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ध्यान करने से आत्मा परमात्मा का मिलन व मोक्ष की प्राप्ति होती है: स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

गाजियाबाद। आर्य समाज समर्पण शोध संस्थान राजेन्द्र नगर साहिबाबाद में आर्य प्रतिनिधि सभा गाजियाबाद के प्रधान तेजपाल आर्य की अध्यक्षता में आध्यात्मिक प्रवचन,ध्यान एवं शंका समाधन सत्र हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ। आर्य जगत की सुप्रसिद्ध भजनोपदेशिका सुकृति माथुर एवं आचार्य ओमपाल शास्त्री, मास्टर विजेन्द्र आर्य आदि गायकों के ईश भक्ति गुणगान को सुनकर श्रोता मंत्र मुग्ध हो गए।
जीवात्मा 100% सुख चाहते हैं
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक (निर्देशक: दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात) का आज समर्पण शोध संस्थान की ओर से स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी का स्वागत और उन्हें स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। स्वामी विवेकानन्द जी ने कल के विषय को आगे बढ़ाते हुए जीवात्मा परमात्मा और प्रकृति के संदर्भ में उनके मूल स्वभाव को बताया,कि प्रकृति जड़ पदार्थ है, तथा सत्त्वगुण रजोगुण और तमोगुण के कारण इससे आत्मा पर सुख-दुख और मूर्खता का प्रभाव पड़ता है।
स्वामी जी ने आगे बताया कि सभी जीवात्मा 100% सुख चाहते हैं और 1% भी दुख नहीं चाहते। उन्होंने पूछा क्या प्रकृति से हमें 100% सुख प्राप्त होता है? तब सब ने कहा नहीं। इसी प्रकार जीवात्माओं के परीक्षण करने पर भी यह अनुभव में आता है कि,कोई भी जीवात्मा एक दूसरे को 100% सुख देने में सक्षम नहीं है।जबकि जीवात्मा 100% सुख की लालसा करता है। फिर यह 100% सुख कहां मिलेगा? यह केवल ईश्वर में ही है, और ईश्वर के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।
इसके लिए स्वामी जी ने बहुत उत्तम उपाय बताए, कि संसार में बार-बार दुख देखा जाए।उससे आपको संसार से वैराग्य उत्पन्न हो जाएगा। इसको स्वामी विवेकानन्द जी ने एक उदाहरण से समझाया, जैसे आप जलेबी की दुकान पर जलेबी में सुख होने के कारण उसको खाने की इच्छा करते हैं। परन्तु जब उस जलेबी में आपके सामने कोई पॉइज़न या ज़हर की दो-चार बूंद मिला दे, तो आप उस जलेबी को खाने की इच्छा नहीं करते। तब आपको ज़हरीली जलेबी से वैराग्य उत्पन्न हो जाता है।
इसी प्रकार से जब संसार में दुख देखने लगेंगे तो, इस संसार से भी वैराग्य हो जाएगा और इसके साथ-साथ ईश्वर के गुणों का भी चिंतन बार-बार किया जाए। तब आप की रुचि ईश्वर में उत्पन्न हो जाएगी,और आप ईश्वर की ओर बढ़ चलेंगे। तब ईश्वर में आपका ध्यान टिकेगा। स्वामी जी ने उपस्थित धार्मिक जनों की विभिन्न शंकाओं समाधान, बहुत ही सरल भाषा में उनको समझा कर संतुष्ट किया। अंत में स्वामी जी ने वैदिक मंत्र ओम् न्यायकारी, ओम आनन्द: और गायत्री मंत्र के माध्यम से निराकार सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता न्यायकारी आनन्दस्वरूप ईश्वर का ध्यान भी कराया।
युवा वर्ग को सनातन संस्कृति का पालन करने का दिया संदेश
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के प्रदेश अध्यक्ष योगी प्रवीण आर्य ने ऐसे सुन्दर आयोजन को देखकर कहा कि ध्यानयोग के ऐसे सत्र निरंतर सर्वत्र होते रहने चाहिएं जिससे मानव जीवन में मनोयोग और एकाग्रता से कार्य करने की क्षमता बढ़ती है तथा आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
एक युवक ऋतम आर्य ने आज के युवाओं की अश्लीलता,व्यभिचार, माता पिता के प्रति अच्छी भावना व आज की परिस्थिति पर ईश्वर का क्या योगदान है? पर स्वामी जी से प्रश्न किए जिनका स्वामी जी ने वैदिक आधार पर उतर देकर युवा वर्ग को सनातन संस्कृति का पालन करने का संदेश दिया।
इस अवसर पर मुख्य रूप से सर्वश्री के के यादव, देवेन्द्र आर्य (आर्य बंधु) राम पाल चौहान, राज कुमार आर्य, जगदीश सैनी,सत्यवीर सैनी,राहुल आर्य,आशा आर्या,रमेश भटनागर, वेद प्रकाश,देवव्रत कुंडू,विनोद गुप्ता, यज्ञवीर चौहान,प्रताप प्रजापति, बिजेंद्र भड़ाना,सुरेश सैनी,वेदवीर राठी,राकेश राणा, खेमचंद शास्त्री एवं श्रीमती कविता राठी आदि उपस्थित रहे। मंच का कुशल संचालन कर रहे जिला मंत्री सुरेश आर्य ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद व्यक्त किया।