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एक मजदूर की बेटी बनी पहली आदिवासी एयर होस्टेस, जानें इनकी संघर्ष की कहानी और लें प्रेरणा

Varta24Bureau
12 April 2025 5:59 PM IST
एक मजदूर की बेटी बनी पहली आदिवासी एयर होस्टेस, जानें इनकी संघर्ष की कहानी और लें प्रेरणा
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कठिनाइयों से लड़कर उड़ान भरने वाली गोपिका, लाखों लड़कियों के लिए बनीं प्रेरणा।

नई दिल्ली (राशी सिंह)। केरल के अलकोडे के पास स्थित कावुनकुडी की एक सुदूर एसटी कॉलोनी की रहने वाली गोपिका गोविंद केरल की पहली आदिवासी महिला बन गई हैं, जिन्हें एक एयर होस्टेस के रूप में नियुक्त किया गया है। यह एक ऐसी प्रेरणादायक उपलब्धि है, जो सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उनके समुदाय और पूरे राज्य के लिए गर्व का विषय है।

संघर्षों में बीता बचपन

गोपिका का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता पी. गोविंदन और वी.जी. दिहाड़ी मजदूर हैं। करिम्बाला आदिवासी समुदाय की सदस्य होने के नाते, उनका बचपन आर्थिक संघर्षों, सीमित संसाधनों और अवसरों के बीच बीता। लेकिन इन कठिनाइयों के बावजूद, गोपिका ने बचपन से ही एक बड़ा सपना संजोया था — एयर होस्टेस बनने का। वास्तविकता ने उन्हें शुरुआत में एक और रास्ते पर चलने को मजबूर किया। परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने रसायन विज्ञान में बीएससी की पढ़ाई की। लेकिन उनका दिल हमेशा 30,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ता रहा।

स्नातक होने के एक साल बाद, एक दिन अखबार में छपी एयर होस्टेस की वर्दी पहने एक तस्वीर ने उनके दबे हुए सपने को फिर से जगा दिया। फिर गोपिका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने वायनाड के कलपेट्टा स्थित ड्रीम स्काई एविएशन ट्रेनिंग एकेडमी में एक साल के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया। कोर्स के दौरान ही उन्होंने साक्षात्कार देना शुरू कर दिया। पहला इंटरव्यू असफल रहा, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं टूटी। दूसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिली और तीन महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद, वह कन्नूर से खाड़ी देश के एक गंतव्य के लिए बतौर केबिन क्रू अपनी पहली उड़ान पर सवार हुईं।

गोपिका ने कही ये बात

यह क्षण केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं था, बल्कि यह उन लाखों वंचित और आदिवासी लड़कियों के लिए आशा और प्रेरणा का प्रतीक बन गया, जो सपने देखने से डरती हैं या उन्हें अपनी वास्तविकता के सामने असंभव समझती हैं।

गोपिका ने कहा, "अगर आपका कोई सपना है, तो उसे निडरता से पूरा करें। उसे पाने के लिए आत्मविश्वास ज़रूरी है। बिना आत्मविश्वास के हम कहीं नहीं पहुंच पाएंगे। अपने लक्ष्यों की घोषणा न करें — आपकी मेहनत के नतीजे खुद बोलेंगे।"

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