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राजनीति

ज्ञानवापी का एएसआई सर्वे होने के बाद सामने आएगी सच्चाई - मनीष कुमार गुप्ता

Prachi Khosla
8 Aug 2023 12:26 PM GMT
ज्ञानवापी का एएसआई सर्वे होने के बाद सामने आएगी सच्चाई - मनीष कुमार गुप्ता
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के ज्ञानवापी में एएसआई सर्वे को मंजूरी देने का फैसला सराहनीय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बीते गुरूवार यानी तीन अगस्त को अपने एक निर्णय में वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वे को मंजूरी दे दी है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वे पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी के ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वे कराए जाने का आदेश दिया है। यदि सही मायने में देखा जाए तो ज्ञानवापी मामले को लेकर हिंदू-मुस्लिम पक्ष के बीच जिस हद तक विवाद बढ़ता जा रहा है, वह काफी गंभीर है। गौरतलब हूँ कि ज्ञानवापी प्रकरण में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच मुख्य विवाद यहीं है कि वहा पर पहले से मंदिर था या मस्जिद थी। ऐसे में इस विवाद का पटाक्षेप या समाधान आर्चियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया यानी एएसआई के सर्वे से ही ठीक ढ़ंग से किया जा सकता है। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने दावा किया है कि वह एक बार फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के एएसआई सर्वे को पलटने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिरकार मुस्लिम पक्ष एएसआई सर्वे से क्यों पीछे हट रहा है ? इसके अलावा जब मुस्लिम पक्ष को यकीन है कि ज्ञानवापी में मंदिर नहीं बल्कि हमेशा से मस्जिद ही रही है तो, फिर उनको एएसआई सर्वे होने देने में क्या दिक्कतें है ? ऐसे में कहीं ना कहीं मुस्लिम पक्ष एएसआई सर्वे से पीछे हटकर अपने दावों को खुद ही कमजोर करने का काम कर रहा है। क्योंकि एएसआई सर्वे होने से मंदिर-मस्जिद विवाद का बहुत ही आसानी से समाधान हो जाएगा।

ज्ञानवापी विवाद में एएसआई सर्वे से होगा दूध का दूध पानी का पानी

दरअसल वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी परिसर में बनी मस्जिद की जगह मंदिर होने को लेकर विवाद काफी लंबे समय से चलता आ रहा है। गौरतलब हूँ कि हिंदू पक्ष का कहना था कि ज्ञानवापी कूप के नाम से प्रसिद्व स्थान पर प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर था। जबकि हिंदू पक्ष का कहना है कि वहा पर कोई मंदिर था ही नहीं, बल्कि औरंगजेब के द्वारा निर्मित मस्जिद ही थी। ऐसे में दोनों पक्षों के अपने अपने दावे होने के बाद यह विवाद बढ़ता गया कि आखिर वहां पर मंदिर था या मस्जिद थी। लेकिन हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे कराने का आदेश दिया जाना, इस विवाद के समाधान की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। दरअसल ज्ञानवापी परिसर का सर्वे होने के बाद ही इस बात की सच्चाई आसानी से पता चल जाएगी कि वहा पर मंदिर था या मस्जिद थी। एएसआई के सर्वे में ज्ञानवापी की दिवारों की विशेष रूप से जीपीआर तकनीकि के तहत उसकी फोटोग्राफी और विडियोग्राफी कराई जाएगी। इसके अलावा ज्ञानवापी की सभी दिवारों का वैज्ञानिक विधि से गहन अध्ययन भी किया जाएगा। जिसमें एएसआई टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश करेगी कि, आखिर मंदिर की दिवारें कितने साल पुरानी हैं। इतना ही नहीं एएसआई टीम के सदस्य मंदिर में मिलने वाले विभिन्न साक्ष्यों मसलन दिवारों में बने हुए त्रिशुल और मूर्तियों की आकृतियों और चिन्हों का भी अध्ययन करेंगे। इस लिहाज से एएसआई सर्वे की प्रक्रिया ज्ञानवापी विवाद में बहुत ही निर्णायक साबित होने वाली है। हालांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से तीन अगस्त को ही सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई जिसके बाद फिलहाल में ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे पर रोक लगा दी गई है।

कैसे हुई वाराणसी के ज्ञानवापी विवाद की शुरूआत ?

