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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर सीट पर डॉ महेश शर्मा वर्सेस अदर , राजपूत और गुर्जरों का रुख होगा निर्णायक!

सम्पादक
24 April 2024 11:33 AM GMT
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर सीट पर डॉ महेश शर्मा वर्सेस अदर ,  राजपूत और गुर्जरों का रुख होगा निर्णायक!
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राजपूतों की नाराजगी खत्म होगी? गुर्जर किसके साथ जायेगा? डॉo महेश शर्मा के 10 बर्ष से लोग खुश है? प्रदेश की व्यापारिक राजधानी मे लोगों का मूड क्या है?

नोएडा। इस आम चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण सीट गौतमबुद्धनगर इन दिनों चर्चाओ में है। यह इलाका बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के गृह जनपद के तौर पर भी जाना जाता है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉ महेश शर्मा चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। वे अपनी हैट्रिक लगाने के लिए तीसरी बार आतुर है। आज चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा। देखना दिलचस्प होगा कि डॉक्टर अपनी पुरानी लीड को बढ़ाते हैं या फिर जीत का अंतर सिमटता हैl

इतिहास के पन्नों को पलटिए तो पता चलता है कि इस इलाके का सूबे की सियासत ही नही बल्कि देश की राजनीति में अहम योगदान रहा है। देश के प्रधानमंत्री और अब भारत रत्न से सम्मानित चौधरी चरण सिंह और गुर्जर गांधी के नाम से विख्यात पूर्व मंत्री सांसद रामचंद्र विकल् जैसे दिग्गज यहां के लोगों के जेहन में घर किए हैं। महेंद्र सिंह भाटी यहां जनता दल के कई बार विधायक हुए। उनके छोटे भाई राजवीर भाटी की करगुजारियों की वजह से एक शानदार नेता अपराधिक चरित्र के तौर पर राजनीति में बदनाम हुआ।देश की राजधानी दिल्ली से सटे हुए इस दादरी विधानसभा क्षेत्र का दबदबा उत्तर प्रदेश की राजनीति में रहा है। 90 के दशक में मुलायम सिंह यादव और चौधरी अजीत सिंह के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर अदावत हुई तब भी इस क्षेत्र के दो विधायक महेंद्र भाटी और नरेंद्र भाटी का अहम रोल रहा।

समाजसेवी मनीष चौधरी कहते हैं राजनीतिक किसी की सगी नहीं होती। उन्होंने बताया कि पूरे देश में दादरी विधानसभा सीट पर आजादी से अब तक केवल गुर्जर जाति का ही विधायक रहा है। मिहिर भोज और विजय सिंह पथिक जैसे शानदार व्यक्तित्व के धनी लोगों की भी ये कर्मस्थली है।

साल 2002 में विधान सभा चुनाव थे। तब कांग्रेस से दादरी विधानसभा पर टिकट के प्रबल दावेदार वेदराम नागर थे। उस दौर में देश के दिग्गज और किसान नेता राजेश पायलट वेदराम नागर की पैरवी करते थे। लेकिन पायलट की मौत के बाद वे अकेले पड़ गए। ऐन वक्त पर गांधी परिवार के करीबी अर्जुन सिंह की सिफारिश के बल पर नोएडा के बिशनपुरा निवासी रघुराज सिंह कांग्रेस का टिकट लाने में कामयाब हो गए। तब भाजपा ने नवाब सिंह नागर को विधायक का टिकट दिया था। नागर का यह दूसरा चुनाव था। तब दादरी और नोएडा एक ही विधानसभा सीट हुआ करती थी। उस चुनाव में रघुराज सिंह का पलड़ा भारी था। लेकिन चुनाव की अंतिम रात (जिसे राजनीतिक रूप से कत्ल की रात भी कहा जाता है) को दादरी के नागर बाहुल्य गांवों में वेदराम नागर के एक‌ मैसेज ने पूरा चुनाव ही पलट दिया। नागर का यह मैसेज था "अपने को दो"। इस मैसेज ने नागर बाहुल्य गांवों में आग की तरह काम किया‌ और जीत की दहलीज पर पहुंच चुके रघुराज सिंह को रातों रात चुनाव हरा दिया। तब महज 11 हजार वोटों से नवाब सिंह नागर दूसरी बार दादरी के विधायक निर्वाचित हुए। रघुराज सिंह इसे विश्वासघात की संज्ञा देते हैं।

उस समय राजनीति में सपाट व्यवहार के ढाणी वेदराम नागर को " गैम चेंजर" का नाम दिया गया। उस समय गौतमबुद्धनगर खुर्जा सुरक्षित संसदीय सीट का हिस्सा थी। लंबे समय तक यहां से रोशन लाल कांग्रेस के सांसद हुए। लेकिन आरक्षित रहते हुए अशोक प्रधान यहां से भारतीय जनता पार्टी का कमल खिलाने में कामयाब हुए और चार बार सांसद रहे। 2009 में नए परिसीमन हुए और यह सीट रिजर्व सीट की केटेगरी से बाहर आ गई। पांच विधानसभा सीटों नोएडा, दादरी, जेवर ,सिकंदराबाद और खुर्जा को लेकर बनी गौतम बुद्ध नगर संसदीय सीट पर मौजूदा सांसद डॉ महेश शर्मा भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार घोषित हुए। इनका बेहतरीन मुकाबला बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र नागर से हुआ। 2009 सुरेंद्र यहां से सांसद बने। वे अब भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं।

