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धर्म

Vat Amavasya Pooja: सुहागिनों ने की पति के दीर्घायु की कामना, की पव‍ित्र बरगद वृक्ष की परिक्रमा

Vat Amavasya Pooja: सुहागिनों ने की पति के दीर्घायु की कामना, की पव‍ित्र बरगद वृक्ष की परिक्रमा
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  • Vat Amavasya Pooja: लखनऊ। पति को भगवान का दर्जा देने वाली सुहागिनों ने शुक्रवार को निर्जला व्रत रखा और उनकी दीर्घायु की कामना कर वट वृक्ष की परिक्रमा की। वट सावित्री व्रत के इस पर्व पर सोलह श्रृंगार किए महिलाओं ने कच्चे धागे को न केवल 108 बार बांधा बल्कि नंगे पैर वट वृक्ष की परिक्रमा कर धूप-दीप चलाकर विधि विधान से पूजा-अर्चना की।

ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर बुद्धेश्वर मंदिर परिसर में लगे बरगद के पेड़ के पास सजी-धजी महिलाओं का जमावड़ा लग गया था। सुहाग की दीर्घायु और अखंड मंगलकामना के लिए व्रती सुहागिनों ने मंगलगीतों के बीच आंटे के बरगद, पापड़, पूड़ी, हलवे और मौसमी फलों समेत खरबूजों का भोग लगाया।

व्रती महिलाओं ने सावित्री की कथा सुन कर विश्वास के प्रतीक वटवृक्ष से पति की दीर्घायु की प्रार्थना की। आंटे के बरगद और मिष्ठान से व्रत का पारण किया। वट सावित्री व्रत के चलते ठाकुरगंज के कल्याण गिरि, डालीगंज के हाथी बाबा वाले मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर वार्ड, मानसनगर के तुलसी मानस मंदिर, इंद्रलोक कालोनी स्थित इंद्रेश्वर मंदिर, कैसरबाग, आलमबाग व चौपटिया समेत कई इलाकों में महिलाओं ने विधि विधान से पूजा-अर्चना की। पाश इलाकों में वटवृक्ष न होने के चलते गमलों में बरगद के पेड़ की डाली की पूजा कर व्रत-पूजन किया।

वट वृक्ष की पौराणिक मान्यताएं

अग्निपुराण के अनुसार संतान की इच्छा रखने वालों के लिए इसकी पूजा शुभदायक होती है।

अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इसे 'अनश्वर व 'अक्षयवट भी कहते हैं। इसे काटना वर्जित होता है।

वामन पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब यक्षों के राजा मणिभद्र से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ था। ऐसे में इसे यक्षवास व यक्षतरु भी कहा जाता है।

रामायण में इसे सुभद्रवट भी कहा गया है, जिसकी डाली गरुड़ ने तोड़ दी थी। शीतलता के कारण इसे वाल्मीकि रामायण में श्यामन्य ग्रोध के नाम से पुकारा गया है।

भगवान श्रीकृष्ण गाय चराते समय जिस वृक्ष के नीचे बैठ कर बांसुरी बजाते थे, वह कृष्ण वटवृक्ष था। यह आम बरगद से कुछ अलग होता है। इसके पत्ते मुड़े हुए दोने के आकार के होते हैं।

यह पूजा महिलाओं को अपने पतिधर्म एवं कर्तव्य का बोध कराती है।

यह पूजा महिलाओं को हरे भरे वृक्ष के पूजन से भी जोड़ती है।

पुराणों में माना गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसके नीचे बैठकर शुद्ध मन से इसका पूजन करने से निश्चित ही मनोकामना पूरी होती है।

वट वृक्ष की जड़ों में दूध व जल चढ़ाने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं।

वार्ता 24 संवाददाता

वार्ता 24 संवाददाता

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