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चौंकिए मत! वैज्ञानिकों ने ऐसा रंग खोज निकाला है, जिसे आजतक किसी ने देखा नहीं है, पढ़ें रंग का कमाल

नई दिल्ली (शुभांगी)। इंसानी आंखों ने आज तक जो रंग देखे हैं, वे तीन प्रमुख रंग रेड, ग्रीन, ब्लू के संयोजन से बनते हैं। लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रंग खोजा है जिसे पहले किसी भी इंसान ने नहीं देखा था। इस नए रंग को नाम दिया गया है "ओलो"।
कैसे हुई ओलो की खोज?
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और कैलिफ़ोर्निया-बर्कले यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक बेहद जटिल लेजर तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इस रंग का पता लगाया। उन्होंने आंख की रेटिना पर स्थित ‘एम’ (मिडियम) कोन कोशिकाओं को अकेले और सटीक रूप से सक्रिय किया। ऐसा सामान्य रोशनी में संभव नहीं होता।
इस प्रक्रिया के दौरान जिन पांच लोगों ने इस रंग को देखा, वे खुद वैज्ञानिक टीम का हिस्सा थे। यह रंग उन्हें एक बिल्कुल अलग और तेज़ नीला-हरा अनुभव हुआ, जो न तो किसी स्क्रिन पर दिखाया जा सकता है और न ही प्रकृति में मौजूद किसी रंग से मेल खाता है।
ओलो क्यों है इतना खास?
ओलो का अस्तित्व इस वजह से अनोखा है क्योंकि यह तब दिखाई देता है जब सिर्फ एक ही प्रकार की कोन कोशिका (एम) को अलग से उत्तेजित किया जाए। बाकी सभी रंग, अलग-अलग कोनों के संयोजन से बनते हैं। इस कारण ओलो को न तो किसी रंग में मिलाया जा सकता है, न स्क्रीन पर दिखाया जा सकता है और न ही पेंट में बनाया जा सकता है।
क्या हो सकती हैं इसके वैज्ञानिक लाभ?
यह खोज सिर्फ रंगों तक सीमित नहीं है। ओलो जैसे अदृश्य रंगों की खोज भविष्य में कई तरह की संभावनाओं के द्वार खोल सकती है। जैसे दृष्टि दोषों के इलाज, कलर ब्लाइंडनेस की समझ, ब्रेन-सेंसरी रिसर्च, और यहां तक कि नई तकनीकों के डिस्प्ले सिस्टम विकसित करने में।
क्या भविष्य में हम सब ओलो देख पाएंगे?
फिलहाल तो ओलो को केवल वैज्ञानिक प्रयोगों के दौरान कुछ ही लोगों ने देखा है। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक में सुधार होगा, संभव है कि भविष्य में सामान्य लोग भी इस रहस्यमयी रंग को अनुभव कर सकें। यह खोज इस बात की मिसाल है कि इंसानी ज्ञान की सीमाएं अब भी असीमित हैं और हमें रंगों की दुनिया में अभी बहुत कुछ जानना बाकी है।