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25 जनवरी को BJP ने लोकसभा चुनाव के लिए थीम सॉन्ग जारी कर दिया, जिसमें राम मंदिर का जिक्र किया गया
देश में भले ही लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन इसके पहले ही सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है। बीते दिन बिहार की सियासत ने एक बार फिर करवट बदली और जदयू महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल हो गई। रविवार को नीतीश कुमार ने नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके साथ ही भाजपा ने कहा है कि आगामी लोकसभा में एनडीए सभी 40 सीटों पर जीत दर्ज करेगा।
इससे पहले सियासी जानकर इंडिया गठबंधन के अगुआ नीतीश कुमार को बिहार में भाजपा के लिए चुनौती मान रहे थे। हालांकि, ताजा घटनाक्रम से सारे समीकरण बदल चुके हैं। एक ओर जहां राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा अपने चुनावी प्रचार को धार देने में जुट गई है तो वहीं दूसरी ओर घटक दलों के अलग होने के साथ इंडि गठबंधन भी कमजोर होता जा रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि भाजपा ने अपने चुनाव अभियान को कैसे शुरू किया है? बिहार में नीतीश के पाला बदलने से क्या बदलेगा? हालिया घटनाक्रमों के बाद भाजपा के सामने इंडिया गठबंधन की कितनी चुनौती है?
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। मुख्य जजमान के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस धार्मिक अनुष्ठान को किया। इस कार्यक्रम के दौरान देश विदेश से करीब आठ हजार विशेष मेहमानों की भी उपस्थिति रही। इस भव्य कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कांग्रेस समेत इंडिया के कई दलों को न्योता मिला था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था।
शुरुआत से ही भाजपा ने इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया। भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने दावा किया कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का न्यौता ठुकराकर हिंदू धर्म की आस्था का अपमान किया है। इसके साथ ही पार्टी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी करार दिया और दावा कि कांग्रेस तो शुरुआत से भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर सवाल उठाती रही है।
लोकसभा चुनाव के लिए जारी थीम सॉन्ग में राम मंदिर
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दो दिन बाद ही 25 जनवरी को भाजपा ने 2024 लोकसभा चुनावों के लिए अपने अभियान का थीम सॉन्ग लॉन्च किया। भाजपा का प्रचार अभियान 'सपने नहीं हकीकत बुनते हैं, तभी तो सब मोदी को चुनते हैं' थीम पर आधारित है। यह थीम सॉन्ग फर्स्ट टाइम वोटर्स कॉन्क्लेव (नव मतदाता सम्मेलन) में लॉन्च किया गया।
दो मिनट 12 सेकंड के वीडियो में पीएम मोदी के कार्यकाल में हुए कामों को दर्शाया गया है। पार्टी ने दावा किया कि वीडियो में दिखाया गया कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी ने करोड़ों भारतीयों के सपनों और आकांक्षाओं को वास्तविकता में बदल दिया है।
वीडियो में स्टार्टअप अर्थतंत्र, उद्यमशीलता, रोजगार, किसानी, महिला भागीदारी और कम होती गरीबी जैसे मुद्दों को दिखाया गया है। इसके अलावा पिछ्ले कुछ समय में देश को मिली सफलताओं पर फोकस किया गया है, जिसमें चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग, जी20 का सफल आयोजन, खेलों में देश का अच्छा प्रदर्शन आदि शामिल है। दिलचस्प है कि वीडियो के अंत में प्रधानमंत्री को अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करते हुए दिखाया गया है।
बुलंदशहर से चुनावी आगाज में राम लला
25 जनवरी को ही पीएम मोदी ने लोकसभा चुनावों की तैयारी का बिगुल फूंक दिया। पीएम ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों की तैयारी का आगाज बुलंदशहर से किया। इसे संयोग माना जाए या रणनीति, लेकिन ठीक 10 साल पहले 2014 के लोकसभा के चुनावों में भी प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनावों का सियासी बिगुल उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर से ही फूंका था। अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बुलंदशहर से प्रदेश को अरबों रुपयों की बड़ी सौगातें भी दीं। अपने संबोधन में पीएम ने कई बार राम मंदिर या राम लला का जिक्र किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये हमारा सौभाग्य है कि देश ने कल्याण सिंह और उनके जैसे अनेक लोगों का सपना पूरा किया है। अयोध्या में मैंने रामलला के सान्निध्य में कहा था कि रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न हुआ, अब राष्ट्र प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई देने का समय है।
पीएम मोदी ने बुलंदशहर में कल्याण सिंह को भी याद किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र ने देश को कल्याण जी जैसा सपूत दिया है, जिन्होंने रामकाज और राष्ट्रकाज दोनों के लिए अपना जीवन समर्पित किया। आज वो जहां हैं वो अयोध्या धाम को देखकर बहुत आनंदित हो रहे होंगे।
सियासी जानकार और वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का बुलंदशहर से जनसभा की शुरुआत करना और प्रदेश को अरबों की सौगात देना महज सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने 2014 में यहीं से लोकसभा चुनाव की रैलियों का सियासी आगाज किया था। उसके बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा को बंपर सफलता मिली थी और केंद्र में भाजपा की सरकार बनी थी।
इंडिया गठबंधन से दूरी बनाते दल
करीब छह महीने पहले देश के कुछ प्रमुख विपक्षी दलों ने इंडि गठबंधन की स्थापना की थी। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य आगामी लोकसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना था। हालांकि, यह गठबंधन चुनाव से पहले बिखरता हुआ नजर आ रहा है। लोकसभा चुनावों के लिए सीट-बंटवारे को लेकर इंडिया के सहयोगी दलों के बीच मतभेद देखने को मिल रहा है।
यही कारण है कि 24 जनवरी को ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में टीएमसी के अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। उसी दिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का बयान भी आया, जिसमें उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी पंजाब में सभी 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी।
इंडिया समूह की पहल करने वाले नीतीश ने दिया बड़ा झटका
29 जनवरी को इंडिया समूह को एक बड़ा झटका लगा जब इसके अगुवा नीतीश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गए। जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने राज्य में चल रही 'महागठबंधन' गठबंधन को भंग कर दिया और भाजपा के साथ चले गए। इस दौरान जदयू ने इंडिया गठबंधन को भी आड़े हाथों लिया।
जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा, 'हमें अफसोस है कि हमने कांग्रेस पार्टी को देश की राजनीति में स्वीकार्यता दिलाई, यह पार्टी राजनीति में अछूत हो चुकी थी। टीएमसी, आप, सपा आदि सभी पार्टियों ने गैर भाजपा, गैर कांग्रेस मोर्चे की कोशिश की थी। यह सिर्फ नीतीश कुमार थे, जिनकी वजह से इंडिया गठबंधन बना और कांग्रेस को फिर से राजनीति में पुनः स्थापित करने और सम्मान दिलाने का काम हमने किया।'
वहीं नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में पटना पहुंचे भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि नीतीश कुमार एनडीए में लौट आए हैं, ये उनके लिए खुशी की बात है। जेपी नड्डा ने दावा किया कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए लोकसभा चुनाव 2024 में जीत हासिल करेगा और सरकार बनाएगा।
हाल के घटनाक्रमों के बाद भाजपा के सामने इंडिया गठबंधन की कितनी चुनौती है, इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार समीर चौगांवकर ने अपनी राय रखी। समीर चौगांवकर कहते हैं, 'मुझे लगता है कि विपक्ष को जोड़ने के लिए जिस तरह की पहल करनी चाहिए थी, कांग्रेस उसमें चूक गई है। यूपी में 80 सीटें आती हैं, वहां कांग्रेस और सपा को मायावती को अपने साथ जोड़ना चाहिए था। इसी तरह बंगाल और महाराष्ट्र में भी होना चाहिए था। इसका खामियाजा विपक्ष को लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। बड़े राज्यों में विपक्षी एकता का परसेप्शन पूरी तरह से धराशायी हो गया है। ऐसे में यह गठबंधन लोकसभा चुनाव में बहुत प्रभावी नहीं रहेगा।'