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19 से '20' है 24 का चुनाव, बदले समीकरण और खिलाड़ी, इस बार वैसा गठबंधन नहीं; लड़ाई त्रिकोणीय

SaumyaV
11 March 2024 6:11 AM GMT
19 से 20 है 24 का चुनाव, बदले समीकरण और खिलाड़ी, इस बार वैसा गठबंधन नहीं; लड़ाई त्रिकोणीय
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यूपी में 80 सीटों के लिए रस्साकशी शुरू हो गई है। इस बार समीकरण और खिलाड़ी बदले हुए हैं। तब धुरविरोधी रहे सपा-बसपा ने भी हाथ मिला लिया था। इस बार वैसा गठबंधन नहीं है। गठबंधन तय हो गया है। सीटों का वितरण पूरा हो गया है। कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है।

लो फिर आ गया चुनावों का मौसम। वादों का मौसम...। इरादों का मौसम...। ...तो तीरों को धार देने का भी मौसम। अब 'इंडिया' के हमले होंगे। 'भारत' के जवाब होंगे। सियासी प्रयोगशालाओं से नए-नए हथियार निकलेंगे। जहर बुझे तीरों के काट भी निकलेंगे। राम की बातें होंगी। आराम की बातें होंगी। आया राम-गया राम की चर्चाएं भी होंगी।

बुधई, मंगरू, कल्लू काका का मनुहार होगा। ननकी, बड़की काकी के चूल्हे की रूखी-सूखी रोटी भी मीठी होगी। क्योंकि ये चुनावी मौसम है। इसकी यही रीति है। बहरहाल यूपी में 80 सीटों की रस्साकशी शुरू हो गई है। आप भी 2024 के चुनावी समर का मजा लीजिए। 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ मामलों में अलग और बीस है इस बार का चुनाव। पेश है महेंद्र तिवारी की रिपोर्ट...

18वीं लोकसभा के चुनावों का एलान किसी भी दिन हो सकता है। राजनीतिक दल 2024 के चक्रव्यूह को भेदने के लिए पालाबंदी में जुटे हैं। ज्यादातर ने पाले तय कर लिए हैं। गठबंधन की सीटें तय हो गई हैं। प्रत्याशी तय हो रहे हैं। दलबदल और घर वापसी जैसे नित्य का उत्सव हो गया है।

विपक्ष जब 10 साल लगातार सरकार में रहने वाले दल के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के दावे कर रहा हो, कई लोग जब सत्ताधारी गठबंधन से विपक्ष की ओर भगदड़ की उम्मीदें करते हों, चारों ओर से सत्ताधारी दल में शामिल होने और किसी भी कीमत पर टिकट पाने की अकुलाहट खुल्लमखुल्ला नजर आ रही है। जो कल तक विपक्ष में बैठकर सत्ता को लानतें दे रहे थे, वे तेजी से सिंहासन के हिस्सेदार और बगलगीर होने को व्याकुल हैं।

महंगाई, बेरोजगारी से ज्यादा राममंदिर से उत्सवी माहौल बना हुआ है। प्रदेश में चढ़ती चुनावी सरगर्मी के बीच लोकसभा की 80 सीटों की लड़ाई आमने-सामने के तमाम प्रयासों के बावजूद त्रिकोणीय लड़ाई की ओर बढ़ती नजर आ रही है। 2024 का समर 2019 से कई मायने में अलग और बदला-बदला नजर आ रहा है।

बदले समीकरण और खिलाड़ी

बसपा प्रमुख अकेले चुनाव लड़ने की बात लगातार दुहरा रही हैं। राष्ट्रीय लोकदल तो राजग का हिस्सा हो गया है। दूसरा, सपा को कांग्रेस से हाथ मिलाना पड़ा है, जिसका प्रदेश में जनाधार काफी खिसक चुका है।

2019 के बाद 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ, तो समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार में सहयोगी सुभासपा को तोड़ लिया था। स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर मंत्रियों को शामिल कर लिया था।

