आज देवउठनी एकादशी है। माना जाता है चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन जागते हैं, इसलिए इसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं।
इस दिन से ही शादियों का सीजन शुरू होता है। गृह प्रवेश और बाकी मांगलिक काम भी शुरू हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी को अबूझ मुहूर्त मानते हैं। इस दिन बिना मुहूर्त देखे भी शादी की जा सकती है। इस सीजन में मई और जून 2024 में शादियों के कोई मुहूर्त नहीं होंगे। दो सबसे बड़े मुहूर्त अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी पर भी शादियां नहीं हो पाएंगी।
इस साल 12 मुहूर्त: नवंबर में 5 और दिसंबर में 7 दिन
ज्योतिष के मुताबिक 23 नवंबर को देव उठने के साथ शादियों का सीजन शुरू होगा। इसी दिन सीजन का पहला मुहूर्त भी है। इसको मिलाकर दिसंबर तक 12 मुहूर्त होंगे। इनमें नवंबर के 5 और दिसंबर के 7 दिन शुभ रहेंगे।
15 दिसंबर से धनु मास शुरू होगा। इस कारण अगले साल 15 जनवरी के बाद शादियां शुरू होंगी। जो कि 20 अप्रैल तक चलेंगी।
मई-जून 2024 में शुक्र ग्रह रहेगा अस्त इसलिए मुहूर्त नहीं
अगले साल 29 अप्रैल को शुक्र, सूर्य के नजदीक आ जाएगा। जिससे ये ग्रह 61 दिन तक अस्त रहेगा। ज्योतिष का कहना है कि शुक्र के अस्त हो जाने से शादियों के लिए मुहूर्त नहीं होते हैं। 28 जून को शुक्र ग्रह के उदय होने के बाद शादियां शुरू होंगी और 15 जुलाई को देवशयन होने तक मुहूर्त रहेंगे।
अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी पर नहीं हो पाएंगी शादियां
14 फरवरी 2024 को वसंत पंचमी है। कई जगहों पर इस दिन को शादी के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है, लेकिन इस बार वसंत पंचमी पर अश्विनी नक्षत्र रहेगा। ज्योतिषियों के मुताबिक इस नक्षत्र में शादी नहीं की जाती है। इस कारण वसंत पंचमी पर विवाह मुहूर्त नहीं रहेगा।
10 मई 2024 को अक्षय तृतीया रहेगी। ये दिन भी शादियों के लिए बड़ा अबूझ मुहूर्त होता है। इस बार अक्षय तृतीया पर शुक्र ग्रह अस्त होने के कारण शादी का मुहूर्त नहीं होगा।
अब बात करते हैं तुलसी विवाह और देव जागने की...
आज यानी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन देव जगाने की परंपरा है। यानी पिछले चार महीने से योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा चलती है और आरती होती है। शाम को शालग्राम रूप में भगवान विष्णु और तुलसी रूप में लक्ष्मी जी का विवाह होता है। घर और मंदिरों को सजाकर दीपक जलाए जाते हैं। तुलसी-शालग्राम विवाह नहीं करवा सकते तो सिर्फ इनकी पूजा भी कर सकते हैं।
इस त्योहार से जुड़ी पुराणों की दो कथाएं…
चार महीने पाताल में रहकर लौटते हैं भगवान विष्णु
वामन पुराण का कहना है कि सतयुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन कदम जमीन दान में मांगी थी। फिर अपना कद बढ़ाकर दो कदम में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए जगह नहीं बची तो बलि ने अपना सिर आगे कर दिया।
सिर पर पैर रखते ही बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर उन्हें पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा।
बलि ने कहा आप मेरे महल में रहिए, भगवान ने ये वरदान दे दिया, लेकिन लक्ष्मी जी ने बलि को भाई बनाया और विष्णु को वैकुंठ ले गईं। जिस दिन विष्णु-लक्ष्मी वैकुंठ गए उस दिन ये ही एकादशी थी।
वृंदा के श्राप से विष्णु बने पत्थर के शालग्राम
शिव पुराण के मुताबिक जालंधर नाम के राक्षस ने इंद्र को हराकर तीनों लोक जीत लिए। शिवजी ने उसे देवताओं का राज्य देने को कहा लेकिन वो नहीं माना।
शिवजी ने उससे युद्ध किया, लेकिन उसके पास पत्नी वृंदा के सतीत्व की ताकत थी। इस कारण जालंधर को हराना मुश्किल था। तब विष्णु जी ने जालंधर का ही रूप लिया और वृंदा के साथ रहकर उसका सतीत्व तोड़ दिया जिससे जालंधर मर गया।
वृंदा को ये पता चला तो उन्होंने विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को श्राप से छुटाने के लिए वृंदा से विनती की। वृंदा ने विष्णु को हमेशा अपने पास रहने की शर्त पर मुक्ति दी और खुद सती हो गई।
वृंदा की राख से जो पौधा बना ब्रह्माजी ने उसे तुलसी नाम दिया। विष्णु ने भी तुलसी को हमेशा शालग्राम रूप में साथ रहने का वरदान दिया। तब से तुलसी-शालग्राम विवाह की परंपरा चल रही है।