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राजनीति

राजग के सहयोगी दलों को कम सीटों पर करना पड़ सकता है संतोष, पिछली बार से ज्यादा सीटें लाने का दावा

Sanjiv Kumar
18 Jan 2024 8:33 AM GMT
राजग के सहयोगी दलों को कम सीटों पर करना पड़ सकता है संतोष, पिछली बार से ज्यादा सीटें लाने का दावा
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राजग में सहयोगी दलों को लोकसभा चुनावों में दावेदारी के लिहाज से कम सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। भाजपा 2019 की तुलना में इस बार अधिक सीटों पर लड़ने की तैयारी में है और सहयोगी दलों को कम सीटों पर मनाने की कोशिश जारी है। आंकड़ों के हिसाब से राजग में 39 दल शामिल हैं लेकिन उनमें से बहुत कम को ही चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा।

राजग में सहयोगी दलों को आगामी लोकसभा चुनावों में दावेदारी के लिहाज से कम सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। भाजपा 2019 की तुलना में इस बार अधिक सीटों पर लड़ने की तैयारी में है और सहयोगी दलों को कम सीटों पर मनाने की कोशिश जारी है।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा 437 सीटों पर लड़ी थी, जिनमें से 303 सीटें जीती थी। अभी तक भाजपा ने औपचारिक रूप से लोकसभा में सीटों के लक्ष्य का नारा नहीं दिया है। पार्टी के कुछ मुख्यमंत्री 350 से लेकर 450 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता पिछली बार से ज्यादा सीटें लाने का दावा जरूर कर रहे हैं। जनकल्याणकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विभिन्न वर्गों के बीच देशव्यापी लोकप्रियता को देखते हुए यह असंभव भी नहीं लग रहा है, लेकिन ज्यादा सीटें जीतने के लिए पार्टी पिछली बार की तुलना में ज्यादा सीटों लड़ना भी जरूरी मान रही है। जाहिर है भाजपा की सीटें सहयोगी दलों की कीमत पर ही बढ़ेगी।

क्या सीट बंटवारे को लेकर हो रही बातचीत?

आंकड़ों के हिसाब से राजग में 39 दल शामिल हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम को ही लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। वैसे अभी तक राजग में सीटों के बंटवारे के लिए औपचारिक बातचीत शुरू नहीं हुई है, लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, सहयोगी दलों की ओर से सीटों की सबसे ज्यादा मांग महाराष्ट्र और बिहार में होने की संभावना है। महाराष्ट्र में शिवसेना का शिंदे गुट और राकांपा का अजित पवार गुट मजबूत क्षेत्रीय दल हैं, लेकिन भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह अकेले 30 से 35 सीटों पर लड़ेगी और दोनों सहयोगी दलों को शेष सीटों पर संतोष करना पड़ेगा। 2019 में भाजपा महाराष्ट्र में 25 सीटों पर लड़ी थी और 23 सीटें जीतने में सफल रही थी।

वहीं, एनडीए में शामिल शिवसेना 23 सीटों पर लड़कर 18 सीटें जीती थी। शिवसेना और राकांपा में विभाजन के बाद महाराष्ट्र में भाजपा अग्रणी भूमिका है। इसी तरह से बिहार में जदयू के बाहर जाने के बाद भाजपा नए सिरे से 30 से अधिक सीटों पर लड़ने की तैयारी में है। 2014 में भाजपा 30 सीटों पर लड़ी थी और 22 सीटों पर जीती थी। वहीं, लोजपा सात में से छह सीटें जीती थी।

उपेंद्र कुशवाहा को दी जा सकती हैं एक या दो सीटें

2019 में जदयू के साथ समझौते के कारण भाजपा ने अपनी पांच जीती हुई सीटें छोड़ दी थी और 17 सीटों पर लड़कर सभी सीटें जीतने में सफल रही थी। वहीं, जदयू 17 में 16 सीटें जीती थी। एक सीट कम पर लड़ने के बावजूद लोजपा सभी छह सीटें जीतने में सफल रही थी। इस बार भाजपा लोजपा को चार सीटों पर मनाने की कोशिश कर रही है। ज्यादा दबाव की स्थिति में लोजपा को पांच सीट तक देने पर विचार कर सकती है।

वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल को एक या दो सीटें और जीतन राम मांझी की पार्टी हम को एक सीट दी जा सकती है। भाजपा की कोशिश बिहार में खुद 33 सीटों पर लड़ने की है।

कितनी सीटें मांग रही जेडीएस?

कर्नाटक में तीन सीटों की मांग कर रही जेडीएस को भाजपा ने लोकसभा की दो सीटें देने का साथ ही एक राज्यसभा सीट देने का आफर किया है। भाजपा पिछली बार 27 सीटों पर लड़ी थी, जिनमें 25 सीटें जीती थी और उसका समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार भी जीतने में सफल रहा था। भाजपा इस बार 26 सीटों पर लड़ने का मन बना चुकी है।

उत्तर प्रदेश में अपना दल और निषाद पार्टी को दो-तीन सीटें देने के अलावा भाजपा बाकी सभी सीटों पर खुद ही लड़ेंगी। झारखंड में आजसू को एक सीट मिलना तय है। दक्षिण भारत में भाजपा कर्नाटक के बाद तमिलनाडु पर सबसे अधिक जोर दे रही है, लेकिन एआईएडीएमके के साथ अभी तक सीटों के बंटवारे और साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर बातचीत शुरू नहीं हुई है। यदि बातचीत हुई भी भाजपा तमिलनाडु में अपने लिए 15 से अधिक सीटें मांग सकती है।

संगठन की पूरी ताकत झोंकेगी भाजपा

आंध्रप्रदेश में भी टीडीपी के साथ ऐसी ही शर्त रहेगी, लेकिन वाईआरएस रेड्डी के सहयोगी रवैये को देखते हुए वहां भाजपा टीडीपी के साथ गठबंधन करने से बच भी सकती है। सहयोगी दलों को भाजपा का संदेश स्पष्ट है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के लिए भी जीत की गारंटी रहेगी और कम सीट पर लड़कर भी वे फायदे में रहेंगे। इसी तरह से भाजपा इस बार सहयोगी दलों को दी गई सीटों पर संगठन की पूरी ताकत झोंकने और समान रूप से चुनाव प्रचार करने का फैसला किया है।

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