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फीस विवाद में बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने डीपीएस द्वारका को लगाई फटकार

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका को फीस विवाद के चलते छात्रों के साथ कथित अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार करने पर कड़ी फटकार लगाई। कुछ अभिभावकों ने अदालत में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया था कि स्कूल ने बच्चों को लाइब्रेरी में बंद कर दिया, कक्षाओं में शामिल नहीं होने दिया, सुविधाओं से वंचित कर दिया और साथियों से बातचीत करने से भी रोका गया, क्योंकि अभिभावकों ने बिना अनुमति बढ़ाई गई फीस का भुगतान करने से इनकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने सुनवाई के दौरान स्कूल प्रबंधन पर नाराजगी जताई और कहा कि छात्रों के साथ ऐसे व्यवहार को देखते हुए स्कूल को बंद करने की जरूरत हो सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि स्कूल एक शैक्षणिक संस्था के बजाय "पैसा कमाने की मशीन" की तरह काम कर रहा है। अदालत ने छात्रों के साथ किए गए व्यवहार को "मानसिक प्रताड़ना" करार दिया और प्रधानाचार्य पर आपराधिक कार्रवाई की संभावना भी जताई।
अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट (दक्षिण-पश्चिम) के नेतृत्व में बनी समिति की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार हुआ। रिपोर्ट में बताया गया कि 20 मार्च से बच्चों को लाइब्रेरी में अलग रखा गया, कैंटीन और वॉशरूम जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करने से रोका गया और गार्ड्स की निगरानी में रखा गया।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने सवाल किया कि बच्चों के लिए ऐसा माहौल बनाकर स्कूल क्या संदेश दे रहा है। अदालत ने इसे केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि नाबालिगों के मानसिक उत्पीड़न के तौर पर देखा। सुनवाई के दौरान कई छात्र अपने स्कूल यूनिफॉर्म में अदालत में उपस्थित थे।
कोर्ट ने स्कूल को आदेश दिया कि वह छात्रों को तुरंत कक्षाओं में शामिल होने दे और सभी सुविधाएं अन्य छात्रों की तरह उपलब्ध कराए। इसके अलावा, अदालत ने शिक्षा निदेशालय और जिला मजिस्ट्रेट को नियमित निरीक्षण करने का निर्देश भी दिया।
स्कूल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत मित्तल ने दलील दी कि छात्रों को दिसंबर में नोटिस भेजे गए थे और मार्च तक बकाया राशि का भुगतान नहीं करने पर 1 अप्रैल 2025 से उनके नाम काट दिए गए। उन्होंने दावा किया कि केवल नौ छात्रों को लाइब्रेरी में रखा गया था, जबकि छात्रों की ओर से कहा गया कि 19 छात्र इस व्यवहार का शिकार हुए और वे अनुमोदित फीस का भुगतान करने को तैयार हैं, लेकिन बढ़ी हुई फीस का नहीं।
दिल्ली सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि छात्रों ने स्वीकृत फीस का भुगतान कर दिया था और स्कूल को 8 अप्रैल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। 15 अप्रैल को हुई जांच में भी बच्चे लाइब्रेरी में बैठे पाए गए और स्कूल ने निरीक्षण की कार्यवाही पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
अदालत ने कहा कि एक प्रतिष्ठित स्कूल द्वारा बच्चों की गरिमा का उल्लंघन करना बेहद चौंकाने वाला है। न्यायालय ने साफ कर दिया कि केवल फीस भुगतान न करने के कारण किसी भी बच्चे को अपमानित नहीं किया जा सकता और भविष्य में ऐसा व्यवहार होने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला जुलाई 2024 से जुड़ा है, जब स्कूल ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के उस नोटिस को अदालत में चुनौती दी थी जिसमें छात्रों को निष्कासित करने और उनके नाम सार्वजनिक करने पर एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की गई थी। आयोग ने स्कूल पर एक छात्रा को मासिक धर्म के दौरान मदद नहीं करने का भी आरोप लगाया था।
हालांकि अदालत ने पहले एनसीपीसीआर के नोटिस पर रोक लगाई थी, लेकिन अब स्पष्ट कर दिया है कि फीस विवाद के चलते किसी भी छात्र के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। इस मामले की अगली सुनवाई 5 मई को होगी। यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब दिल्ली सरकार निजी स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी आश्वासन दिया है कि छात्रों या परिवारों को परेशान करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।