बीजेपी संगठन में बड़ा बदलाव: चार प्रदेश अध्यक्ष बदले, एक केंद्रीय मंत्री और एनटीआर की बेटी को भी जिम्मेदारी
बीजेपी ने मंगलवार को संगठन में बड़ा बदलाव किया. इस बीच, केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी को तेलंगाना के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। एनटीआर की बेटी और टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू की रिश्तेदार डी. पुरंदेश्वरी को आंध्र प्रदेश भाजपा का राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। साथ ही पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी को झारखंड और सुनील जाखड़ को पंजाब का पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा एटाला राजेंदर को तेलंगाना बीजेपी की चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का सदस्य नियुक्त किया गया है.
PM मोदी-शाह और नड्डा ने की अहम बैठक
इससे पहले 28 जून की देर रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी महासचिव बीएल संतोष के साथ बैठक की थी. इस बैठक से पहले भी अमित शाह ने नड्डा, बीएल संतोष और आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारी अरुण कुमार के साथ कम से कम पांच मैराथन बैठकें की थीं। 5 जून, 6 जून और 7 जून को इन शीर्ष नेताओं ने बीजेपी मुख्यालय में लंबी बैठक की और बदलाव का खाका तैयार किया. इसके बाद प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में इन बदलावों पर चर्चा हुई और पीएम ने बदलावों पर अपनी मुहर लगा दी.
चुनावी राज्यों में परिवर्तन!
बैठक में चुनावी राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना को लेकर भी चर्चा हुई. कयास लगाए जा रहे थे कि इन राज्यों से कुछ लोगों को सरकार में लाया जा सकता है, वहीं कुछ मंत्रियों को संगठन में बेहतर कामकाज के लिए भेजा जा सकता है और हुआ भी कुछ ऐसा ही. इस साल तेलंगाना में चुनाव होने हैं और इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को दी गई है. इसके अलावा अगले साल लोकसभा की सियासी लड़ाई के साथ ही आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, ऐसे में बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री के रिश्तेदार पर दांव लगाकर समीकरण साधने की कोशिश की है .
इससे बदलाव की आवश्यकता महसूस हुई
विपक्षी दलों ने जिस तरह से पटना में एकता बैठक आयोजित कर बीजेपी को चुनौती देने की कोशिश की, उससे पार्टी को भी अपनी चुनावी तैयारियों को दुरुस्त करने की जरूरत महसूस हुई. कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों ने भी पार्टी को अपनी चुनावी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता का संकेत दिया है। कांग्रेस ने जिस तरह मुफ्त चुनावी वादे कर विभिन्न राज्यों में चुनावी समीकरणों में नया पेंच फंसाया है, उससे निपटना केंद्र सरकार के सामने एक नई चुनौती बन गई है। इन सभी चुनौतियों से निपटने की रणनीति बदलाव में दिखाई दे रही है।