैं। बस इतना पता लगाना है कि यह किस जमाने में बना। उसके बाद अंदर जाने दिया गया। अंदर जाने पर 12 पिलर सामने से ही ऐसे दिख रहे थे कि ये 12वीं शताब्दी के हों और उन पर मंदिरों से जुड़े साक्ष्य मौजूद हैं। देवी-देवताओं के चित्र भी थे, मगर उनके चेहरे खराब हो गए थे। मगर मंगलाकलश उन पर छपे हुए थे। पहला तो यही सबूत था। इसके बाद अहम सबूत 2003 की खोदाई में डॉ. बीआर मणि के निर्देशन में मिले। मंदिर में होने वाले अभिषेक से जुड़ी महत्वपूर्ण चीजें थीं। शिलालेख मिले, नींव में 90 पिलर मिले, जिन पर कभी विशाल मंदिर खड़ा रहा होगा। 216 से अधिक टेराकोटा की मूर्तियां मिलीं।
1976 के शोध की बात बाहर कैसे आई?
जांच के लिए हमारी टीम गई और पता किया कि यहां पर क्या है। मगर 1990 में वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब, रोमिला थापर आदि ने अखबारों में बयान दिया कि अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे कुछ नहीं मिला है और ढांचा सपाट जमीन पर खड़ा है। इसके पीछे तर्क यह दिया कि पुरातत्वविद प्रोफेसर बीबी लाल को भी वहां खोदाई में ऐसा कुछ नहीं मिला है। इसलिए यह बात गलत है कि ढांचे के नीचे मंदिर के प्रमाण हैं। दूसरे दिन बीबी लाल ने अखबार से कहा कि आपके यहां गलत तथ्य छपे हैं। वहां मंदिर होने के प्रमाण मिले हैं। इसके बाद बीबी लाल अकेले पड़ गए और सभी उन्हें झुठलाने लग गए तो मैंने सोचा यह गलत हो रहा है। तब मैंने मीडिया में कहा कि अयोध्या में हुई खोदाई में मैं शामिल था। वहां मंदिर के प्रमाण मिले हैं, बीबी लाल सही बोल रहे हैं। मेरा बयान छपने के बाद जब हंगामा हुआ तो मेरी नई नौकरी थी। प्रोबेशन पीरियड में था। मुझे निकालने की तैयारी हो गई। दिल्ली बुलाकर काफी फटकार लगाई गई। मगर मैंने कहा कि मैं झूठ नहीं बोल सकता और अपनी बात पर कायम रहूंगा, भले नौकरी चली जाए। उस समय वरिष्ठ आईएएस एच महादेवन और मद्रास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केबी रमन ने मेरी मदद की तो नौकरी तो बच गई, मगर मेरा ट्रांसफर मद्रास से गोवा कर दिया गया।
ज्ञानवापी, मथुरा पर भी विवाद है। इस पर आप क्या कहेंगे?
देखिये ये दोनों मामले कोर्ट में हैं। इसलिए अधिक टिप्पणी नहीं करूंगा। मगर मैं कहता हूं कि मुसलमानों के लिए जितना मक्का और मदीना महत्वपूर्ण है, उतना ही हिंदुओं के लिए श्रीराम का जन्मस्थान महत्वपूर्ण है। मथुरा-काशी है। इसलिए मुसलमानों को यहां मंदिर बनाने कि लिए खुद ही आगे आना चाहिए। ये हिंदुओं को सौंप दें और सभी विवादों को समाप्त करें। अब इसके बाद हिंदुओं को भी आगे नहीं बढ़ना चाहिए। अफगान आए थे, उन्होंने यह सब किया। इसमें वर्तमान मुसलमानों का कोई दोष नहीं। हिंदू-मुसलमान मिलकर देश को आगे बढ़ाने के लिए एक साथ काम करें। यही मेरी अपील है। यह नया दौर है। मुसलमानों को भी मिलकर रहना चाहिए। लड़ाई न करें। समझना होगा कि इससे अधिक नुकसान मुसलमानों का ही है। प्राण प्रतिष्ठा के दिन से ही नई उमंग, जोश के साथ आगे बढ़ें। देश के सभी लोगों को इस खुशी में शामिल होना चाहिए।
अधिक साक्ष्य जुटाने के लिए और कहां-कहां खोदाई की?
वैसे तो यह पर्याप्त सबूत थे। मगर सोचा कि और भी कुछ जगहों पर साक्ष्य जुटाने चाहिए तो हनुमान गढ़ी, मणिपर्वत, भरद्वाज आश्रम और चित्रकूट समेत कई जगहों पर खोदाई की गई। मणिपर्वत पर खोदाई से भरत के प्रशासन चलाने के साक्ष्य मिले। इसके बाद तो अनगिनत साक्ष्य मिले, जिनसे यह स्पष्ट हो गया कि यहां राम मंदिर ही था। अयोध्या में हर जगह की खोदाई में मंदिर के साक्ष्य मिल रहे थे। खोदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे।
इस नतीजे पर कैसे पहुंचे कि यहां राममंदिर ही रहा होगा?
2003 की खोदाई में एक शिलालेख मिला। वह भी 11वीं 12वीं शताब्दी का था। उस पर लिखा था कि यह मंदिर भगवान महाविष्णु के उस अवतार को समर्पित है, जिसने बालि का वध किया। रावण का वध किया। इससे साफ हो गया कि यहां श्रीराम का जिक्र आ रहा है। भगवान गणेश की भी मूर्तियां मिली थीं। घड़ियाल के आकार की प्रणाली (जलाभिषेक के बाद पानी बहाने वाला स्ट्रक्चर) पाई गई। टेराकोटा की मूर्तियों से साफ था कि मस्जिद में जीवित प्राणियों के चित्र नहीं बनाए जा सकते तो यह मस्जिद कैसे हो सकती है।
मुहम्मद ने रिपोर्ट में कहा था-नक्काशियां इस्लामिक शैली की नहीं
मुहम्मद ने दावा किया था कि विवादित ढांचे की जगह पहले बड़ा मंदिर था। उनके मुताबिक अयोध्या में खोदाई के दौरान देवी-देवताओं की मूर्तियां तो नहीं मिलीं, लेकिन अष्ट मंगल चिह्न मिले, जो कि मंदिरों में ही पाए जाते हैं। 1976-77 में मंदिर-मस्जिद मामले में हुई जांच के समय वे टीम का हिस्सा थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि स्तंभों के ऊपर जो नक्काशियां मिली थीं, उनका इस्लामिक शैली से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था।