Begin typing your search above and press return to search.
धर्म

राम मंदिर: संघ परिवार की एंट्री- सुग्रीव किले की बैठक में मंदिर के लिए पहला मुक्ति प्रस्ताव मंजूर; पूरी कहानी

Kanishka Chaturvedi
10 Jan 2024 6:39 AM GMT
राम मंदिर: संघ परिवार की एंट्री- सुग्रीव किले की बैठक में मंदिर के लिए पहला मुक्ति प्रस्ताव मंजूर; पूरी कहानी
x

काफी प्रयासों के बाद पहली बैठक सुग्रीव किला में हुई और पहली बार राम जन्मभूमि मुक्ति का प्रस्ताव पारित किया गया। सबसे पहले सुल्तानपुर के संघ प्रचारक महेश नारायण सिंह ही अयोध्या पहुंचे थे उन्होंने ही संतों से मिलकर आंदोलन को बड़ा रूप देने की संभावनाएं तलाशनी शुरू की थीं।

दिसंबर 1949 में परिसर में रामलला की मूर्ति मिलने के विवाद और मुकदमे बाजी की शुरुआत होने के वक्त विश्व हिंदू परिषद, भाजपा या उसके पूर्ववर्ती राजनीतिक दल जनसंघ का गठन नहीं हुआ था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जरूर हिंदुत्व के सरोकारों पर जनजागरण का काम कर रहा था। उसके प्रचारक और स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से अयोध्या मामले पर चिंता तो जताते, लेकिन बतौर संगठन इस मुद्दे पर सक्रिय नहीं थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया।

विपक्ष के ज्यादातर नेता गिरफ्तार हो गए। इंदिरा को पराजित करने के लिए ज्यादातर विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। इसमें संघ की विचारधारा से 1951-52 में निकले जनसंघ के नेता भी थे। संघ से जुड़ाव और नीतियों के कारण उसे हिंदूवादी संगठन माना जाता था।

जनता पार्टी की सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही समाजवादी नेता मधु लिमये ने जनसंघ घटक के नेताओं से संघ से नाता तोड़ने की मांग शुरू कर दी। तर्क था कि जनता पार्टी में शामिल होते वक्त जनसंघ ने संघ से वास्ता न रखने का वादा किया था। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के तर्क के बावजूद लिमये नहीं माने, तो जनसंघ ने नाता तोड़ने का फैसला किया।

अब तक संघ को भी एहसास हो गया कि हिंदुओं को राजनीतिक ताकत में बदले बिना बड़ी सियासी ताकत बनाना संभव नहीं है। संघ को याद आया 1948 में विधानसभा की फैजाबाद सीट पर बाबा राघव दास को जिताने के लिए कांग्रेस का प्रयोग।

राघव के लिए तत्कालीन सीएम गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस का राम व हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने का तरीका। वे पत्र, राघव ने विधायक चुने जाने के बाद कई बार प्रदेश व देश की कांग्रेसी सरकारों को लिखकर जन्मस्थान को रामभक्तों को सौंपने की मांग की थी। न देने पर त्यागपत्र की धमकी दी थी।

सुग्रीव किला में पारित हुआ प्रस्ताव

वर्ष था 1978 का। उस समय भी कांग्रेस के ही कुछ महत्वपूर्ण नेता राघव दास की राह पर अयोध्या, मथुरा व काशी की मुक्ति के लिए निजी तौर पर प्रयास करते दिख रहे थे। संघ ने इस भावी ताकत को भांपते हुए धर्म व अध्यात्म पर अधिकार पूर्वक बात रखने वाले पांच प्रचारकों अशोक सिंहल, ओंकार भावे, मोरोपंत पिंगले, आचार्य गिरिराज किशोर तथा महेश नारायण सिंह को चुना।

इन्हें रामजन्मभूमि मुक्ति को लेकर निर्मोही, दिगंबर अखाड़ा, हिंदू महासभा और गोरक्षपीठ की साझा कोशिशों की बुनियाद पर हिंदुओं के जनजागरण का खाका खींचने का काम सौंपा। तब तक विहिप का गठन हो चुका था। पर, अभी इस आंदोलन में बतौर संगठन एंट्री नहीं हुई थी।

सबसे पहले सुल्तानपुर के संघ प्रचारक महेश नारायण सिंह अयोध्या पहुंचे। संतों से मिलकर आंदोलन को बड़ा रूप देने की संभावनाएं तलाशनी शुरू की। काफी प्रयासों के बाद पहली बैठक सुग्रीव किला में हुई और पहली बार राम जन्मभूमि मुक्ति का प्रस्ताव पारित किया गया।

Kanishka Chaturvedi

Kanishka Chaturvedi

    Next Story