2002 में जिस रणनीति को मिल्क किंग वेदराम नागर ने अपनाया अब 22 साल बाद उनके बेटे के सामने भी वही समीकरण बन गए हैं। क्या सुरेंद्र उस इतिहास को दोहरा पाएंगे ? ये यक्ष प्रश्न है l इसका जवाब भविष्य के गर्त मे छुपा है।

इस आम चुनाव में जेवर विधान सभा सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। बसपा ने ठाकुर पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह सोलंकी को अपने उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में झोंक दिया है। राजेंद्र सोलंकी का खुर्जा सिकंदराबाद और जेवर विधानसभा सीट पर खास असर माना जा रहा है। इसकी वजह 1988 में उनका सिकंदराबाद सीट पर विधायक होना भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में ठाकुर बिरादरी बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी का मूक विरोध कर रही है।

राजनीतिक विश्लेषक स्योदान सिंह बताते हैं

2022 के विधान सभा चुनाव में जेवर से दूसरी बार ठाकुर धीरेन्द्र सिंह को पार्टी ने टिकट दिया था। लेकिन भाजपा के लिए वो चुनाव तब कठिन हो गया जब गुर्जर समाज के ताकतवर नेता कहे जाने वाले अवतार सिंह भड़ाना को राष्ट्रीय लोकदल ने यहां से मैदान में उतार दिया। एक बारगी भाजपा को यह सीट अपने हाथ से निकलती दिखाई दी। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि विधान सभा चुनाव में स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा ने पार्टी उम्मीदवार विधायक धीरेंद्र सिंह का मूक विरोध यानि तन्मयता से साथ नही दिया था। बहरहाल जेवर से भड़ाना की हार हुई। उस चुनाव में सुरेन्द्र सिंह नागर एक रणनीतिकार के तौर पर उभरे। चुनाव परिणाम बाद पार्टी ने सुरेंद्र नागर को संगठन में राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी से नवाजा। इसे राजनीतिक हल्का में प्रमोशन के तौर पर माना जाता है।

अब मतदान से ऐन पहले एक बार फिर सुरेन्द्र सिंह नागर समीकरणों को बदलने के लिए चुनावी रथ पर सवार किए गए है। उनका यह रथ दादी सती की पावन धरती दुजाना में पहुंच चुका है। समर्थकों के साथ उनका जोरदार स्वागत किया। सुरेंद्र सिंह नागर ने प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा को वोट देने की अपील की। ऐसे समय में जब मोदी के 400 पार पर चुनावी चुनौती मुंह बाए खड़ी हैं। भाजपा को विश्वास है कि तीसरी बार सत्ता मोदी की ही आएगी।

जिस क्षेत्र में नागर चुनावी प्रचार में आए हैं यहां पहले से ही "अपने को दो" का संदेश गांव गांव में चल‌ रहा है। इस बार 20 साल पहले की तरह "अपने को दो" का यह चुनावी संदेश उनके पिता वेदराम नागर की तरह किसी नेता ने नहीं दिया है बल्कि एक जाति विशेष की जनता के बीच स्वत ही शुरू हुआ है। इसके केन्द्र में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार डॉ महेंद्र नागर है। इस क्षेत्र के विकास चौधरी बताते है कि नागर के व्यक्तिगत संपर्क, मोदी का नाम और डाक्टर का व्यवहार और छवि के कारण अंत में भाजपा को ही वोट जाएगा।

अभी तक के जो राजनीतिक हालात हैं उसके मद्देनजर दादरी विधानसभा के गुर्जर बाहुल्य गांवों में वे लोग भी हैं जो सफेद कुर्ता पहनकर सुबह ही राजनीति करने निकल जाते हैं। जो नेताओं के दर पर नतमस्तक होकर अपने हित साधते है। वह बखूबी जानते हैं कि अगर सत्ता पक्ष के खिलाफ चले तो तुम्हारे रास्ते में अड़चनें पैदा होगी। तुम्हारे वह काम नहीं होंगे जो तुम नेताओं की जी हुजूरी करके करा लेते हो। ऐसे में उनकी राजनीतिक मजबूरी कहें या सत्ता पक्ष का खौफ उनका भाजपा के साथ और भाजपा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा के साथ खड़ा होना मजबूरी है।

इस सीट पर तकरीबन 27 लाख के करीब मतदाता है। इसमें अधिकांश वोटर शहरी मतदाता के तौर पर जाना जाता है। यहां जातिगत समीकरण कि यदि बात करें तो ठाकुर, गुर्जर,मुस्लिम जाट अनुसूचित जाति के भी वोटरों की संख्या खासी है। ठाकुर लोटे में नमक डालकर राजेंद्र सिंह सोलंकी के पक्ष में लामबंद हो रहे हैं,पर वो अपने रुख कायम रहेगा इस पर संशय है क्योंकि राजपूत भाजपा के अलावा किसी और को वोट देकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को कमजोर नहीं करना चाहेगा इसके अलावा इस लोकसभा में बीजेपी के दो राजपूत विधायक धीरेन्द्र सिंह और पंकज सिंह भी मोदी के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहेंगे।

सपा और बसपा उम्मीदवारों के मुकाबले डॉo महेश शर्मा मनोवैज्ञानिक बढ़त पहले दिन से बनाये हुए है, चुकी इस सीट पर शहरी मतदाता अधिक है उस मे महेश शर्मा की छवि का काफी प्रभाव है। पिछले चुनाव में डॉक्टर महेश शर्मा 336000 मतों के भारी अंतर से विजय हुए थे। उनका स्पष्ट दावा है कि वह इस लीड को बढ़ाएंगे। देखना दिलचस्प होगा कि यहां ऊंट किस करवट बैठता है।

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