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दिल्ली में पहली लू, आगे और भी लहरें संभव, आईएमडी ने जारी किया 'येलो अलर्ट'

नई दिल्ली (शुभांगी)। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार, दिल्ली में पहली लू दर्ज। उत्तर भारत में अभी अप्रैल की शुरुआत ही हुई है, लेकिन गर्मी ने अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने आने वाले दिनों में उत्तर भारत के कई राज्यों में भीषण गर्मी को लेकर 'येलो अलर्ट' जारी किया है। इसका मतलब है कि यह गर्मी आमतौर पर सहनीय हो सकती है, लेकिन बच्चों, बुज़ुर्गों और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। आईएमडी के अनुसार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच सकता है। पश्चिमी राजस्थान सबसे अधिक प्रभावित है, जबकि पूर्वी राजस्थान, सौराष्ट्र और कच्छ (गुजरात) में भी तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है।
दिल्ली में पहली लू, आगे और भी लहरें संभव
सोमवार, 7 अप्रैल को दिल्ली में इस वर्ष की पहली लू दर्ज की गई, जहां कई इलाकों में तापमान 40.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। आईएमडी ने राजधानी में अगले दो दिनों के लिए येलो अलर्ट को बढ़ा दिया है। आमतौर पर उत्तर भारत में अप्रैल से जून के बीच लू चलती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण अब गर्मी समय से पहले शुरू हो रही है और ज्यादा समय तक बनी रह रही है। IMD प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा के अनुसार, इस वर्ष सामान्य से अधिक गर्मी दर्ज की जाएगी और अप्रैल से जून के बीच दो से चार अधिक लू वाले दिन देखे जा सकते हैं।
देशभर में बढ़ेगी लू की घटनाएं
राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी अप्रैल से जून के बीच अधिक लू के दिन देखने को मिल सकते हैं।
गर्मी का मानव जीवन और अर्थव्यवस्था पर असर
गर्मी केवल स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डाल रही है। मार्च से जून 2024 के बीच कम से कम 143 लोगों की मौत हुई और लगभग 42,000 लोग लू से प्रभावित हुए। उत्तर प्रदेश सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहा।
'लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2024' रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक की तुलना में अब अत्यधिक गर्मी के कारण काम के घंटों में 50% की बढ़ोतरी हुई है। केवल 2023 में ही भारत को इससे करीब 141 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें से 71.9 बिलियन डॉलर का नुकसान खेती से जुड़ी मजदूरी की कमी से हुआ।