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टेक्नोलॉजी

चाँद पर पहुँचते ही इंसान बहरे हो जाते हैं: वैज्ञानिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य

Prachi Khosla
28 Aug 2023 12:37 PM GMT
चाँद पर पहुँचते ही इंसान बहरे हो जाते हैं: वैज्ञानिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य
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मानवता ने विज्ञान और तकनीक में अद्वितीय प्रगति की है, जिसके फलस्वरूप उसने अनगिनत समस्याओं का समाधान निकाला है। चाँद पर पहुँचने की कल्पना भी इसी उत्साह और उत्कृष्टता के साथ जुड़ी है, लेकिन इस प्रयास के अनुभव और विज्ञानिक अनुसंधान ने स्पष्ट किया है कि चाँद पर पहुँचते ही इंसान बहरे हो जाते हैं।

विज्ञानिक परिप्रेक्ष्य:

गुरुत्वाकर्षण कमी: चाँद पर गुरुत्वाकर्षण धरती से कुछ कम होती है, जिसका असर इंसानों के शरीर के अंगत तंतुओं पर पड़ता है। यह उनके अंतर्गत श्रवण, द्रवण और स्पर्श क्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।

वायुमंडल की अभाव: चाँद पर वायुमंडल नहीं होता है, जिसके कारण आवाज और ध्वनि की धारणा में कमी होती है। यह भी इसके परिणामस्वरूप इंसानों को अपनी सुनने की क्षमता में कमी आती है।

उच्च तापमान और शीतलता: चाँद पर तापमान अत्यधिक होता है जो शरीर के तंतुओं को प्रभावित करता है। इसके साथ ही, रात्रि में तापमान अत्यधिक नीचे आ सकता है, जिससे शरीर के अंग ठंडे हो सकते हैं और उनकी क्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।

साहित्यिक परिप्रेक्ष्य:

अद्भुत अनुभवों की जरुरत: चाँद पर पहुँचना अद्वितीय अनुभव हो सकता है, लेकिन उसके साथ ही यह अनुभव असामान्य होता है जिसका लोगों के शरीर और मानसिकता पर असर हो सकता है।

स्थायिता की कमी: चाँद पर वायुमंडल की अभावता के कारण यात्री वहाँ स्थायिता की कमी का सामना कर सकते हैं, जिससे उनके सामान्य गतिविधियों में असुविधा हो सकती है।

मानवीय संबंधों की दुरी: चाँद पर पहुँचकर लोग अपने परिवार और समाज से दूर हो जाते हैं, जिससे उनकी मानवीय संबंधों में कमी हो सकती है।

निष्कर्ष: चाँद पर पहुँचते ही इंसान बहरे नहीं होते, लेकिन उनके शरीर, मानसिकता और अनुभवों पर असर होता है। यह एक विज्ञानिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य से उत्थानशील पहलु है जो हमें चाँद की यात्रा के संभाव दुष्प्रभावों के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है।

Prachi Khosla

Prachi Khosla

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