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राजनीति

भारत में राजनीति, राजनीतिज्ञ और शैक्षिक ज्ञान ; फ़िल्म अभिनेत्री काजोल के बयान के संदर्भ और निहितार्थ: अतुल चतुर्वेदी

Shivam Saini
11 July 2023 9:03 AM GMT
भारत में राजनीति, राजनीतिज्ञ और शैक्षिक ज्ञान ; फ़िल्म अभिनेत्री काजोल के बयान के संदर्भ और निहितार्थ: अतुल चतुर्वेदी
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आजकल सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध अभिनेत्री काजोल के बयान की बहुत चर्चा है।उनका कहना है कि देश के नेता यदि "एजुकेटेड" होते हैं तो देश बेहतर तरीके से प्रगति करता है। उनके इस बयान के बाद लोगों ने अपनी सोच के अनुसार उनके इस बयान के भिन्न-भिन्न अर्थ निकाले-तदनुसार अपनी प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त कीं और कहीं न कहीं इस किस्म की आलोचना से परेशान होकर इस अभिनेत्री को अपने बयान का स्पष्टीकरण भी प्रस्तुत करना पड़ा।

सोचने और विचार करने की बात यह है कि "एजुकेटेड" का अर्थ क्या है? यदि इसका अर्थ डिग्री धारकों अथवा साक्षरों से है तो फिर तो हमारे देश के किसी भी क्षेत्र के नेतृत्व के लिए काजोल की यह बात सही नहीं लगती लेकिन यदि इसका तात्पर्य उन लोगों के अपने क्षेत्र और विषय के समुचित ज्ञान, अनुभव, विचार, विचारधारा के प्रति समर्पण, ईमानदारी, काबिलियत, सोच, समझ, विज़न और वास्तविक उद्देश्य अथवा इरादों से है तो प्रश्न सोचने वाला हो जाता है। सिर्फ राजनीति ही नहीं अपितु अधिकांश क्षेत्रों के नेतृत्व को यदि इन मापदंडों की कसौटी पर कसा जाएगा तो हम पाएंगे कि मामला कुछ गड़बड़ सा तो है और काजोल का बयान यदि इस संदर्भ में देखा जाए तो बड़े सवाल उठाने वाला है।

जब बात राजनीति की है तो यह प्रश्न और भी विचारणीय हो जाता है क्योंकि राजनैतिक नेतृत्व चाहे वह छात्र नेतृत्व हो, पंचायत के स्तर का हो, प्रदेश का हो, राष्ट्रीय हो अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो उसका असर न सिर्फ हमारे रोजमर्रा के जीवन पर पड़ता है अपितु वह हमारी आने वाली पीढ़ियों को, उनकी दशा और दिशा को भी प्रभावित करता है। यह राजनैतिक नेतृत्व वाली बात सिर्फ उस नेतृत्व की नहीं है जो सरकार में है अपितु उनकी भी है जो अलग-अलग स्तरों पर सरकार में नहीं हैं। यहाँ बात एंटरटेनमेंट की दुनिया जैसी नहीं चलनी चाहिए कि हम क्या करें, जो जनता को पसंद है वो हम परोस देते हैं क्योंकि बात लोगों की है, जनता के भले-बुरे की है, देश और मानवता के विकास और भविष्य की है तो इस नेतृत्व के लोगों से और के बनिस्पत सर्वाधिक जिम्मेदारी अपेक्षित होती है, सर्वाधिक समझ अपेक्षित होती है और उनका इन्हीं अर्थों में सही तरीके से "एजुकेटेड" होना मायने रखता है। यह राजनैतिक नेतृत्व का ही जिम्मा होता है कि एक तरफ तो वो वर्तमान में समाज में फैली विषमताओं को दूर करे, वर्तमान समस्याओं का सटीक हल खोजे और साथ ही दूसरी ओर भविष्य की दृष्टि भी रखे। राजनैतिक नेतृत्व को अपनी सोच सिर्फ लोगों के वोट लेने से इतर उन लोगों और उनकी आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य की भी रखनी होती है जिनके वोट पाने के लिए यह नेतृत्व येन-केन-प्रकारेण किस्म के सतत प्रयास करता है। यह सोच और प्रयास तभी सकारात्मक होते हैं जब राजनैतिक नेतृत्व सही अर्थों में विज़नरी और एजुकेटेड लोगों के पास होता है और इसके देश- विदेश में अनेकों उदाहरण हैं जैसे :-

राजा हमुराबी (1800-1750 ईसा पूर्व लगभग का समय था, जिसने मेसोपोटामिया में हमुराबी कोड बनाया), अरस्तू शिष्य सिकन्दर (जिसने युद्ध जीतने के अलावा कई व्यापारिक शहर बसाए), किंग सोलोमन (प्राचीन इस्राइल का राजा जिसने न्याय के मानदंड स्थापित किये), पर्शिया का प्रिंस उरूवक्ष्य (किंग थ्रीता का पुत्र जिसने पर्शिया राज्य के पहले कानून बनाये), ग्रीस के स्पार्टा का लाइकुरगस (जिसने 900 ईसा पूर्व में ग्रीस के कानून बनाये), रोम का रोमियूलस (750 ईसा पूर्व के लगभग), नेपोलियन ( इसने युद्ध जीतने-हारने के अलावा कई ऐतिहासिक कानून बनाये), अब्राहम लिंकन, बेंजामिन फ्रैंकलिन (अमेरिकी राजनेता, वैज्ञानिक और शिक्षाविद जिसने पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी बनाई, पहली अमेरिकन पब्लिक लाइब्रेरी बनाई, तडिचालक चालक-बिजली सम्बन्धी अनुसंधान), जर्मनी के एकीकरण का नायक बिस्मार्क, तुर्की के अतातुर्क कमाल पाशा, सिंगापुर की काया पलट करने वाले ली कुआन यू आदि और हमारे भारत की बात करें तो हमारे यहाँ का राजनैतिक नेतृत्व भी कम समृद्ध और एजुकेटेड नहीं रहा है जैसे:-