2024 के चुनाव से पहले सुभासपा फिर राजग का हिस्सा बनकर योगी सरकार में शामिल हो चुकी है। दारा सिंह फिर से भाजपा में लौटकर मंत्री बन गए हैं। स्वामी ने तो सपा से नाता तोड़कर नई पार्टी का एलान कर दिया है।

विपक्ष 2019 और 2022 के मुकाबले काफी बिखरा हुआ है। रही-सही कसर बसपा पूरी करने जा रही है। पार्टी किसी गठबंधन से इतर अपने बलबूते सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पहली नजर में 24 का चुनाव आमने-सामने की जगह त्रिकोणीय बनता नजर जा रहा है।

तब श्रीराम मंदिर चुनावी वादा था, अब हकीकत

2019 के चुनाव तक श्रीराम मंदिर भाजपा के चुनावी वादे तक सीमित था। 2024 के चुनाव से पहले ही यह एक हकीकत में बदल चुका है। पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों श्रीराम के बालक राम रूप की प्रतिष्ठा हो चुकी है। देश भर से भक्तों का रेला बालक राम के दिव्य दर्शन के लिए उमड़ रहा है।

सत्ताधारी दल न सिर्फ राम मंदिर निर्माण को चुनावी वादे को पूरा करने के रूप में प्रचारित कर रहा है बल्कि देश भर से सत्ताधारी दल के मुख्यमंत्री पूरी कैबिनेट के साथ आकर दर्शन कर रहे हैं। अपने प्रदेशों से समर्थकों की मुफ्त अयोध्या यात्रा करा रहे हैं। भाजपा इस भक्तिमय माहौल का भरपूर लाभ उठाने का प्रयास कर रही है। दूसरी ओर आमंत्रण के बावजूद कांग्रेस व सपा सहित ज्यादातर विपक्षी नेताओं ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। चुनाव का एलान होने वाला है, अभी भी दूरी बनी हुई है।

इस बार दोबारा सत्ता की ताकत

तब मुख्यमंत्री के रूप में दो साल बिताने के बावजूद योगी सरकार कुछ सवालों के घेरे में थी। योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपनी रिक्त की गईं गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें 2018 के उपचुनाव में नहीं जितवा पाए थे। लेकिन, तमाम फैक्टर के बावजूद भाजपा 2019 के चुनाव में 62 सीटें जीतने में सफल रही। 2022 के विधानसभा चुनावों में योगी ने दोबारा शानदार जनादेश के साथ सत्ता में वापसी की।

पिछले सात वर्षों में योगी यूपी में तेज बदलाव के वाहक बनकर उभरे हैं। ऐसे बदलाव जिसे आज कई राज्य और केंद्र के मंत्रालय अपना रहे हैं। केंद्र की दर्जनों योजनाओं में यूपी देश में नंबर वन है। इससे बड़ा लाभार्थी वर्ग बना है। कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर योगी की बुलडोजर संस्कृति चर्चा का विषय है। भाजपा इस ताकत का भरपूर फायदा उठाने की तैयारी कर रही है।

बेरोजगारी-महंगाई बनाम उपलब्धियां

विपक्ष एक ओर महंगाई को बड़े मुद्दे के तौर पर उठा रहा है, तो सत्तापक्ष आंकड़ों के जरिये नियंत्रित महंगाई के दावे कर रहा है। महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले गरीब वर्ग के लिए शुरू की गई नकद हस्तांतरण वाली योजनाओं का बखान कर रहा है। विपक्ष बेरोजगारी को मुद्दा बना रहा है तो केंद्र सरकार 10 लाख नौकरियों के अभियान और निजी सेक्टर में बढ़े स्वरोजागर के अवसर गिना रही है। विपक्ष पेपर लीक को मुद्दा बना रहा है, तो सत्तापक्ष पेपरलीक से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बनाए कानून का हवाला दे रहा है।

तब गन्ना मूल्य बकाया, अब किसान आंदोलन, प्रदेश में बेअसर

पिछले चुनाव में किसानों का गन्ना मूल्य भुगतान भी एक मुद्दा बना हुआ था। इस बार एमएसपी की गारंटी सहित कई मुद्दे उठाए जा रहे हैं। पर, पिछली बार की तरह इस बार गन्ना मूल्य बकाया कोई असरदार मुद्दा नहीं है। ज्यादातर मिलों के बकाये मौजूदा सत्र से जुड़े हैं। वर्तमान किसान आंदोलन का फिलहाल कोई खास असर नजर नहीं आया है। यूपी के किसानों की आंदोलन में भागीदारी भी नगण्य है। भाजपा ने किसान आंदोलन की काट में कई फसलों की एमएसपी बढ़ाई है। मक्का, दाल व कपास जैसी संपूर्ण फसलों की खरीद एमएसपी पर करने का एलान कर दिया है।

पीडीए विपक्ष बनाम सत्तापक्ष

अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के लिए पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की लामबंदी को ध्यान में रखते हुए पीडीए फॉर्मूला उछाला है।

भाजपा ने बिना जातीय टिप्पणी किए इसके जवाब में पिछड़ा-दलित-अगड़ा (पीडीए) पर फोकस बढ़ा दिया है।

राज्यसभा चुनाव के बाद विधान परिषद और लोकसभा चुनाव में यह फोकस और बढ़ने की उम्मीद है। अखिलेश के फॉर्मूले से सवर्णों में नाराजगी है। दूसरी ओर भाजपा का पीडीए कोर वोटर को सहेजने का काम कर रहा है।

पीडीए बनाम पीडीएस व ज्ञान भी

दूसरी ओर सपा के पीडीए के नारे को भोथरा करने के लिए भाजपा पीडीएस और ज्ञान के फॉर्मूले के साथ सामने आई है। पार्टी ने जाति की बात करने की जगह गरीब, युवा, अन्नदाता किसान व नारी (ज्ञान) पर फोकस बढ़ा दिया है।

लाभार्थीपरक योजनाओं में यही वर्ग बहुतायत में है। इसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से मिलने वाले मुफ्त राशन से लेकर किसान सम्मान निधि,उज्ज्वला योजना, पीएम-सीएम आवास, पेंशन जैसी केंद्र व राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के लाभार्थी शामिल हैं। पार्टी ने इन वर्गों के हर लाभार्थी तक पहुंच का अभियान छेड़ रखा है।

2019 के गठबंधन

राजग : भाजपा, अपना दल एस, निषाद पार्टी

विपक्षी गठबंधन : सपा, बसपा, रालोद

तीसरा दल : कांग्रेस

2024 की मौजूदा तस्वीर

राजग : भाजपा, अपना दल एस, निषाद पार्टी, सुभासपा, रालोद।

विपक्षी गठबंधन : सपा, कांग्रेस।

तीसरा दल : बसपा

2019 में कितने वोटर

14,61,34,603

कुल मतदाता

महिला : 6,70,55,997

पुरुष : 7,90,70,809

थर्ड जेंडर : 7,797

मतदान : 59.21 प्रतिशत

2024 में कितने वोटर

15.29 करोड़ कुल मतदाता

पुरुष : 8.14 करोड़

महिला : 7.15 करोड़

थर्ड जेंडर : 7,705

आंकड़े 23 जनवरी 2024 तक के हैं (स्त्रोत ईसीआई)

हिंदी की सियासी ताकत

लोकसभा की 543 में से 209 सीटों पर पूरी तरह से हिंदी का प्रभाव है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों की मतदाता सूची हिंदी में तैयार की गई थी।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश में मतदाता सूची की प्रमुख भाषा हिंदी रही 2019 के चुनाव में।

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अमरोहा और मेरठ में मतदाता सूची हिंदी और उर्दू में तैयार की गई थी 2019 के चुनाव में।

अन्य भाषाओं का प्रभाव

मराठी में 39, बंगाली में 37, तेलुगु में 36, तमिल में 32, गुजराती में 27, ओड़िया में 21, कन्नड़-मलयालम में 19-19, असमिया, अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में 11-11 सीटों की मतदाता सूची बनाई गई थी। पंजाबी में 6 व उर्दू में चार सीटों की वोटरलिस्ट बनी थी। इसके साथ ही अंग्रेजी व अन्य क्षेत्रीय भाषा में मतदाता सूचियां बनाई गई थीं।


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