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दिल्ली के सियासी मैदान में हर तरकश से चले तीर, सीएए के इर्द-गिर्द होते रहे वार-पलटवार

SaumyaV
15 March 2024 8:32 AM IST
दिल्ली के सियासी मैदान में हर तरकश से चले तीर, सीएए के इर्द-गिर्द होते रहे वार-पलटवार
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भाजपा व आम आदमी पार्टी के बीच दिनभर जुबानी जंग चली। भाजपा की तरफ से मोर्चा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में प्रदेश नेताओं से संभाला। वहीं, मुख्यमंत्री ने आप का नेतृत्व किया।

दिल्ली का सत्ता संग्राम बुधवार दिनभर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के इर्द-गिर्द घूमता रहा। भाजपा व आम आदमी पार्टी के बीच दिनभर जुबानी जंग चली। भाजपा की तरफ से मोर्चा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में प्रदेश नेताओं से संभाला। वहीं, मुख्यमंत्री ने आप का नेतृत्व किया। दोनों तरफ की रणनीति अपनी तरकश से छोड़े गए भावनात्मक तीरों के सहारे वोटर को हक में लामबंद करने की रही। भाजपा ने कानून को हिंदू शरणार्थियों के साथ बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से भारत आए लोगों की पीड़ा से जोड़ा, जबकि आप ने इससे दिल्लीवालों की माताओं-बहनों की सुरक्षा के साथ रोजगार व नागरिक सुविधाओं पर पड़ने वाले दबाव की बात कही।

दिल्ली की सियासी बिसात केंद्रीय गृहमंत्री का बयान आने के बाद बिछी। गृहमंत्री ने कहा कि केजरीवाल बांग्लादेशी घुसपैठियों, रोहिंग्या के खिलाफ क्यों नहीं बोलते। वे सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करते हैं। इसके जवाब में मीडिया से मुखातिब हुए केजरीवाल ने कहा कि उनकी फिक्र में बेरोजगार युवा हैं, देश की माताओं-बहनों की सुरक्षा है व नागरिक सुविधाओं पर पड़ने वाले दबाव से है। देश के टैक्स का पैसा पाकिस्तानियों पर खर्च करना मंजूर नहीं है। मुख्यमंत्री को जवाब देने का जिम्मा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने संभाला। सचदेवा ने सवाल किया कि दिल्ली के टैक्स पेयर्स के पैसों से मौलवियों को तनख्वाह देने वाले केजरीवाल मंदिर के पुजारियों, पादरियों व ग्रंथियों के लिए आज तक क्यों चुप रहे। रोहिंग्या मुसलमानों पर आज तक कोई बयान उनकी तरफ से नहीं आया। वे सिर्फ वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।

घर से उजड़ने की पीड़ा

दिल्ली की सियासत के जानकारों का मानना है कि सीएए बड़ा संवेदनशील मुद्दा है। वह इसलिए भी कि दिल्ली की बड़ी आबादी ने आजादी के वक्त विभाजन का दंश झेला है। पाकिस्तान से उजड़कर वे दिल्ली में बसे। इससे वे शरणार्थियों की पीड़ा ज्यादा महसूस करते हैं। माना जा रहा है कि भाजपा को इससे इस समुदाय से जुड़े वोटर की भी सहानुभूति मिलेगी। राजनीतिक व कानूनी विश्लेषक डॉ. आलोक रंजन मानते हैं कि विभाजन के दौरान का पलायन त्रासदी है। इसमें अविभाजित पंजाब से बड़ी संख्या में सिख और पंजाबी दिल्ली आ गए थे। इस कानून से उनकी भी सहानुभूति भाजपा को मिलेगी। मोटे तौर पर इस कानून से भाजपा ने संदेश दिया है कि उसे भी अल्पसंख्यकों की फिक्र है और भाजपा के लिए अल्पसंख्यक का मतलब मुस्लिम ही नहीं, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भी हैं। ये पार्टी का प्रबल पक्ष भी होगा। वजह यह कानून काफी पुराना है। इसमें कोई सुधार अभी तक नहीं हुआ था।

केजरीवाल के तीखे सवाल

गृहमंत्री दें जवाब, पाकिस्तान-अफगानिस्तान-बांग्लादेश के लोगों को घर, रोजगार और संसाधन क्यों देना चाहती है केंद्र सरकार।

सारी सरकारें मिलकर देश के युवाओं को रोजगार देने में असमर्थ हैं। फिर पाकिस्तान, बांग्लादेश-अफगानिस्तान के लोगों के लिए घर और रोजगार कहां से लाएंगे।

2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद रोहिंग्या आए, क्या ये सरकार की मिलीभगत से आए या नाकामी की वजह से आए।

देश के लोग बताएं, अगर आपके घर के सामने पाकिस्तानियों को बसा दिया जाए तो आपको मंजूर है। क्या आपकी बहू-बेटियां और देश सुरक्षित होगा।

