कर्नाटक में आरक्षण को लेकर सियासत तेज हो चुकी है। सिद्धारमैया ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण की समीक्षा के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अगर दलितों की भलाई चाहती है तो संविधान की धारा 341 में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश करना चाहिए।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार को अनुसूचित जाति (SC) के लिए आंतरिक आरक्षण की समीक्षा के लिए उच्चस्तरीय समिति को दलित समुदाय को गुमराह करने की चाल करार दिया है। वहीं, उन्होंने कहा कि भाजपा को दलित समुदाय की कोई परवाह नहीं है।
सिद्धारमैया ने एक बयान में कहा,"केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण की समीक्षा के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।"
आरक्षण को लेकर केंद्र पर हमलावर हुई सिद्धारमैया सरकार
उन्होंने आगे कहा,"अगर केंद्र सरकार वास्तव में अनुसूचित जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण की मांगों को पूरा करने का इरादा रखती है, तो उसे संसद में संविधान की धारा 341 में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश करना चाहिए, इसे मंजूरी देनी चाहिए और आरक्षण को शीघ्र लागू करना चाहिए।"
संवैधानिक संशोधन करना ही एकमात्र उपाय: सीएम
मुख्यमंत्री ने आगे कहा, "केंद्र द्वारा गठित उषा मेहरा आयोग ने निष्कर्ष निकाला था कि अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण और आंतरिक आरक्षण प्रदान करने के लिए संवैधानिक संशोधन करना ही एकमात्र उपाय है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी यही बात कही थी तो फिर एक और उच्चस्तरीय समिति की क्या आवश्यकता है? यह केवल समय बर्बाद करने की एक रणनीति प्रतीत होती है।"
सीएम ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा है कि हमारी सरकार को सदाशिव आयोग की रिपोर्ट लागू करनी चाहिए थी। ऐसा लगता है कि वह भूल गए हैं कि वह साढ़े तीन साल तक राज्य के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सदाशिव आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार क्यों नहीं किया और लागू क्यों नहीं किया जब वे सत्ता में थे?
उन्होंने आगे कहा,"राज्य के भाजपा नेता संविधान की धारा 341 में संशोधन करने और अनुसूचित जाति के लिए आंतरिक आरक्षण की दशकों पुरानी मांग को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव डालने के बजाय राजनीतिक द्वेष से हमारे खिलाफ झूठे आरोप लगा रहे हैं।"
आरक्षण को लेकर क्या है मामला
बता दें कि कर्नाटक में दलित समुदाय को मिल रहे आरक्षण को लेकर राजनीति गरमा चुकी है। कुछ सालों पहले बोम्मई सरकार ने राज्य में दलितों के आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया था। हालांकि, दलितों के आरक्षण को आंतरिक स्तर पर चार हिस्सों में बांट दिया गया था।
सरकार की कोशिश थी कि शेड्यूल कास्ट (लेफ्ट) के लिए छह प्रतिशत, शेड्यूल कास्ट (राइट) के लिए 5.5 प्रतिशत ठचेबल्स के लिए 4.5 प्रतिशत और बाकी अन्य के लिए रखा जाए। सरकार के इस फैसले के खिलाफ बंजारा समुदाय ने विरोध किया।