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गौतमबुद्धनगर से क्या इस बार मिल सकती है भाजपा को चुनौती? समझिए सियासी गणित

Khursheed Saifi
16 April 2024 11:27 AM GMT
गौतमबुद्धनगर से क्या इस बार मिल सकती है भाजपा को चुनौती? समझिए सियासी गणित
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नई दिल्ली। गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट शुरू से ही चर्चा का विषय रही है और इस बार यहां सस्पेंस देखने को मिल सकता है। इसका कारण यहां का वोटबैंक हैं। दरअसल, इस सीट से पहली बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जीत ने दर्ज की थी। यूपी में 2008 में विधानसभा चुनाव हुआ था और उस समय पूरे यूपी में मायवती की लहर थी इस वजह से भाजपा के मौजूदा सांसद महेश शर्मा हार गए थे। लेकिन इसी दौरान भाजपा का भी धीरे-धीरे ग्राफ बढ़ रहा था।

2014 और 2019 में मोदी लहर में भाजपा ने अपना परचम लहाराया और महेश शर्मा ने जीत दर्ज की। हालांकि, अब यहां के मतदाता निराशापूर्ण प्रतिक्रिया दे रहे हैं, इसका कारण है वहां की जमीन पर तयनुसार मुआवजा न देना। दूसरी तरफ यहां सियासी समीकरण जाति के कारण भी बदल सकता है क्योंकि यहां पर ब्राहम्ण, गुर्जर और क्षत्रिय की सबसे ज्यादा आबादी है ऐसे में यहां से बसपा या सपा भाजपा के सामने तीसरी मुंह की खा सकती है।

2011 की जनगणना के अनुसार, गौतमबुद्धनगर में 85 प्रतिशत हिंदू आबादी रहती है। जिसमें से 47 फीसदी लोग शहर में बाकी के 53 ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। यहां का चुनावी समीकरण बहुत ही सुलझा रहा है लेकिन इस बार बिगड़ सकता है। इसका कारण है मुआवजा। समाजवादी पार्टी के समय में जमीन को लेकर मुजावजा देने को लेकर सहमति बनी थी लेकिन भाजपा ने उस पर अमल नहीं किया। जिसके कारण ग्रामीण आबादी के कई लोग नाराज चल रहे हैं, ऐसे में वे सपा या बसपा की तरफ जा सकते हैं। हालांकि, इससे ज्यादा नुकसान नहीं होगा क्योंकि पिछले आंकड़े के मुताबिक भाजपा ने 2019 में 60 फीसदी से ज्यादा वोट जुटाए थे, जो भाजपा को जीत की पक्की गारंटी देती है।

यहां से भाजपा को पीएम मोदी के 400 पार और विकसित भारत के नारे का भी फायदा मिलेगा। क्योंकि यूपी का यह जिला सबसे ज्यादा उन्नत है जो विकसित भारत के समने की रुपरेखा को दिखाता है। ऐसे में यहां के मतदाता चाहेंगे कि विकसित भारत की लहर पूरे देश में पहुंचे। इसके अलावा राममंदिर के मुद्दों पर से भी भाजपा को लाभ मिलेगा, लोग बड़ी तादाद में बड़े शहरों से राम मंदिर का दर्शन करने के लिए वीआईपी दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं जो भाजपा की जीत का सीधा संदेश देते हैं। हालांकि राजनीति में हमेशा बदलाव की गुंजाइश रहती है और समीकरण कभी भी बदल सकते हैं और यह नतीजे जारी होने के बाद पता लगेगा।

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