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कश्मीरी मीडिया का दर्द: पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में कश्मीर के अखबारों ने छापे काले फ्रंट पेज, जानें किस तरह व्यक्त किया दुख

पहलगाम (शुभांगी)। कश्मीर घाटी ने एक बार फिर अपने दर्द और प्रतिरोध की आवाज़ उठाई-इस बार शब्दों से नहीं, बल्कि स्याही से। बुधवार की सुबह जब लोगों ने अपने अखबार खोले, तो उन्हें हर ओर काले फ्रंट पेज दिखाई दिए। यह दृश्य केवल एक संपादन का निर्णय नहीं था, बल्कि एक भावनात्मक और प्रतीकात्मक विरोध था उस वीभत्स आतंकवादी हमले के खिलाफ, जिसने पहलगाम में 28 निर्दोष जानों को निगल लिया, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे।
विरोध की नई भाषा-शोक में डूबे काले पृष्ठ
कश्मीर के प्रमुख अंग्रेजी और उर्दू दैनिकों ग्रेटर कश्मीर, राइजिंग कश्मीर, कश्मीर उजमा, आफताब और तामील इरशाद ने अपने पहले पृष्ठ को पूरी तरह काले रंग में प्रकाशित किया। सफेद या लाल रंग में लिखे गए हेडलाइनों ने उस काले सन्नाटे को और अधिक मुखर बना दिया। यह एक ऐसा दृश्य था, जिसने पूरे कश्मीर की वेदना और आक्रोश को एक साथ अभिव्यक्त किया।
ग्रेटर कश्मीर की हेडलाइन-"कश्मीर जला, कश्मीरी शोक में डूबे"-काले पृष्ठ पर सफेद अक्षरों में चीख रही थी। इसके ठीक नीचे लाल रंग में लिखा गया "पहलगाम में आतंकवादी हमले में 28 की मौत"। यह केवल समाचार नहीं था, यह घाटी की आत्मा की चीख थी।
संपादकीय में कश्मीर की आत्मा की पुकार
अखबार के पहले पन्ने पर प्रकाशित संपादकीय का शीर्षक था-“घास के मैदान में नरसंहार-कश्मीर की आत्मा की रक्षा करें”। इस लेख में उस त्रासदी को न केवल एक आतंकी घटना के रूप में देखा गया, बल्कि एक सांस्कृतिक और भावनात्मक चोट के तौर पर परिभाषित किया गया।
“यह हमला केवल निर्दोष जानों पर नहीं, बल्कि उस पहचान पर है, जो कश्मीर को ‘धरती का स्वर्ग’ बनाती है - इसकी मेहमाननवाज़ी, इसकी शांतिप्रिय संस्कृति और इसकी नाज़ुक लेकिन जिजीविषा से भरी हुई आत्मा।”
संपादकीय में पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए कहा गया कि वे लोग जो यहां सुंदरता और शांति की तलाश में आए थे, वे यहां त्रासदी और आतंक का शिकार बन गए।
सुरक्षा तंत्र पर सवाल और भविष्य के लिए संकल्प
लेख ने इस बात को भी गंभीरता से उठाया कि इतना बड़ा हमला एक ऐसे इलाके में हुआ, जो पैदल या टट्टू के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है। यह सुरक्षा व्यवस्था की चूक और खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता की ओर इशारा करता है।
अखबार ने समुदाय आधारित सतर्कता, खुफिया तंत्र को मजबूत करने, और आतंकवाद के विरुद्ध सामूहिक संघर्ष की वकालत की। यह केवल सरकार या सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी नहीं है यह एक साझा लड़ाई है, जिसमें नागरिक समाज और आम लोग भी भागीदार हैं।
कश्मीर का संकल्प-खामोश नहीं, एकजुट
“कश्मीर ने दशकों तक हिंसा को सहा है, लेकिन इसकी आत्मा आज भी जीवित है। यह हमला हमें तोड़ नहीं सकता। बल्कि यह हमें और मजबूत, और एकजुट करेगा। हमें मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि हम अपनी घाटी को फिर से शांति, प्रेम और सौहार्द की वादी बनाएंगे - एक ऐसा स्थान जहां पहलगाम की वादियां फिर से हंसी और संगीत से गूंजेंगी, न कि गोलियों और चीखों से।”
कश्मीर के अखबारों ने जिस मौन लेकिन प्रभावशाली तरीके से इस आतंकी घटना का विरोध किया, वह केवल एक संपादकीय निर्णय नहीं था, यह कश्मीर की सामूहिक चेतना की पुकार थी। यह विरोध उस भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है, जो इस धरती के हर नागरिक को इसकी शांति और सुंदरता से है। आतंक का जवाब केवल बंदूक से नहीं, बल्कि एकजुटता और इंसानियत से दिया जाएगा और यही संदेश इस काले फ्रंट पेज ने दुनिया को दिया।