चाणक्य-चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, हर्षवर्धन, राजराज चोल, राजा जय सिंह (जयपुर), राजा कृष्णदेव राय (विजयनगर साम्राज्य), छत्रपति शिवाजी महाराज, टोडरमल-अकबर, और फिर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाल-बाल-पाल, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आज़ाद, बाबा साहब अंबेडकर आदि और अनेकों अन्य राजनैतिक नेता जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद भी देश को दिशा दी और दे रहे हैं।

आज ध्यान देने की बात है कि पिछले कई दशकों से हमारी प्रदेश तथा देश की राजनीति में नेतृत्व ऐसा भी दिखा है जब अपहरण, लूटपाट, गुंडागर्दी, दबंगई, जातिवाद या धार्मिक आस्था, भ्रष्टाचार का जुड़ाव सीधे तौर पर राजनैतिक नेतृत्व से रहा है और ऐसी बातों के जाल में फंस कर जनता भी ऐसे मुद्दों को ही प्रमुख मान कर अपने वोट देते रही है।

आज के माहौल में भी आप देखिए और सोचिए तो आपका ध्यान जाएगा कि सारे देश में सामाजिक विभाजन, राजनैतिक तरफदारी और द्वेष, मुफ्त की सुविधाओं की धूम है। वोट की राजनीति में आज यही मुद्दे पक्ष-विपक्ष सभी की राजनीति में प्रबल हैं लेकिन जरा सोचिए कि कितने लोग सही अर्थों में विकास के मुद्दों को प्रमुखता देते हैं? कितने राजनैतिक लोग पर्यावरण, नौजवानों के रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य,सामाजिक सद्भाव, कृषि-किसान, के मुद्दों और इनकी अगले दशकों विषयक सोच को वास्तविकता में अहमियत दे रहे हैं। अपने दिल पर हाथ रखिये और सोचिए कि हमारे यहाँ जो शिक्षण संस्थान हैं उनमें से अधिसंख्य क्या सचमुच वैसे चल रहे हैं जैसा उनको होना चाहिए? जरा सोचिए आज हमारे राजनैतिक और सामाजिक चर्चा के मुद्दे क्या हैं? क्या सोशल मीडिया, मीडिया और टी वी डिबेटों में वो मुद्दे दिखते हैं जो सचमुच होने चाहिए?

बात किसी दलीय राजनीति की नहीं है अपितु आप सामान्यतः ही देखिए कि हमारे सोशल मीडिया के मुद्दे आज से बीस साल बाद की पीढ़ी के भविष्य के लिए चर्चा न करके किसने किसके ऊपर लघुशंका निवृत्ति की और किसने किसके पैर बघारे इसकी चर्चा अधिक कर रहे हैं-चर्चा का केंद्र बिंदु यही है। मेरा कहने का आशय यह कतई नहीं है कि यह मुद्दे महत्वपूर्ण नहीं हैं किंतु जो लोग राजनैतिक नेतृत्व दे रहे हैं उनको यह सोच भी तो लानी होगी कि ऐसा क्या किया जाए कि हर व्यक्ति का जीवन स्तर आगे चल कर बेहतर बने, कैसे पर्यावरण बेहतर हो, कैसे विज्ञान की मदद से नई पीढ़ी को न सिर्फ रोजगार के बेहतर साधन उपलब्ध हों अपितु हमारा समाज, लोग और देश अधिक सक्षम और समर्थ बनें, खबरों में नहीं बल्कि सचमुच ही। आज जरूरतमंदों को सब्सिडी, मुफ्त अनाज आदि देना ठीक है क्योंकि वो आवश्यक है लेकिन कैसे जल्द से जल्द इन कमजोर वर्ग के लोगों को भी सही अर्थों में इनकी कमजोर स्थिति से उबारा जाए और वो भी सच में न कि सिर्फ मीडिया और आंकड़ों में…

किसी भी समाज या देश के विकास के लिए एक सही सोच के नेतृत्व की आवश्यकता होती है और वो सही समझ तथा सोच वास्तविक अर्थों में " एजुकेटेड" (केवल साक्षर या डिग्री धारी नहीं) होने से ही पैदा तथा विकसित होती है। जब और जिनके पास ऐसा नेतृत्व होता है, जिन क्षेत्रों में होता है उनके परिणाम बताने की जरूरत नहीं होती बल्कि प्रत्यक्ष दिखते हैं।


अतुल चतुर्वेदी

उद्योगपति, निर्यातक, इतिहासकार, लेखक, ब्लॉगर, समाजसेवी

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