देश का नाम,74 साल पहले कैसे चुना गया, क्या अब बदला जा सकता है?
देश का नाम,74 साल पहले कैसे चुना गया, क्या अब बदला जा सकता है?
74 साल पहले 18 सितंबर 1949 को संविधान सभा में देश के नाम पर चर्चा हुई थी। अंबेडकर की ड्राफ्ट वाली कमेटी ने सुझाव दिया था- India, that is, Bharat. इस पर काफी बहस छिड़ी, आखिरकार सारे संशोधन खारिज कर दिए गए और यही नाम स्वीकार कर लिया गया। भारतीय संविधान के हिंदी अनुवाद में लिखा गया है- भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
आखिर भारत नाम की शुरुआत कहां से हुआ?
प्राचीनकाल से ही भारत के अलग-अलग नाम रहे हैं। जैसे जम्बूद्वीप, भारतखंड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया। हालांकि, इनमें सबसे ज्यादा प्रचलित नाम भारत रहा है। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर भारत नाम के पीछे दुष्यंत के बेटे भरत का ही जिक्र आता है। ऋग्वेद की एक शाखा ऐतरेय ब्राह्मण में भी दुष्यंत के बेटे भरत के नाम का वर्णन किया गया है। इसमें भरत को एक चक्रवर्ती राजा यानी चारों दिशाओं को जीतने वाला कहा गया। ऐतरेय ब्राह्मण में इसका भी जिक्र है कि भरत ने चारों दिशाओं को जीतने के बाद अश्वमेध यज्ञ किया जिसके चलते उनके राज्य को भारतवर्ष कहा गया। वही अगर मत्स्यपुराण की बात करें तो मनु को प्रजा को जन्म देने और उसका भरण-पोषण करने के कारण भरत कहा गया। जिस क्षेत्र पर मनु का राज था उसे भारतवर्ष कहा गया। जैन धर्म की माने तो जैन धर्म के धार्मिक ग्रंथों में भी भारत नाम का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि भगवान ऋषभदेव के बड़े बेटे महायोगी भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। विष्णु पुराण में एक श्लोक है… उत्तर यत्समुद्रस्य हिताद्रेश्चैव दक्षिणम। वर्ष तत भारतम नाम भारती यत्र सन्ततिः।। यानी, जो समुद्र के उत्तर व हिमालय के दक्षिण में है, वह भारतवर्ष है और हम उसकी संतानें हैं।
भारत के नामों पर संविधान सभा में क्या चर्चा हुई ?
संविधान में भारत का नाम मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया था। जो भी ड्राफ्ट पेश किया गया और बहस के दौरान जो भी प्रस्ताव रखे गए वो अंग्रेजी में थे। संविधान सभा की बहस के दौरान 17 सितंबर 1949 को 'संघ का नाम और राज्य क्षेत्र' खंड चर्चा के लिए पेश हुआ। जैसे ही अनुच्छेद 1 पढ़ा गया- 'India, that is Bharat, shall be a Union of States', संविधान सभा में इसे लेकर मतभेद शुरु हो गये। फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्य हरि विष्णु कामथ ने अंबेडकर कमेटी के उस मसौदे पर आपत्ति जताई जिसमें देश के दो नाम इंडिया और भारत थे। कामथ ने कहा कि इंडिया दैट इज भारत कहना बेढंगा है। अंबेडकर ने संविधान प्रारूप बनाने में कई भूलें मानी हैं। इसे भी भूल मान लेना चाहिए। उन्होंने संशोधन प्रस्ताव में कहा कि इसे ऐसे किया जा सकता है- भारत, जिसका अंग्रेजी नाम इंडिया है।
एक अन्य सदस्य सेठ गोविंद दास ने कहा कि वेदों, महाभारत, कुछ पुराणों और चीनी यात्री ह्वेन-सांग के लेखों में भारत देश का मूल नाम था। इसलिए स्वतंत्रता के बाद संविधान में इंडिया को प्राथमिक नाम के रूप में नहीं रखा जाना चाहिए।संयुक्त प्रांत के पहाड़ी जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले हरगोविंद पंत ने स्पष्ट किया कि उत्तर भारत के लोग भारतवर्ष नाम चाहते हैं और कुछ नहीं। कॉन्स्टीट्यूशन कमेटी ने कोई भी संशोधन प्रस्ताव स्वीकार नहीं किए और हमारे संविधान में देश का नाम भारत और इंडिया दोनों रखे गए। भारतीय संविधान की हिंदी कॉपी में आर्टिकल 1(1) में लिखा है, 'भारत अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा'। यानी भारत और इंडिया दोनों को बराबर माना गया है।
क्या 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' की जगह 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' लिखना G20 के डिनर आमंत्रण में गैर-संवैधानिक है?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता के मुताबिक ये गैर-संवैधानिक नहीं है। भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया। इसके आर्टिकल 1 (1) में लिखा है- 'India, that is Bharat, shall be a Union of States'। संविधान की हिंदी कॉपी में लिखा है 'भारत अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा'। यानी हमारे देश का नाम भारत और इंडिया दोनों है। इन दोनों का इस्तेमाल संवैधानिक है। अगर इन दोनों नामों के इतर कोई हिंदुस्तान, आर्यावर्त या जंबूद्वीप लिखने लगे, तो इसे संविधान के खिलाफ माना जाएगा। 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' की जगह 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' लिखकर एक परंपरा का निर्वहन नहीं किया गया है। इसे इसी रूप में देखना चाहिए, न कि संविधान के उल्लंघन के रूप में।
अगर इंडिया नाम खत्म हो जाता है तो क्या-क्या चुनौतियां आएगी?
अगर इंडिया नाम हटा दिया गया तो संविधान से लेकर तमाम संस्थाओं तक में इसे बदलना पड़ेगा। मसलन कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ भारत हो जाएगा, सुप्रीम कोर्ट ऑफ भारत हो जाएगा। इसी तरह तमाम वैश्विक संगठन मे इडिया की जगह भारत लिखना पड़ेगा।