दरअसल ज्ञानवापी परिसर की मस्जिद में स्थित प्राचीन श्रृंगार गौरी माता का मंदिर है। इस मंदिर में माथा श्रृंगार गौरी का विग्रह भी स्थित है। गौरतलब हूँ कि माता श्रृंगार गौरी के इसी विग्रह की पूजा काशी की महिलाएं वर्ष में एक बार करने जाती थी। लेकिन बाद में इन महिलाओं ने माता श्रृंगार गौरी की प्रतिदिन पूजा करने की अनुमति की मांग को लेकर वाराणसी की डिस्ट्रीक्ट कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। जिसका मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया। हालांकि बाद में इस मामले में विवाद बढ़ता गया कि वहा पर मस्जिद थी या मंदिर थी। इसके बाद इस विवाद के बढ़ने के बाद हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे कराए जाने की मांग को लेकर वाराणसी की जिला न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। बाद में इसी याचिका पर सुनावाई करते हुए 21 जुलाई 2023 को वाराणसी की कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे कराने का आदेश दे दिया। जबकि वाराणसी कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से इस मामले को हाईकोर्ट में ले जाने के लिए कहा, जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में गुजरी 3 अगस्त को ज्ञानवापी में एएसआई सर्वे को मंजूरी भी दे दी है। ऐसे में इस तरह से ज्ञानवापी के विवाद की मूल वजह ज्ञानवापी परिसर में बनाई गई मस्जिद ही है।

प्रीचान हिंदू शास्त्रों में ज्ञानवापी कूप और शिवलिंग का वर्णन

दरअसल हिंदू धर्म के प्राचीन शास्त्र जिसमें चारो वेद और 18 पुराण शामिल है, उसमें काशी के ज्ञानवापी कूप और श्री काशी विश्वनाथ शिवलिंग के होने का वर्णन प्रमाण के साथ किया गया है। इसके अलावा स्कंद पुराण में भी ज्ञानवापी कूप और प्राचीन श्री काशी विश्वनाथ शिवलिंग का स्पष्ट वर्णन किया गया है। ऐसे में इस बात की पुष्टि होती है कि ज्ञानवापी में शिवलिंग और मंदिर आज से पांच हजार साल पहले से ही विद्यमान थें। जबकि मुस्लिम पक्षकारों के दावों को देखे तो उन्होंने कोर्ट में दिए लिखित हलफनामें में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 600 वर्ष पूर्व औरंगजेब के शासन काल में कराया गया था। ऐसे मे कही ना कहीं मुस्लिम पक्ष की दलीलें ही इस बात की पुष्टि करती है कि ज्ञानवापी में मस्जिद बनने से हजारो साल पहले उस स्थान पर मंदिर स्थित था। लेकिन मुस्लिम पक्ष किसी भी साक्ष्य को मानने को तैयार नहीं हो रहा था। जिसके बाद कोर्ट ने पूरे ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे कराने का आदेश दे दिया है। हालांकि ऐसे विवादों में एएसआई सर्वे की रिपोर्ट काफी सही और निर्णायक भी साबित होती रही है।

एएसआई सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर हुआ था अयोध्या का फैसला

दरअसल एएसआई सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर ही बहुचर्चित अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद का निपटारा हुआ था। गौरतलब हो कि अयोध्या में भी कुछ इसी तरह का विवाद था कि वहा पर मंदिर पहले से है या मस्जिद पहले से है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुए एएसआई सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ कि अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बाबरी मस्जिद के काफी पहले से स्थित था। जिसे तोड़कर बाबर ने वहा पर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश काफी सराहनीय निर्णय है जो ज्ञानवापी विवाद के समाधान में मील का पत्थर साबित होगा।


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