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भारत परमाणु दायित्व कानूनों में ढील देने की तैयारी में, अमेरिकी निवेश को लुभाने की कोशिश

Varta24Bureau
18 April 2025 1:40 PM IST
भारत परमाणु दायित्व कानूनों में ढील देने की तैयारी में, अमेरिकी निवेश को लुभाने की कोशिश
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2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य; प्रस्तावित संशोधन से उपकरण आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी सीमित होगी, विदेशी कंपनियों की वापसी की उम्मीद

नई दिल्ली (राशी सिंह)। भारत अपने परमाणु दायित्व कानूनों को सरल बनाने पर विचार कर रहा है, ताकि उपकरण आपूर्तिकर्ताओं की दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदारी की सीमा तय की जा सके। इस कदम का उद्देश्य खासतौर पर उन अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित करना है, जो अनिश्चित और असीमित जोखिम के डर से भारत में निवेश करने से बच रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का यह प्रस्ताव 2047 तक भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता को 12 गुना बढ़ाकर 100 गीगावाट तक पहुंचाने की योजना का हिस्सा है और अमेरिका के साथ व्यापार एवं टैरिफ समझौतों में भारत की स्थिति मजबूत करने की दिशा में एक नया प्रयास है।

जानकारी के मुताबिक परमाणु ऊर्जा विभाग ने जो मसौदा कानून तैयार किया है, उसमें 2010 के नागरिक परमाणु दायित्व क्षति अधिनियम की एक प्रमुख धारा को हटाने का प्रस्ताव है, जो आपूर्तिकर्ताओं को असीमित दायित्व के अंतर्गत लाता है। भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग, प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय ने इस विषय पर टिप्पणी करने से इनकार किया है।

प्रमुख अधिकारी ने क्या कहा?

डेलॉइट साउथ एशिया के प्रमुख विकास अधिकारी देबाशीष मिश्रा ने कहा, "भारत को परमाणु ऊर्जा की जरूरत है क्योंकि यह स्वच्छ है और देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनिवार्य भी।" उन्होंने यह भी कहा कि दायित्व की सीमा तय करना आपूर्तिकर्ताओं की सबसे बड़ी चिंता को दूर करेगा। ये बदलाव अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं, जिनके अनुसार रिएक्टरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी आपूर्तिकर्ता की बजाय संचालक की होती है।

भारत को उम्मीद है कि ये संशोधन जनरल इलेक्ट्रिक (GE.N) और वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक जैसी अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को कम करेंगे, जो अभी तक असीमित जोखिम के कारण भारत में कदम रखने से हिचक रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संशोधित कानून भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते की दिशा में एक अहम कड़ी हो सकता है, जिसका लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 191 अरब डॉलर से बढ़ाकर 500 अरब डॉलर करना है।

सरकारी सूत्रों के अनुसार...

सरकारी सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार को उम्मीद है कि संसद के जुलाई में शुरू होने वाले मानसून सत्र में इन संशोधनों को मंजूरी मिल जाएगी। प्रस्तावित कानून के अनुसार, अगर कोई दुर्घटना होती है तो ऑपरेटर आपूर्तिकर्ता से केवल अनुबंध की रकम के भीतर और तय समयसीमा में ही मुआवज़ा मांग सकेगा। मौजूदा कानून में यह स्पष्ट नहीं है कि ऑपरेटर कितनी रकम का दावा कर सकता है और विक्रेता कितने समय तक उत्तरदायी रहेगा।

भोपाल गैस त्रासदी से निकला कानून

भारत का 2010 का परमाणु दायित्व कानून 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के बाद अस्तित्व में आया था। यह दुनिया की सबसे गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी, जिसमें यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से रिसी गैस से 5,000 से अधिक लोगों की जान गई थी। कंपनी ने 1989 में 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा अदालत से बाहर समझौते के तहत दिया था। यह कानून पश्चिमी कंपनियों के लिए भारत के विशाल परमाणु ऊर्जा बाजार में प्रवेश करना मुश्किल बना देता है, और इससे भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग (जो 2008 में शुरू हुआ था) को भी झटका लगा है। इस वजह से अमेरिकी कंपनियां रूस और फ्रांस की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गई हैं, क्योंकि वहां की सरकारें दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी उठाती हैं। प्रस्तावित मसौदा कानून छोटे रिएक्टरों के ऑपरेटरों के लिए 58 मिलियन डॉलर की दायित्व सीमा का सुझाव देता है, जबकि बड़े रिएक्टरों के लिए मौजूदा 175 मिलियन डॉलर की सीमा में बदलाव की संभावना नहीं है।

भारत, जो अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के साथ-साथ शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को भी पूरा करना चाहता है, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भारतीय कंपनियों को निवेश की अनुमति देने की योजना बना रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अडानी पावर और वेदांता लिमिटेड जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में करीब 5.14 अरब डॉलर के निवेश पर सरकार से बातचीत कर रही हैं।

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