दिल्ली में राशन कार्ड कम पड़ रहे हैं, केंद्र सरकार कार्ड बनाने की इजाजत नहीं दे रही है, लेकिन पाकिस्तानियों को राशन कार्ड देना चाहती है।

सीएए लागू होने से जो माइग्रेशन होगा जो आजादी के दौरान हुए माइग्रेशन से ज्यादा बड़ा होगा। केंद्र सरकार अवैध घुसपैठियों के लिए भारत में आना वैध बना रही है।

केंद्र सरकार को लाना ही है तो भारत छोड़कर गए 11 लाख उद्योगपतियों-व्यापारियों को लाए। ये लोग फैक्ट्री लाएंगे, नौकरियां देंगे।

भाजपा का पलटवार

भ्रष्टाचार के पैसों से महल में रहने वाले केजरीवाल अब बताना चाहते हैं कि देश कैसे चलेगा।

एक वर्ग विशेष को खुश करने के लिए उल्टे सीधे बयान दे रहे हैं, उन्हें सिर्फ धर्म की राजनीति करनी है, मानवीय संवेदना खत्म हो चुकी है।

केजरीवाल की भाषा ओवैसी, ममता बनर्जी की तरह है। रोहिंग्या मुसलमानों पर आज तक उन्होंने कोई बयान नहीं दिया।

जिस टैक्स की बात केजरीवाल कर रहे हैं, उसी टैक्स के पैसों से दिल्ली के मौलवियों को 42000 रुपये तनख्वाह देते हैं।

आज तक किसी पुजारी, पादरी, ग्रंथियों के लिए मुंह क्यों नहीं खोला। जवाब दिल्ली की जनता जानना चाहती है।

मुख्यमंत्री के खुद के विधायकों ने अतिक्रमण किया है और कब्जे किए हैं, उस पर कार्रवाई क्यों नहीं करते।

पाकिस्तान, अफगानिस्तान में हिंदू-सिख महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार पर क्या कहना चाहेंगे। इस मामले में खामोशी क्यों?

हिंदू शरणार्थियों का सीएम आवास के पास प्रदर्शन

पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर देश में आए हिंदू शरणार्थियों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के पास बृहस्पतिवार को प्रदर्शन किया। चंदगीराम अखाड़े के पास प्रदर्शन में महिलाएं और बच्चे भी मौजूद रहे। शरणार्थियों ने हाथों में बैनर व पोस्टर ले रखे थे। उन्होंने अरविंद केजरीवाल से सीएए पर दिए बयान वापस लेने की मांग की। जब प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री आवास की ओर बढ़ने लगे तो पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रोक लिया।

शरणार्थी कैंप के प्रमुख धर्मवीर सोलंकी ने कहा कि पाकिस्तान

में दूसरे कौम के नेता परेशान करते थे, यहां हिंदू नेता ही हिंदू शरणार्थियों के खिलाफ हैं। ऐसे में हिंदू शरणार्थी कहां जाएंगें। भारत ही उनकी आखिरी आस है। यही उनका असली घर है। केंद्र सरकार ने सीएए लागू करके यहां उन्हें नया जीवन दिया है, लेकिन दिल्ली सरकार आशियाना बनाने के बदले, उजाड़ रही है। केजरीवाल उनका दर्द नहीं समझते।

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अभी उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल रही है। ऐसे में केजरीवाल के बयान ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया है। हिंदू शरणार्थी राम ने कहा कि केजरीवाल सीएए को लेकर भ्रामक बयान दे रहे हैं। इस पर कार्रवाई होनी चाहिए। यह हिंदू शरणार्थियों के हित में नहीं है।

कांग्रेस ने संगठन मजबूत करने के लिए कीं नियुक्तियां

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने के लिए बृहस्पतिवार को दो विभागों में नियुक्ति की। प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने प्रदेश कांग्रेस के ट्रेडर्स सेल और रजक (धोबी) समाज सेल के चेयरमैन की नियुक्ति की। उन्होंने दिल्ली राज्य ट्रेडर्स कांग्रेस का चेयरमैन अजय अरोड़ा व रजक (धोबी) समाज सेल का चेयरमैन मदन लाल को नियुक्त किया।

मतदाता बढ़े 20 गुना, लोकसभा सीटें तीन से हुईं सात

वर्ष 1952 के आम चुनाव में दिल्ली में 7,44,668 मतदाता थे। इसमें से करीब चार लाख लोगों ने प्रतिनिधियों को चुना। पहले आम चुनाव से लेकर अब तक दिल्ली में मतदाताओं की संख्या 20 गुना बढ़ गई है। जनवरी 2014 की चुनाव आयोग की लिस्ट में 1,47,18,119 वोटर हैं। उधर, पहले चुनाव में दिल्ली में तीन संसदीय सीटें थीं। यहां से चार सांसद चुने जाते थे। इनमें से एक सीट से दो सांसदों का चुनाव होता था, लेकिन बाद में प्रकिया बदली और सीटों की संख्या सात हो गई।

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