हिंदू कैलेंडर के अनुसार अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव पूजा करने का विधान है। इसे काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाते हैं। 5 दिसंबर, मंगलवार को ये पर्व मनाया जाएगा। काल भैरव का जिक्र पुराणों में मिलता है। शिव पुराण का कहना है कि कालभैरव भगवान शिव का रौद्र रूप है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक कालभैरव श्रीकृष्ण के दाहिनी आंख से प्रकट हुए थे, जो आठ भैरवों में से एक थे। काल भैरव रोग, डर, संकट और दुख दूर करने वाले देवता हैं। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।
पुराणों में बताए हैं 8 भैरव
स्कंद पुराण के अवंति खंड में लिखा है कि भगवान भैरव के 8 रूप हैं। इनमें से काल भैरव तीसरा है। शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि जब दिन और रात का मिलन होता है। यानी शाम को प्रदोष काल में शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे।
भैरव से ही बाकी 7 और प्रकट हुए जिन्हें अपने रूप और काम के हिसाब से नाम दिए हैं। उनके नाम, रुरु भैरव, संहार भैरव, काल भैरव, असित भैरव, क्रोध भैरव, भीषण भैरव, महा भैरव और खटवांग भैरव।
कथा के मुताबिक एक दिन भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद उत्पन्न हुआ। विवाद के समाधान के लिए सभी देवता और मुनि शिवजी के पास पहुंचे। सभी देवताओं और मुनि की सहमति से शिवजी को श्रेष्ठ माना गया, लेकिन ब्रह्माजी सहमत नहीं हुए। ब्रह्माजी, शिवजी का अपमान करने लगे। अपमानजनक बातें सुनकर शिवजी को क्रोध आ गया, जिससे काल भैरव का जन्म हुआ।
काल भैरव पूजा से दूर होती हैं तकलीफ
भैरव का अर्थ है भय को हरने या जीतने वाला। इसलिए काल भैरव रूप की पूजा से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है। नारद पुराण में बताया है कि काल भैरव की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
बीमारियां और तकलीफ भी दूर होती हैं। काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है। कालभैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं।